कोरोना करो ना
जीवन का रह गया था मकसद बस एक, गप्पें ही लड़ायें।
मिलें दोस्तों से बीते दिनों की बात याद करें और करायें ।।
न जाने कहाॅं से कोरोना ने कर सब गुड़ गोबर कर दिया।
सब को अपने अपने घरों में ही इस ने नज़रबन्द कर दिया ।।
कहाॅं तक देखें टी वी, दौहरा रहे हैं चैनल पुरानी कहानिया ।
या फिर कोविद से मजबूर हुये इंसानों की बढ़ती परेषानियाॅं।।
वाटस एप्प का बहुत बड़ा सहारा था मित्रों से गप लड़ाने का।
खत्म हो गये उन के भी किस्से कुछ बचा नहीं सुनाने को।।
विविध भारती क्या कम थी पुरानी फिल्मों के गीत सुनाने को।
यार दोस्तों ने भेजना शुरू कर दिया अपने पसंदीदा गाने को।।
किताबों का भी था अपने ज्ञान को बढ़ाने का एक सहारा।
तीन तीन पुस्तकालयों के सदस्यों में लिखा था नाम हमारा।।
अब लाईब्रेरी सब हुई बन्द, रीडिंग रूम पर लगे हैं ताले।
ऐसे में कौन कब तक घर पर आई यह अखबार खंगाले।।
और अखबारों में भी है बताइ्रये क्या बचा पढ़ने के लिये।
कोविद की खबरों से ही किये हैं सब ने अपने पन्ने काले।।
खाने पीने को तो मिल जाता है पास में ही सारा सामान।
गनीमत है कि खुली हुई है पड़ोस की किराने की दुकान।।
पर कितना बनाये, कितना खाये, इस की सीमा भी है एक।
उम्र है, चलना फिरना है नहीं, बताईये कैसे पचा पाये पेट।।
ऐसे में करते हैं बस एक सही इक दुआ अल्लाह ताल्ला से।
रहम कर कुछ, जल्दी से तू अब कोरोना को वापस बुला ले।।
सुपर सीनियर नागरिक हो गये सब मित्र, अब और क्या कहे।
कक्कू कवि की बस दुआ यही, खुश रहें सेहतमंद सब रहें।।
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