पुरानी कहानी, नया रूप
एक बुजर्ग व्यक्ति ने मरते समय अपने 19 ऊॅंटों को इस प्रकार अपने बेटों में बॉंटा। सब से बड़े बेठे को आधे, मंझले बेटे को चौथा हिस्सा और छोटे बेटे को पॉंचवॉं हिस्सा देने की वसियत की।
उस के मरने के बाद यह मुश्किल हुई कि 19 ऊॅंटों को बॉंटा कैसे जाये। आखिर तीनों ने गॉंव के सब से बुजर्ग आदमी से सलाह लेने की सोची।
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- नहीं, वैसा नहीं हुआ जैसा आप सोच रहे हो। उस ने अपना ऊॅंट मिलाया नहीं।
उस ने कहा कि बाप सनकी था जिस ने इस प्रकार की वसियत की। इस लिये उस को मान्यता नहीं दी जा सकती। सभी भाईयों को बराबर बराबर हिस्सा मिलना चाहिये। उस ने एक ऊॅंट अपने पास रख लिया और बाकी बराबर बॉंट दिये।
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बड़ा बेटा इस से नाराज़ हो गया। उस ने अदालत की शरण ली।
एक अदालत
उस के बाद दूसरी अदालत
फिर उच्च न्यायालय
पंद्रह साल बाद उच्च न्यायालय ने निर्णय लिया कि निचली अदालतों (माफ कीजिये, अभी अभी सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि निचली अदालत नहीं उसे पहली/ दूसरी अदालत कहना चाहिये, इस कारण) पहली और दूसरी अदालत का कहना सही है कि बाप सनकी था और उस की वसियत को मान्यता नहीं दी जा सकती। उसे पता होना चाहिये था कि 19 को न दो, न चार से और न ही पॉंच से भाग दिया जा सकता है। उच्च न्यायालय ने फैसला लेने वाले व्योवृृद्ध की बात को सही ठहराया और आदेश दिया कि उसे तीन ऊॅंट और इनाम में दिये जायें।
शेष ऊॅंट तीनों भाईयों में बराबर बराबर बॉंट दिये जायें।
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