top of page
  • kewal sethi

श्रद्धाँजलि

श्रद्धाँजलि


आज इकठ्ठे हुए हैं हम लोग देने श्रद्धाँजलि


उन्हें जिन्हें हम ने कभी देखा नहीं

जिन के बारे में हम ने कभी जाना नहीं

जब वह जि़ंदा थे तो मरे हुए से थे

मरने पर अब तो वह अमर हो गये


वक्त बढ़ता रहा इमारत बुलन्द होती ग ई

किसी की बदनसीबी पर हालत हमारी सुधरती रही

जेबें अपनी भरने से हमें कब फुरसत मिली

किसी के बारे में सोचने की बात टलती रही


पर अब जब हो ही गया हादसा

पीछे रहने का कोई अर्थ नहीं रहा

श्रद्धाँजलि भी एक बहाना है सुनाने का सुनने का

मिल कर वक्त को ज़ाया करने का सर धुनने का


करना नहीं चाहते पर बोल तो सकते हैं

ज़हर का असर कम न कर सकें ज़हर घोल तो सकते हैं

अपनी सियासत को हम यहाँ भी कैसे छोड़ सकते हैं

बन चुका है हमारी जि़ंदगी उस से कैसे मुँह मोड़ सकते हैं


(एक रेल हादसे में कुछ व्यक्तियों की मृत्यु पर। समय नामालूम)

1 view

Recent Posts

See All

पश्चाताप

पश्चाताप चाह नहीं घूस लेने की पर कोई दे जाये तो क्या करूॅं बताओं घर आई लक्ष्मी का निरादर भी किस तरह करूॅं नहीं है मन में मेरे खोट क्यूॅंकर तुम्हें मैं समझाऊॅं पर कुछ हाथ आ जाये तो फिर कैसे बदला चकाऊॅं

प्रजातन्त्र की यात्रा

प्रजातन्त्र की यात्रा यात्रा ही है नाम जीवन का हर जन के साथ है चलना विराम कहॉं है जीवन में हर क्षण नई स्थिति में बदलना प्रजातन्त्र भी नहीं रहा अछूता परिवर्तन के चक्कर मे आईये देखें इस के रूप अनेकों सम

नई यात्रा

नई यात्रा फिर आई यात्रा एक, यात्रा से कब वह डरता था। लोक प्रसिद्धी की खातिर वह पैदल भी चलता था। तभी तलंगाना से बस मंगा कर यात्रा करता था एलीवेटर लगा कर बस में वह छत पर चढ़ता था ऊपर ऊपर से ही वह जनता के

bottom of page