top of page

ऊॅंचाई

  • kewal sethi
  • Apr 4
  • 2 min read

ऊॅंचाई 


- लगता है कि अब हमारा साथ रहना मुमकिन नहीं है। 

- यह ख्याल अचानक क्यों आ गया

-  ख्याल तो बहुत पहले आया था पर कहने की हिम्मत आज ही हुई। 

- और वह हिम्मत अनुराधा से मिलने के बाद आई।  

‘- हॉं, ऐसा ही समझ लो। 

- क्या कहा उस ने, क्या वायदा किया। 

- कुछ नहीं। सिर्फ इतना कहा कि जो निभ न सके, उसे छोड़ देना ही बेहतर है। 

- तो छोड़ने का इरादा उस ने सुझाया। 

- वैसे तुम्हारा क्या ख्याल है इस के बारे में 

- जब तुम ने फैसला कर ही लिया है तो मेरे ख्याल का क्या मतलब

- यानि तुम्हें इंकार नहीं है। 

- मैं ने ऐसा तो नहीं कहा। 

- मतलब तो वही है।

- अब मतलब अपने हक में निकालने का तो तुम्हें इख्तयार है। वैसे अनुराधा ने कहा क्या। 

- अनुराधा ने कहा कि जब खज़ॉं आती है तो फूल का वजूद खत्म हो जाता है। उसे संजो कर रखने का फायदा नहीं है। 

- और खज़ॉं आ गई, ऐसा तुम्हें लगने लगा। 

- ंयह तो तुम भी समझती हो। 

- खूब अच्छी तरह। जब सर्द हवायें चलने लगती हैं तो खजॉं आ जाती है। जब बरसात की बूॅंदें दम तोड़ने लगी हैं तो खजॉं आ जाती है। 

- वाह। बहुत उम्दा तरीके से तुम ने यह बात कही। 

- लेकिन ऐसा है नहीं। वजह कुछ और ही है। वजह गर्मी का बढ़ जाना है। खजॉं का आना नहीं। 

- मतलब?

- जब गर्मी आती है तो गर्म हवा ऊपर की तरफ जाती है। 

- गर्मी? काहे की गर्मी? 

- पैसे की गर्मी, रुतबे की गर्मी, नाम की गर्मी। 

- शायद। पर गर्मी आती है तो कई चीज़ें पीछे छोड़ जाती है। पानी उस के साथ नहीं जाता। वह नीचे रह जाता है। 

- यहीं तुम गल्ती करते हो। पानी नीचे नहीं रहता, वह साथ में ही ऊपर जाता है। वह भाप बन जाता है पर साथ रहता है। दिखता नहीं है पर साथ साथ ही रहता है। फूल और पानी में यही अन्तर होता है। फूल सुन्दर लगता है पर गर्मी में मुरझा जाता है। साथ नहीं दे पाता। 

- फिर भी अनुराधा सही कहती है। गर्मी हो या सर्दी, फूल साथ नहीं देता। उसे संजो कर रखने का तुक नहीं है। 

- सही समझे। फूल तो मुरझाने के लिये है। इस लिये गर्मी हो या सर्दी, पानी का साथ ही ठीक रहे गा। 

- कहना क्या चाहती हो। 

- सही कि अनुराधा को समझने में गलती लग गई है। उसे फूल और पानी में अन्तर नहीं मालूम। पल भर का आकर्षण और जीवन भर का साथ अलग अलग बात है। 

- तुम इतनी समझदार कब से हो गई हो। 

- मैं तो वही हूॅं जो पहले थी। चाहे जैसी भी थी, वैसी अब भी हूॅं। 

- तो तुम मुझे नहीं छोड़ो गी। 

- सवाल ही पैदा नहीं होता। पर गर्मी सर्दी का फैसला तुम्हें ही करना है। मैं ने तो अपनी राय बता दी है। मैं दिखूॅं या न दिखूॅं, यह तुम्हें ही सोचना है। 


Recent Posts

See All
एक शाम साथ में

एक शाम साथ में (इस बार मेरे पास इस लेख की तारीख है। यह 4.12.1965 है, बहुत समय पहले) 1 चौराहे पर पहुँचकर वह थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन उसे ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं हुई। धीरे से उसने अपना हाथ उसके कंधे पर रखा औ

 
 
 
मन का चैन

मन का चैन - कहो ललिता बहन, कैसी हैं। - सब ईश्वर की कृपा है। - और बहु कैसी है। - सिरफिरी, कहना ही नहीं मानती, मनमर्जी करती है। - क्येां क्या हो गया। वह तो इतनी सुशील है। काम में भी चुस्त और बात में भी

 
 
 
पहचान

पहचान - तुम्हें मालूम है, तुम्हें थाने क्यों बुलाया गया है? - आप बताईये। मुझे तो मालूम नहीं। - दिखते तो हो सीखिया पहलवान पर चार चार व्यक्तियों को तुम ने चोट पहॅंचाई है। - मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया। - इ

 
 
 

Comments


bottom of page