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एक शाम साथ में

  • kewal sethi
  • 19 minutes ago
  • 7 min read

एक शाम साथ में

(इस बार मेरे पास इस लेख की तारीख है। यह 4.12.1965 है, बहुत समय पहले)


1


चौराहे पर पहुँचकर वह थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन उसे ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं हुई। धीरे से उसने अपना हाथ उसके कंधे पर रखा और उसे बाईं ओर मोड़ दिया। क्यों न एक कप चाय पी ली जाए, उसने कहा।

“अरे नहीं! मुझे लगता है कि मुझे बहुत देर हो जाएगी”, उसने जवाब दिया।

उस ने जोर देकर कहा, ‘‘इसमें केवल कुछ मिनट लगेंगे। यह हमारी साथ में चाय का आखिरी कप हो सकता है। आखिरकार हम बहुत कुछ मिस करेंगे, तो अब एक कप चाय क्यों मिस करें’’।

वह हँसा, लेकिन उसकी हँसी खोखली थी। उसने उसे हल्के से कैफे की ओर धकेला। उसने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि उस दिशा में चलना शुरू कर दिया, जिस ओर उसने बताया था। कोई और बहाना न होने पर, उसने अपना हाथ वापस खींच लिया, लेकिन फिर अपनी बाँह उसके बाँह में डाल दी। उसने खुद को छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की। वे चुपचाप चलते रहे, वह अपने विचारों में खोई हुई थी। उसकी आँखों में एक दूर का भाव आ गया था। उसने भी अपनी चुप्पी बनाए रखी और अपने मन में चल रही घटनाओं को घुमाता रहा।

उन्होंने अजंता कैफे में चाय पी। अधिकांश समय दोनों ऐसे ही रहे जैसे कि वे अलग-अलग दुनिया में हों। यहां तक कि जब भाषा ने उनमें एक संरक्षक पाया, तब भी शब्द औपचारिक और दूर के थे। दोनों में से कोई भी वास्तव में चाय पीने के मूड में नहीं था और कैफे में प्रवेश करने के पंद्रह मिनट से भी कम समय में पूरा मामला समाप्त हो गया।

बाहर निकलकर उसने एक गुजरती टैक्सी को रोका। जब टैक्सी रुकी, तो उसने उसके लिए दरवाजा खोला। फिर वह दूसरी तरफ गया और टैक्सी में बैठ गया। खुद को समायोजित करने के बाद, उसने सिर्फ एक शब्द ‘फिल्मिस्तान’ कहा। टैक्सी उन सड़कों पर तेजी से आगे बढ़ी, जिन्हें वे बहुत अच्छी तरह से जानते थे। वे उन विचारों के बारे में सोच रहे थे, जिन्हें वे जानते थे कि दूसरा सोच रहा है, लेकिन उन्हें शब्दों में व्यक्त करने में संकोच कर रहे थे। या शायद वे उन विचारों के बारे में नहीं सोच रहे थे। कोई नहीं जानता था।

फिल्मिस्तान - और उसने चुपचाप किराया चुकाया और टैक्सी चालक से कहा कि वह बकाया पैसा रख ले। दोनों उसके घर की ओर चलने लगे। वह उस जगह से लगभग सौ गज की दूरी पर था जहां वे उतरे थे, या यूं कहें कि जिस गली में उसका घर था, वह सौ गज की दूरी पर थी। वे धीरे-धीरे चल रहे थे और जैसे-जैसे वे गली के पास पहुंचे, वे और भी धीमे चलने लगे। यातायात बहुत हल्का था और किसी ने उन्हें पहचाना नहीं था।

गली और भी सुनसान थी और सड़क और उसके घर के बीच एक खाली प्लॉट था और स्ट्रीट लैंपपोस्ट का बिजली का बल्ब नगर निगम की दक्षता का प्रतीक था। यहीं पर वे रुके थे। वह उसके घर तक जाने की हिम्मत नहीं कर सकता था और वह यह जानती थी।

उस ने कहा, ‘‘इस तरह एक अच्छी शाम समाप्त हो गई।’’

“हाँ”, उसने सहमति जताई

“लेकिन कौन जानता है, यह शायद ही संभव है। आखिरकार कल होगा ....”, उसने वाक्य अधूरा छोड़ दिया। वह समझ गई।

कल - यह उसकी शादी का दिन होगा। आज वह था जो उनके पास था। कल यह एक अलग स्थिति होगी। शायद वह उससे मिलेगी। शायद वे बात करेंगे। शायद ... ..

‘‘मुझे अब जाना होगा। बहुत देर हो चुकी है’’, वह चिंतित थी।

‘‘हाँ, अब हमें विदा होना चाहिए’’।

लेकिन दोनों वहीं रहे जहाँ थे। एक और मिनट बीत गया। कोई भी नहीं हिला।

‘‘ठीक है, शुभ रात्रि’’, उसने कहा और उसने शब्द दोहराए, लेकिन वे पहले की तरह ही रहे।

अचानक, उसने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसे ऊपर खींचकर चूम लिया। उसने खुद को अलग करने की कोशिश नहीं की। वह पीछे नहीं हटी लेकिन उसने भाग नहीं लिया। उसने खुद को जाने नहीं दिया। वह बस ऐसे ही था। यह एक सौम्य और औपचारिक चुंबन रहा। उसने उसे अपनी बाहों के सिरे सें पकड़ लिया और उसका निरीक्षण किया। उसने उसे फिर से ऊपर खींचना शुरू किया लेकिन अचानक उसके हाथ उसके बगल में गिर गए।

“मुझे खेद है,” वह बोला, “मुझे बहुत खेद है”।

उसने कोई जवाब नहीं दिया.

“मैं .. मैं .. मुझे लगता है कि मैंने पूरी तरह से नियंत्रण खो दिया था। मुझे लगता है कि मैं .... ’’।

उसने एक शब्द भी नहीं कहा.

‘‘मुझे बहुत दुःख है। आप जानते हैं कि यह कैसा था। इतना समय साथ बिताया और खुद को हल्का करने का एक भी मौका नहीं मिला। मैं बस अपना दिमाग खो बैठा।’’

‘‘मुझे पता है’’ उसने कहा

‘‘यह... यह ठीक है। लेकिन अब हमें जाना चाहिए’’।

वह चला गया।

गली के अंत तक पहुँचकर उसने पीछे मुड़कर देखा।

वह अभी भी वहीं खड़ी थी जहाँ उसने उसे छोड़ा था। उसने हाथ हिलाया और उसने भी हाथ हिलाया और फिर वह अपने घर तक चली गई जहाँ वह मुड़ी।

वह अभी भी गली के सिरे पर खड़ा था। एक पल के लिए, एक संक्षिप्त क्षण के लिए, उन्होंने एक-दूसरे को देखा।

फिर उसने पुश बेल दबाई। और ......

2.


अमित अपने प्रेयसी का अलविदा कह कर भारी मन से अपने घर लौटा। रास्ते भर वह सोचता रहा कैसे कटे का उस का जीवन बिना चित्रा कें। उस के साथ उस ने पूरा जीवन बिताने का सोचा था। तो ऐ्रसा क्योकर हुआ कि उसे उस को अलविदा कहना पड़ा।

कल ही उस की शादी है। रिश्तेदार बाहर के आ चुके हैं या आने वाले र्हैं। पर यह शादी हो ही क्यों रही है। वह सुगंधा को भी जानता है। बचपन से उसे जानता है। कुछ बातें उस से भी मिलती हैं पर चित्रा की बात अलग है। पर अब उस्रे सुगन्धा क्रे साथ ही रहना हो गा। क्येां?

क्योंकि उस के पिता सुरेश नागर और सुगंधा के पिता कमलेश जोशी बचपन से एक दूसरे के दोस्त र्हैं। न जाने कब उन का निर्णय हो गया कि उस की तथा सुगंधा का आपस में विवाह हो जाये। अमित इकलौता बेटा है और मॉं दमे की मरीज़। जाने कब छोड़ कर चल दे। इस लिये तिथि भी तय कर ली और अमित को बताया एकाध महीने पूर्व। अब अमित कया करे। उस ने अपनी मजबूरी चित्रा को बताई और चित्रा ने भी हामी भर दी कि भाग्य के साथ खेला नहीं जा कता। उस की बात मानना ही पड़ती है।

अमित जब घर पहुॅंचा तो देखा उस के भावी सुसर उस के पिता के साथ बैठे र्हैं पर आम तरह की तरह उन में उस बेतकुलफी से बात नहीं हो रही जैसे हमेशा होती है। एक अजीब खामोशी है।

अमित से रहा नहीं गया। बोला -

- क्या बात है। खामोशी क्यों है।

जोशी - तुम बताओं गे कि मैं बताऊॅं।

नागर - तुम्हीं बता दो।

अमित - बताना क्या है। मैं समझा नहीं।

ज - सुगंधा घर पर नहीं है।

अ - तो क्या हुआ। इधर उधर गई हो गी।

ज - नहीं। वह घर छोड़ कर चली गई है।

अ - कहॉं?

ज - वह गई थे ब्यूटी पार्लर में अनीता के साथ। फिर अनीता को घर भेज दिया किसी काम के बहाने।

अ - फिर?

ज - जब देर तक नहीं लौटी तो ब्यूटी पार्लर जा कर पूछा। उन्हों बताया कि कार पर कोई आया था, उसे साथ ले कर गया है।

अ - उस का कोई मित्र हो गा। आप को तो पता है सब मित्रों कां, फोन से पूछ लेते।

ज - जितनों का मालूम था, उन से पूछा। पर उन्हें पता नहीं था।

अ - सब से बात हो गई क्या?

ज - एक कमल से नहीं हूई। बाकी से तो हो गई।

अ - कमल। वह तो उस का खास दोस्त था कई बार साथ घूमते देखा।

ज - तुम कमल को जानते हो। उस से कुछ चल रहा था क्या?

अ - यह तो नहीं कह सकता। सुगन्धा ने भी कुछ नहीं बताया।

ज - वैसे यह कमल कैसा लड़का है।

अ- अच्छे घर का है। पढ़ने में भी हुश्यार था। अभी तो शायद किसी कम्पनी के साथ अच्छी पोस्ट पर काम करता है।

ना - तुम उस के माता पिता को जानते हो। उन से पूछ सकते हैं।

अ - नहीं। वह तो मैं नहीं जानता पर एकाध दोस्त से पूछ सकता हूॅ कि कम्पनी कौन सी है। वैसे क्या कुछ लिख कर भी गई है।

ज - वह तो देखा नहीं। पर अभी पता कर लेते हैं

सुगंधा की बहन अनीता को फोन कर कमरे की तलाशी लेने को कहा गया। कुछ समय बाद उस का फोन आया।

बात हुई तो उस के बाद जोशी जी ने बताया।

ज - हॉं, एक पत्र है। लिखा र्है - आप मेरी शादी कर रहे थे नं, मैं शादी करने जा रही हूॅं। घबराईये नहीं। एक हफते में लौट आऊॅं गी।

ना - बहुत खूब। समझदार बेटी हैै। कितना ख्याल रखती हे माता पिता का। देखा बेटा, इसी लिये कह रहा था। सुगंधा लाखों में एक र्है। तुम्हारी अच्छी निबे गी।

अ - पर अब र्कैसे निबे गी।

ना - तुम्हारे लिये भी देखें गे बेटा, निभने वाली। पर यह कमल? रिश्तेदारों को क्या कह्रे गे। कुछ को तो होटल में ठहराया है।

ज - रिश्तेदार तो मेरे भी आये हुये है। पर फिकर न करो? कसूर मेरा है। सब खर्चा मेरे ज़िम्मे।

अ - पर अगर शादी न टालें तो। वह खर्चा बच जाये गा न।

ना - लो, और सुनो। लड़की बदल दो पर शादी नहीं टलने वाली। अब इतनी जल्दी क्या राह चलती को बिठा देें मण्डप पर।

ज - अरे सुरेश, हमेशा बुद्धू रहे हो। तुम समझे नहीं। लड़की तो अमित ने डूॅंढ रखी है। बस आप हॉं बोलो। बाकी इस का ज़ि़म्मा। क्यों अमित।

अ - जी, चाचा जी।

ना - पर यह तो सुगंधा के लिये तैयार था।

ज - वह हमारा मान रखने के लिये।

3.


अमित ने बैल बजाई तो चित्रा ने दारवाज़ा खोला।

चित्रा - तुम? तुम्हारी तो शादी है न आज। फिर यहॉं क्या कर रहे हो।

अमित - तुम्हें शादी के लिये लेने आया हूॅं।

च - मुझे? पर कल तो बात हुई थी कि अब हम कभी नहीं मिलें गे।

अ - वह कल की बात थी। आज की बात अलग है।

च - आज् क्या बदल गया।

अ - सब कुछ। पर अन्दर नहीं आने दो गी क्या।

च - अन्दर आ कर क्या करो गे।

अ - तुम्हारे माता पिता को प्रणाम करूॅं गा और उन का आशीरवाद लूॅं गा।

च - यह क्या बहकी बहकी बात कर रहे हो।

अ - और तुम्हारा हाथ मॉंग लूॅं गा।

च - इतनी जल्दी पागल हो जाओ गे, सोचा नहीं था।

अ - पागल नहीं हुआ पर इतना बताओ, अगर मैं ऐसा करूॅं तो तुम्हें एतराज तो नहीं हो गा।

च - वह समय निकल गया है।

अ - नहीं, समय लौट आया है। मेरे माता पिता भी आये हैं और चाचा भी। मिलने के लिये। उन्हें बुलाऊॅं क्या।

च - कुछ तो गड़बड़ है। आ जाओ और उन का भी स्वागत है। मैं मॉं बाप को बतलाती हूॅूं। तुम उन्हें बिठाओ। ं

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