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पहचान बनी रहे

  • kewal sethi
  • Jun 9
  • 2 min read

पहचान बनी रहे


राज अपने पड़ौसी प्रकाश के साथ बैठक में प्रतीक्षा कर रहा था। उन का प्रोग्राम पिक्चर देखने जाना था और राज की पत्नि तैयार हो रही थी। ं

- सुनती हो, पिक्चर का समय हो गया है। जल्दी से आ जाओ।

- बस, दो मिनट मे आई।

प्रकाश ने कहा - भाभी दस मिनट से दो मिनट में आने का कह रही है। दो मिनट कब खत्म हों गे।

- अरे प्रकाश, अभी कुॅंवारे हो, नहीं समझोे गे। शुक्र हेै, उस ने एक मिनट नहीं कहा, नहीं तो दुगना समय लगता।

खैर पत्निश्री आ गई। प्रकाश से रहा नहीं गया। बोला

- भाभी, गुलाबी साड़ी आप पर खूब सज रही है। और क्या कहने, मैचिंग कंगन और सैण्डल भी। क्या कहने।

- अब तैयार हो तो चलें। कपूर लोग भी इंत़ार कर रहे हों गे। और श्रीमती शुक्ला भी।

- श्रीमती शुक्ला भी। वह कैसे।

- अरे, वह शुक्ला जी दौर पर हैं। चार दिन से तो श्रीमती कपूर ने सोचा, उस की भी आउटिंग हो जाये गीं।

- पहले क्यों नहीं बताया कि शुक्ला दी भी हों गी। मैं अभी आई।

यह कह कर श्रीमती राज अन्दर चली गई। और दोनों प्राणियों की प्रतीक्षा का समय बीतने लगा।

- इस बार फिर दो मिनट में आये गी कि एक मिनट में, - प्रकाश ने जानना चाहा।

- मेरा ख्याल है, एक मिनट ही लगे गा।

- एक मिनट? तब तक आधी पिक्चर तेो समाप्त हो चुकी हो गी।

समय पा कर श्रीमती राज आ गईं। अब वह हरी साड़ी में थीं - मैचिंग कंगन और सैण्डल के साथ।

- इस की क्या ज़रूरत थी। गुलरबी साड़ी तो ठीक ही थी।

- तुम नहीं समझेा गे। तुम्हें कुछ याद तो रहता नहीं है। याद है, श्रीमती तिवारी ने दो महीने पहले अपने बेटे का जन्म दिन मनाया था।

- तो?

- हम लोग वहॉं गये थे।

- तो?

- श्रीमती शुक्ला भी वहॉं आई थीं।

- तो?

- उस दिन मैं ने गुलरबी साड़ी पहनी थी।

- ओह?

- अब वही साड़ी पहन कर जाती तो क्या अच्छा लगता। श्रीमती शुक्ला क्या सोचतीं।

- तो आज पिकचर का प्रोग्राम कैंसल करें।

- क्यों?

- अगर श्रीमती शुक्ला ने सोचा कि फिर वही बीवी लाये हो तो?

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