आलस्य के बचाव में
- kewal sethi
- Jul 25
- 2 min read
आलस्य के बचाव में
विश्व में सब से आलोचनीय बात आलस्य हैं। कहावत भी बना ली गई है कि खाली दिमाब शैतान की कार्यशाला है। परन्तु दूसरी ओर देखें तो जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुये हैं वह खाली समय में ही हुये है। न्यूटन यदि बिना काम के पेड़ के नीचे नहीं बैठा होता तो क्या उस को सेब के नीचे गिरने के राज़ का पता चलता। फीतागोरस आराम से अपने बाथरूम में बैठा नहा रहा थाए तभी तो उसे घनत्व का विचार आया। सिकन्दर निकल पड़ा विश्व विजय पर। यदि वह अपने उस्ताद के पास बैठा रहता तो ईरान के साथ युद्ध करने का विचार नहीं आता। कितने व्यक्ति मारे गयेए कितने धायल हुये और यह सब हुआ क्योंकि सिकन्दर व्यस्त रहना चाहता था। मैसेडोनिया में बैठा रहता तो भी राजा ही रहता और विश्व खून खराबे से बचा रहता। अरिसटोटल कहीं नहीं गयाए कुछ नहीं किया पर उस का नाम सिकन्दर के नाम से अधिक प्रसिद्ध है।
इस के साथ यह भी देखिये। विश्व में जितना भी साहित्य सर्जन हुआ है वह केवल इस कारण हो पाया कि लेखक के पास समय था। यदि वह व्यस्त होता तो हम इन अमूल्य ग्रन्थों से वंचित रह जाते।
विश्व में जितनी भी बदइंतज़ामी है, वह उन लोगों की बदौलत है जो न स्वयं विश्राम करते हैं, न दूसरों को करने देते हें। आजकल के वातावरण में हर बात के लिये सीमा निर्धारित कर दी जाती है। इस के चक्कर में व्यक्ति बिना किसी कारण टैंशन में रहता हे। इस व्यस्तता का परिणाम आज कल के युवकों में देखा जा सकता है विशेषतया कम्पूटर सम्बन्धी कार्यालयों में। इस का स्वास्थ्य पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ता हेए यह बताने की आवश्यकता नहीं है। हर कार्यक्रम में समय सीमा बॉंध देना कार्य को जल्दी तो नहीं करा पाता पर टैंशन अवश्य बढ़ा देता है। और इस का जो परिणाम होता हेए वह हम जानते ही हैं। यह लोग बिना रुके काम में लगे रहते हैं और नहीं जानते कि आराम क्या चीज़ है। उन्हें काम करने का फितूर सा रहता है। और मज़ाक यह है कि उन का कहना है कि बुढ़ापे में वह आराम कर सकें गे। अरे, आराम करने का तो कोई समय थोड़ा ही निश्चित है। करना है, अभी कर लो।
भगत रबीक कह गये है ..ष्आज करना है सो कल कर ले, कल करना है सो परसों। जल्दी इतनी क्यों पड़ी है जीना है अभी बरसों।
मेरे विचार में शैतान आलस्य के सख्त खिलाफ है और वह चाहता है कि हर व्यक्ति काम में मसरूफ रहे। व्यस्त नहीं रहें गे तो अपने जीवन पर विचार करें गे, अपने लक्ष्य पर विचार करें गे। धर्म की ओर रुचि बढे़ गी। ईष्वर का नाम लें गे जो शैतान का दुश्मन है।
हमारे ऋषि मुनि तो आश्रम में रहते थे। कोई समय सीमा वाला कार्य उन के पास नहीं था। केवल तपस्या और मनन और इस का परिणाम देखिये कि कैसा साहित्य बनाया जो कि सब को संनमार्ग पर लगा सकता हैं। जब कर्म से फुरसत मिले तभी कर्ता की याद आती है।
वही लक्ष्य है या होना चाहिये।
इतना लिख लिया, बहुत है। अब आराम करना चाहिये।
Comments