वृद्धाश्रम
- kewal sethi
- Sep 30
- 2 min read
वृद्धाश्रम
प्रवेश ने जैसे ही घर में प्रवेश किया, सास बहु की तेज़ तेज़ आवाज़ कानों में पड़ी। यह नई बात नहीं थी। कई बार ऐसा होता था।
- बस करो अब, वह ज़ोर से चिल्लाया।
सास ने कहा - बस बहु, अब बाकी कल
प्रवेश - यह रोज़ की कल कल से मैं तो परेशान हो गया हूॅं।
बहु - क्यों, आज फिर डांट पड़ी बॉस की।
सास - या कुश्वाहा ने कुछ उलटा सीधा कह दिया।
बहु - या रिसॅपनिष्ट देख कर मुस्कराई नहीं।
प्रवेश - यह क्या फ़िज़ूल की बात कर रही हों। वह तो आज आई ही नहीं।
सास - शाबाश, बहु, खूब पकड़ा।
प्रवेश - एक तो दिन भर दफतर में परेशान रहता हूॅं। सोचता हॅं घर पर तो शांति मिले गी। पर ....
सास - बहु, इसे जल्दी से चाय पिला, नहीं तो यह शांति को ही याद करता रहे गा।
बहु - अभी लाई, मां जी। चाय तो तैयार है।
सास - ओर थोड़ा नमकीन भी साथ में।
प्रवेश - मेरा ख्याल है मां, कि अब आप को वृद्धाश्रम ही रास आये गा।
बहु - क्या कहा? फिर से तो कहना।
प्रवेश - मां वृद्धाश्रम में रहे गी तो तुम भी सुखी और मां भी सुखी।
बहु - मां जी, आप का बेटा तो गधा है।
सास - खबरदार, मेरे बेटे को गधा कहा तो।
बहु - सॉरी। गल्ती हो गई। दर असल मेरा पति गधा है।
सास - हां, यह ठीक है। पत्नि पति को कुछ भी कह सकती है।
प्रवेश - यह क्या बदतमीज़ी है। मैं तो दोनों के भले की बात कर रहा हूॅ।
सास - तो कब चलना हैं वृद्धाश्रम
प्रवेश - बात करता हूॅं। दो एक रोज़ में।
बहु - तब तो मुझे भी वृद्धाश्रम जाना पड़े गा।
प्रवेश - तुम्हें क्यों?
बहु - तो फिर मैं लड़ूॅं गी कैसे।
प्रवेश - यह रोज़ राज़ लड़ना ठीक है क्या।
बहु - रोज़ रोज़ कहॉं लड़ते हैं। बस हफते में चार एक बार।
प्रवेश - पर चार बार भी क्यों।
बहु - तो उस के बिना जीवन कैसे कटे गा। क्यों, मां जी।
सास - बिल्कुल, वही तो सब्ज़ी में नमक की तरह है।
बहु - क्यों? बिना नमक के सब्ज़ी आप खा सको गे क्या।
प्रवेश - अब यह सब्ज़ी में नमक की बात कहां से आ गई।
सास - अब मीठा ही मीठा खाते रहो गे तो बीमार नहीं पड़ो गे क्या।
बहु - इसी लिये तो नमक बहुत ज़रूरी है।
प्रवेश - अब आप दोनों के बीच मीठा कब होता है, यह तो बताओ।
बहु - हफते में तीन दिन।
सास - और नहीं तो क्या।
प्रवेश - अच्छा बाबा, आप को यही पसंद है तो शुरू कर दो।
सास - अब आज नहीं कल। आज का कोटा पूरा हो गया।
बहु - बिल्कुल। खाना भी तो बनाना है।
प्रवेश - नमक के साथ।
Comments