खुश फहमी
- kewal sethi
- 12 hours ago
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खुश फहमी
- यह क्या बदतमीज़ी है। हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी यह करने की - लड़की ने रोष भरे शब्दों में कहा।
- क्या हो गया, मिस?
- तुम मुझे ऐसा खत लिखो गे, मैं ने सोचा भी नहीं था।
- कौन सा खत? मैं ने कोई खत नहीं लिखा।
- तुम्हारा नाम राजेश है न?
- बिल्कुल
- और तुम कहते हो, तुम ने खत नहीं लिखा।
- कहा क्या गया है इस खत में
- मेरी बुलबुल
- तो यह खत किसी और के नाम का हो गा। तुम्हारे लिये नहीं हो सकता। तुम बुलबुल तो नहीं हो सकती।
- मतलब?
- तुम्हारा नाम तो कर्कषा या ऐसा कुछ होना चाहिये।
- नाम तो मेरा शशि है पर पापा मुझे बुलबुल कहते हैं।
- ऊॅंचा सुनते हैं क्या?
- फिर वही बदतमीज़ी। खबरदार जो मेरे पापा के बारे में कुछ कहा।
- सॉरी। मेरी इतनी हिम्मत कहॉं जो मैं पापा के या तुम्हारे बारे में कुछ कहूॅं।
- तो तुम ने यह खत नहीं लिखा।
- मैं तुम्हें जानता भी नहीं तो खत कैसे और क्यों लिखूॅं गा।
- जानते कैसे नहीं। तुम्हारी कलास में तो हूॅं। फ्रंट बैंच पर बैठती हूॅ।
- देखा तो है पर जानना अलग बात है।
- उस के लिये खत लिखना पड़ता है?
- फिर वही खत
- एक बात कहूॅं?
- पहले क्या पूछ कर कही थी जो अब पूछ रही हो।
- अपना हैण्डरोईटिंग सुधारो। कुछ समझ में नहीं आया, क्या लिखा है।
- सिवाये नाम के
- वह भी अन्दाज़ से।
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