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  • kewal sethi

प्रतीक्षा

Updated: Mar 25

प्रतीक्षा


यॅू तो वह मेरे से दो एक साल छोटी थी पर हम एक ही कक्षा में थे। इस से आप यह अंदाज़ न लगायें कि मैंं नालायक था और एक ही कक्षा में दो एक साल रह कर अपनी नींव को पक्की करना चाहता था। शायद बाप के तबादले होते रहने के कारण ऐसा हुआ हो। पर जो भी कारण रहा हो, वह और में एक ही कक्षा में थे उम्र के फरक होते हुये भी। हॉं, यह बताना ज़रूरी है कि वह सुन्दर भी थी और ज़हीन भी।


एक बार वह तीन एक रोज़ कालेज नहीं आई। चौथे रोज़ जब वह आई तो उसे ने मुझ से पिछले तीन दिन के नोटस मॉंग लिये। उस ने कुछ इस अंदाज से नोटस मॉंगे कि मैं ने उसे नोटस तो दिये ही, साथ में अपना दिल भी दे दिया। उस ने न तो मेरे नोटस वापस किये और न ही मेरा दिल। हॉं, उस ने कुछ दिन बाद मझे शुक्रिया अदा करते हुये एक करोशिये से बनाया हुआ रूमाल भी दिया। उस रूमाल के बीचों बीच एक पान जैसा आकार भी था। शायद वह उस का दिल था जो उस ने मुझे दे दिया।


इस के बाद तो हमारी देास्ती हो गई और जैसे कि फिल्म में कहते हैं, एक दिन यह दोस्ती प्यार में बदल गई। हम ने वायदे कर लिये एक दूसरे के होने के।

पर हम एक न हो सके।


कारण मेंरी मॉं।


यह नहीं कि मॉं को वह पसन्द नहीं थी। कई बार वह हमारे घर में आई और मॉं ने उस का स्वागत किया। बिना मिठाई खिलाये तो वह उस को जाने ही नहीं देती थी। अकेले में मुझ से कहती थीं - बड़ी प्यारी जोड़ी है। बस ज़रा परीक्षा अच्छी तरह पास कर लो और अच्छी से नौकरी लग जाये, फिर देखों। और में अपनी परीक्षा की तैयारी और ज़ोर से करने लगता।

परीक्षा भी हो गई और नौकरी भी लग गई। अच्छी सी।


फिर क्या हुआ।

मिलन नहीं हो सका।


हुआ यह कि उस के बाप ने इंकार कर दिया। कहा कि मेरी लड़की उस घर में नहीं जाये गी, जिस में सास हो। मेरी मॉं ने बहुत समझाया कि उस की भी इच्छा है, हमारी भी इच्छा है। वह तो हमारी बेटी की तरह रहे गी। कोई तकलीफ नहीं होने दें गे। पर उस के बाप का कहना था कि सास तो सास ही होती है, मॉं नहीं बन सकती।


और उस के बाप के आगे न मेरी मॉं की चली, न ही उस की। उस ने मुझे कई बार कहा कि जब तक मॉं है तब तक हमारा मिलन नहीं हो सकता। पर अब मैं अपनी मॉं को कैसे कहता कि तुम जाओ तो मेरा जीवन बने। न वह अपने बाप को छोड़ने को तैयार थी न मैं अपनी मॉं को।


कारण तो बाद में पता चला। उस की मॉं ने अपनी सास के हाथों बहुत कष्ट पाया था। और उस के बाप चाहते हुये भी कुछ कर नहीं पाये थे। अपनी बीवी का हाल देखते और कुढ़ते। वही जज़बा उन के भीतर आ गया और अपनी बेटी की खुशी के लिये यह प्रण ले लिया कि उस की बेटी की सास नहीं हो गी।


इस बात को दो एक साल बीत गये हैं। उसे अभी भी अपने बाप का प्यार हासिल है और मुझे मेरी मॉं की ममता। हम दोनों प्रतीक्षा में है।


दिल बदले या दिन बदलें।


पुनश्च:

और फिर एक दिन समाधान मिल गया और चारों ओर प्रसन्नता फैल गई।

लिव इन।

उस का बाप खुश है क्योंकि वह बहू नहीं है और इस लिये उस की सास नहीं है।

मॉं खुश है कि मेरा घर बस गया है।

और हम दोनों तो खुश हैं ही।


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