a painful memory
- kewal sethi
- Apr 2
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तबादला
मध्य प्रदेश में एक ज़मने में एक महत्वपूर्ण उद्योग होता था जिसे तबाला उद्योग कहा जाता था। यह उद्योग ऐसा था कि इस में निवेश कुछ भी नहीं करना पड़ता था किन्तु लाभ कॉफी अधिक होता था। लाभांश खरीदार की ज़रूरत पर निर्भर करता था। तबादलों की संख्या इतनी बढ़ गई कि समाचारपत्रों में भी आंकड़े छपने लगे। कुछ सीमा बॉंधने केे लिये आदेश निकाला गया कि विघायक किसी विभाग में तबादले के लिये पॉंच से अधिक नाम प्रस्तावित नहीं कर सकता। इस आदेश का पालन हुआ या नहीं, कहना कठिन है।
परन्तु इस बीच मुख्य मन्त्री का तबादला हो गया। और उन का पद इिल्ली से तबादले में आये व्यक्ति ने सम्भाल लिया। उन्हों ने आदेश निकाला कि कोई भी तबादला अब बिना मुख्य मन्त्री की स्वीकृति के बिना नहीं हो गा। तबादले का प्रस्ताव सम्बन्धित मन्त्री की स्वीकृति प्राप्त कर मुख्य सचिव के माध्यम से भेजा जाये गा। इस बीच मेरा भी तबादला होे गया (पर वह इस उद्योग का हिस्सा नहीं था। उस की कहानी अलग है)।
इस स्थिति ने मेरी एक कविता तथा एक कहानी को जन्म दिया। दोनोें एक ही व्यक्ति से सम्बन्धित हैं। (यह सच्ची बात पर आधारित हैं)। अब मेरे लिये मुश्किल है कि पहले कौन सी पेश करूॅं। सिक्का उछालने पर कविता का नाम आया, सो वह पेश है। कहानी कभी बाद में।
मैं फारेस्ट सैक्रट्री अपनी ही कुर्सी पर बैठा
अपनी हिम्मत पर अपने बल पर ऐंठा
किसी की न सुनने का जनून अपने में समेटा
नहीं किसी से समझता अपने को हेठा
इंकार पर इंकार करता गया
हर कागज़ को फ़ाईल में धरता गया
पैसा देने वालों को नकार गया
विधायक की बात भी टाल गया
पर सोचा कभी मैं ने उस मज़लूम के बारे
जिस का बेटा था वास्तव में मौत के किनारे
उस का तबादला हो न पाया केवल इस मारे
कि समन्वय से उस का प्रकरण कौन गुज़ारे
गरीब इलाज को तरस गया
बाप दूर पर ही रहा पड़ा
कोई बड़ा आदमी उस के साथ न था
क्योंकि पैसा उस के पास न था
कोई नहीं थी उस के पास सिफारिश
सिर्फ अपने अफसर से उस ने की गुज़ारिश
प्रकरण उस का ठीक था असरदार था
इस लिये मरहले करता गया पार था
फाईल धीरे धीरे ऊपर चढ़ती गई
और बीमारी उस के बेटे की बढ़ती गई
दौड़ थी यह अजीबो गरीब
मौत आती जा रही थी हर लम्हा करीब
आस लगाये बैठे हैं वह दीवाने
कौन जीते गा यह दौड़ कौन जाने
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