रोटी रोज़ी
- kewal sethi
- Oct 4
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रोटी रोज़ी
कालेज छोड़ने के सात आठ साल बाद एक क्लास फैलो मिले। दुआ सलाम हुई।
ऐसे में यह प्रश्न पूछना तो स्वाभाविक है कि आजकल क्या कर रहे हो यानि कि रोटी रोज़ी का कैसे प्रबन्ध हो रहा है।
उस ने कहा कि मैं शिकार करता हूॅं।
मैं ने आश्चर्य व्यक्त किया कि दिल्ली के आस पास तो क्या, दूर दूर तक, कोई जंगल नहीं है तो षिकार कैसे कर सकते हो। और फिर इस से रोटी रोज़ी थोड़े ही चल सकती है।
उस ने बताया कि वह जानवरों का नहीं, आदमियों का शिकार करते हैं।
अब आदमियों का शिकार इस ज़माने में कैसे किया जाता है। शायद अफ्रीका के जंगल में होता हो पर दिल्ली मेें? मेरे पूछने पर उस ने कहा - नहीं मैं गोली, चाकू का इस्तेमाल नहीं करता। मैं तो उन्हें जाल में फंसाता हूॅं।
- अब जाल में फंसाओ तो भी तो अपराध ही हुआ न।
- मेरे जाल का मतलब है शब्दजाल
- और फिर जब वह जाल में फंस जाते हैं तो?
- वह पैसा निकाल कर मेरे हवाले करते हैं।
- कितने लोगों का फंसा लेते हो।
- ज़्यादा नहीं, महीने में चार छह।
- बस। पर रकम तो मोटी ही ले लेते हो गे।
- वह तो उस की हैसियत पर निर्भर करता है।
- अब तक तो तुम बहुत अमीर हो गये हो गे। फिर यह पुरानी स्कूटर पर क्या कर रहे हो।
- वह पैसा मैं कहॉं रखता हूॅं। वह तो जमा कराना पड़ता है।
- तो तुम्हें क्या मिलता है, शब्दजाल की वजह से?
- कमीशन
- यह तो बहुत कठिन स्थिति है। जिस महीने कोई जाल में न फंसे तो मुश्किल होती हो गी
- नहीं, ऐसा नहीं है। असल में जो शिकार फंस जाता है, उसे बार बार पैसा देना पड़ता है और मुझे कमीशन मिलता है। मेरा कमीशन बढ़ता रहता है।
- और जिन तक पैसा पहुंच जाता हैं, वह कौन हैं। ,
- जुवारी
- उन्हें सरकार से डर नहीं लगता। किसी दिन धरे रह जायें गे।
- अरे डरना क्या, यह सब सकरार की मंज़ूरी से होता हैं। असल में वह खुद ही सरकार है।
- समझ में नहीं आया। जुआरी सरकार कैसे हो सकता हेै।
- सीधी सी बात है। जब जुआ बड़े स्तर पर खेला जाता है तो वह जुआ नहीं रहता, व्यापार बन जाता है।
दुआ सलाम के बाद हम अपने अपने रास्ते चले पर मैं सोचता ही रह गया।
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(पुनष्च - एक सांझे मित्र ने बताया कि बंदा जीवन बीमा निगम का एजैण्ट है)
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