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विजय माला

  • kewal sethi
  • Aug 18, 2020
  • 2 min read

in government service, good news are not always clear. it is the perception which counts.

a poem about this. self explanatory so i do not have to tell the background.



विजय माला


उस दिन एस पी साहब जब घर पर आये

मन की खुशी छुप नहीं रही थी उन के छुपाये

महीनों में पहली बार बच्चे को देख मुस्कराये

पत्नि पर भी आम दिनों की तरह नहीं झुंझलाये

पत्नि देखती रह गई पूछा कुछ हो कर के हैरान

क्या विशेष बात हुई है दफतर में यह तो करो ब्यान

एस पी बोले क्या बतायें, हो गया है चमत्कार

आज तो हम लोगों ने मैदान लिया है मार


पत्नि ने पूछा गैलण्टरी मैडल की हो गई क्या अनुशंसा

डी जी ने फोन पर ही कर दी तुम्हारे काम की प्रशंसा

क्या किसी बाग़ी को कर दिया तुम ने धराशायी

किसी घोटाले को सुलझाने में कामयाबी है पाई

एस पी बोले नहीं इस से उस का कुछ सरोकार

पर आज तो हम लोगों ने मैदान लिया है मार


पत्नि बोली अब पहेलियां न तुम बुझवाओ

हुआ है क्या खास यह मुझे ज़रा समझाओ

एस पी बोले हुआ वही जिस का था बरसों से इंतज़ार

हमारे पन्ना लाल ने गृह सचिव का सम्भाला है पदभार

पत्नि ने तुरन्त दी इस बात पर पति को बधाई

कहने लगी यह तुम ने बहुत अच्छी खबर सुनाई

अब मंत्री के फोन नहीं आयें गे अपराधी को छोड़ दो

कोई विधायक नहीं कहे गा तफतीश का रुख मोड़ दो

अब मुख्य मंत्री को नहीं भेजने पड़ें गे हर माह उपहार

न ही किसी के सामने करना पड़े गा साष्टांग नमस्कार

एस पी बोले ऐसे तो नहीं लगते हैं कोई आसार

पर आज तो हम लोगों ने मैदान लिया है मार


पत्नि हिम्मत नहीं हारी, सोच कर कहे यह बोल

अब तो छ: माह में नहीं करना पड़े गा बिस्तर गोल

अच्छे काम करने पर नहीं होगा हमारा अब तिरस्कार

सिर्फ सिफारिश के बल पर नहीं पाये गा कोई पुरस्कार

अब हर ऐरे गैरे से डरने की नहीं होगी ज़रूरत

गुण्डों मवालियों को ठीक करने का आया है महूरत

एस पी बोले ऐसा तो नहीं होगा ऊपर स्वीकार

पर आज तो हम लोगों ने मैदान लिया है मार


सुन रहा था यह वार्तालाप उन का आठ वर्षीय बच्चा

वह इस सब में कुछ समझा कुछ वह नहीं समझा

लगता है ऐसा सब पुराने ढर्रे पर ही चलता रहे गा

प्रदेश में अपराध जगत पहले की तरह फलता रहे गा

बोला क्यों हो रही है खुशी यह समझ में नहीं आया

जब यह सब नहीं तो क्या किसी ने कुछ भी पाया

एस पी बोले यह तो मुझे नहीं पता बरखूदार

पर आज तो हम लोगों ने मैदान लिया है मार

18 जून 2000 भोपाल


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