सफरनामा
हर अंचल का अपना अपना तरीका था, अपना अपना रंग
माॅंगने की सुविधा हर व्यक्ति को, था नहीं कोई किसी से कम
कहें ऐसी ऐसी बात कि वहाॅं सारे सुनने वाले रह जायें दंग
पर कभी काम की बात भी कह जायें हल्की सी बात के संग
मुरैना में अगर चम्बल के बीहड़ थे अपना मुख फैलाये
तो मंदसौर में बिजली की दरें चढ़ने से लोग थे घबराये
झाबुआ में गर ज़बरदस्ती अधिक लोग कलैक्टर ने बुलाये
तो खरगौन में अध्यक्ष के कारण सब भागे भागे थे आये
उज्जैन में वकीलों की शिकायत थी उन्हें नहीं था बुलाया
वरना दे देते वह सुझाव जो सारी समस्या समाप्त करायें
जगदलपुर के आदिवासी अपने जंगल कटने से थे हैरान
जबलपुर के जवाॅंमर्द वक्ता अपने जौहर का करें बखान
बैतुल, छिंवाड़ा, सीधी कहीं भी सुझाव कम नहीं आये
बालाघाट में तो बरसती बरसात में भी वह सामने आये
(यह कविता कृषक कल्याण आयोग के बारे में है। इस के पहले पाॅंच पन्ने गायब है और यह छटा पृष्ठ है। इसे 1989 मे लिखा गया था। प्रतिवेदन के लिये केवल छह महीने का समय मिला था पर उस में इतने ज़िलों का दौरा कर लिया। और भी हैं जिन का नाम नहीं आया।)