न्यायामूर्ति कुरियन भोज में नहीं आये।
इस पर मुझे भी एक घटना याद आ गर्इ।
मैं आयुक्त ग्वालियर था। मंत्री जी भोपाल से आये तथा उन्हों ने जन्माष्टमी के दिन बैठक रख ली। दफतर में बैठा था तो मैं ने कहा, पता नहीं यह मन्त्री लोग त्यौहार के दिन बैठक क्यों रख लेते हैं। एक अधिकारी, जो वहां बैठा था, ने मन्त्री जी को यह बात बता दी।
मन्त्री जी का फोन आया। काफी नाराज़गी भरे अन्दाज़ में। बोले आप ने मेरी बैठक में आने से इंकार कर दिया। मैं ने कहा कि ऐसी कोर्इ बात नहीं है। कहने लगे कि मुझे किसी ने बताया है कि आप ने ऐसा कहा और कैसे नहीं आयें गे आप बैठक में। मैं ने उन्हें बताया कि मैं ने कहा था कि बैठक जन्माष्टमी के दिन क्यों रख लेते हैं पर न आने का तो नहीं कहा था पर अब जब आप इस तरह से बात कर रहे हैं तो मैं बैठक में नहीं आ रहा।
बैठक में नहीं गया। मुख्य मन्त्री से मेरी शिकायत की गर्इ। मुख्य मन्त्री ने पूछा और मैं ने उन्हें सिथति से अवगत करा दिया। वह कुछ बोले नहीं।
बस इतना ही।
बेबसी तुम फिर आ गये - सचिव ने फारेस्ट गार्ड राम प्रसाद को डॉंटते हुये कहा। - सर, अभी तक कोई आडर्र नहीं हुआ। - सरकारी काम है। देर होती ही है। अब मुख्य मन्त्री के पास यही काम थोड़े ही है। - पर हज़ूर थोड़ी
रिश्वत जंगल के ठेकेदार ने जंगल में एक सैक्टर का ठेका लिया जिस में अस्सी वर्षीय योजना के तहत चिन्हित वृक्ष काटे जा सकते थे। ठेकेदार ने वह पेड़ तो काटे ही, साथ में और भी काट लिये जो चिन्हित नहीं थे। न के
मुझे सब है याद ज़रा ज़रा — 6 अपनी आत्म कथा लिखते समय इस बात पर बल दिया जाता है कि उन बड़े आदमियों का ज़िकर किया जाये जिन के सम्पर्क में व्यक्ति आया था। इसी तारतम्य में मैं आज रिब्बन लाल के बारे में लिख