रिकशा आगरा की
- kewal sethi
- Jul 22
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Updated: Jul 23
रिकशा आगरा की
किसी काम के सिलसिले में मुझे आगरा जाने का मौका मिला। राजा की मण्डी पर उतर कर लाजपत नगर गया और अपना काम कर वापस स्टेशन लौट रहा था कि अचानक ख्याल आया कि क्यों न अपने दोस्त खैराती लाल से मिलता चलॅूं। लौटने की गाड़ी में तो अभी काफी समय है। जिस दोस्त ने खैराती लाल का पता बताया था, उस ने कुछ इशारा भी कर दिया था कि स्टेशन से बहुत दूर नहीं है, किनारी बाज़ार की तरफ चले जाना, वहॉं किसी से भी पूछ लेना।
तो मैं किनारी बाज़ार की तरफ चल दिया। कहने को तो मित्र ने कह दिया था, पास में है पर जेसे जैसे चलता गया, वैसे वैसे वह दूर होता गया। थोड़ा थक गया तो सोचा इस में तो समय लग जाये गा रिक्शा कर लेते हें। उस समय आगरा में रिक्शा ही एक मात्र साधन था आने जाने का। आटो का ज़माना तो दशकों दूर था।
सो एक रिक्शे वाले को पूछा अजीज़पुरा चलो गे।
---- ज़रूर चलें गे बाबू जी
------और कितना किराया।
दोस्त ने कहा था रिक्शा आगरा में लेना तो किराया पूछ कर बैठना नहीं तो मुश्किल मे पड़ जाओ गे।
---- अरे हुज़ूर, आप से ज्यादा थोडे ही लें गे। बस दस आने दे दीजिये गां।
मैं बैठने वाला था कि एक दूसरे रिक्शे वाले ने कहा - --- क्यों बे] परदेसी को लूटता है। दस आने] आईये बाबू जी में आठ आने में ले जाऊंगा।
--- अरे बड़ा आया आठ आने में ले जाने वाला। आईये बाबू जी मुझे छह आने दीजिये गा। कहॉं जाईये गा।
--- भई, खैराती लाल जी के यहॉं जाना है।
दूसरा रिक्शे वाला बोला ---- खैराती लाल जो जूते का काम करते हैं।
अब खैराती लल का कारखाना था जूते बनाने का। बाटा जैसे कम्पनियों के जूते बनाते थे। दस बीस आदमी उन के यहॉं काम करते थे। पर क्या पता यहॉं आगरा में क्या कहते हैं। वह हमारे पंजाब में एक कहावत होती थी -
टाटा बड़ा़ लोहार है
बाटा बड़ा चमार है।
शायद आगरा में ऐसे ही कहते हो। हर वह शख्स जो जूते के व्यापार में हो, जूते का काम करता है। चाहे बनाता हो, दूसरों से बनवाता हो या बेचता हो या कारखाने को सप्लाई करता हो।
जिस अन्दाज़ सेे रिक्शा नम्बर दो ने खैराती लाल के बारे में बताया, लगा शायद उस का मकान जानता हो। मुझे तलाश नहीं करना पड़े गा। चलिये] इसी पर बैठते हैं।
पर पहले वाला अड़ गया।
—- बाबू जी ने मुझे पहले कहा था। तुम कैसे ले जाओ गे।
--- बाबू जी की मर्ज़ी है, जिधर बैठें, तुम कौन होते हो कहने वालं
--- इधर आईये बाबू जी, मैं चार आने में ले जाऊॅं गा।
--- अरे तुझे पता भी है, खैराती लाल कहॉं रहते है।ं बाबू जी मुझे चार आने ही दीजिये गा।
--- बाबू जी के पास पता हो गा उन का। ज़रा बताईयें। मैं ने कागज़ खोल का पढ़ा ---- नगला अजीज़पुरा।
अब पहले वाले की बन आई।
--- क्यों बे, किस खैराती लाल के यहॉं ले जा रहा थां तू। नगला अज़ीज़पुरा तो ढाई तीन मील पर है। तू चार आने मे कहॉं ले जाता।
--- जहॉं तू दस आने में ले जाता।
... क्या अज़ीज़पुरा पास ही नहीं है
... अज़ीज़पुरा तो पास में है पर नगला अज़ीज़पुरा दूसरा मौहल्ला है।
तब तक मुझे कुछ कुछ समझ आने लगी थीं। मैं चल पड़ा दूसरी तरफ।
जाते जाते बस इतना सुना] एक दूसरे से कह रहा था -- मेरे दस आने का नुकसान करा दिया। घुमा फिरा कर यहीं छोड़ देता।
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