यह दुनिया वाले क्या जानें
- kewal sethi
- Jul 11
- 3 min read
यह दुनिया वाले क्या जानें
गिरधारी लाल नारंग
मुबारक हो तुम को यह देहर-ओ-हरम।
मुबारक हमें यह दार- ओ- हरम।।
हम अर्श से बातें करते हैं, यह नादॉं दुनिया क्या जाने।
हम इश्क की राह पर चलते हैं, यह नादॉं दुनिया क्या जाने।।
हार हमारी होती जिस में, जीत उसे हम कहते हैं।
शिकस्तो फतेह की बातों को यह नादॉं दुनिया क्या जाने।।
जिसे कहरो सितम कहती यह दुनिया, वस्ले सनम हम कहते हैं।
इसे राज़े मुहब्बत कहते हैं, यह नादॉं दुनिया क्या जाने।।
भर पेट मज़ाक उड़ाते हैं, यह अहले अक्ल, यह सिरवाले।
यह राज़े जोशो खरोशो जनूॅं, दिल के गदा, क्या जानें।।
जो राहे तरक्की दुनिया की, बे मकसद उसे हम कहते हैं।
है राहे तरक्की और ही शै, यह नादॉं दुनिया क्या जाने।।
उल्लू की तरह इस दुनिया की फितरत, इसे तो नूर से नफरत है।
यह दुनिया तो बस तीरगी है, यह राज़े उजाला क्या जाने।।
खिर्दो खबर के चक्कर में यह दुनिया वाले रहते हैं।
यह कूचा है दिल वालों का, अहले अक्ल यह क्या जानें।।
हुस्न जिसे वो कहते हैं, दामे यार है हमारे लिये।
फसूॅंगर की इन चालों को शेहवत की, दुनिया क्या जाने।।
रिया की चौड़ी चौसर पर चलाता दाव खिलाड़ी वो।
खिलाड़ी के इन पेचों को यह गाफिल दुनिया क्या जाने।।
वह माना हुआ खिलाड़ी है, कभी हार सुनी न उस की होती।
अहले गरज़ जिसे जीत समझते, हार वो उन की क्या जाने।।
कभी लालच देता पैसे का, कभी फैंकता पासा अज़मत का।
है किसी को देता जहो मकॉं यूॅं फंसाता सब को अनजाने।।
हम बिसमल हैं, हम घायल हैं, हम से पूछो ऐ अहले जहॉं ।
हम गुज़रे हैं इस मंज़िल से, लो सुनो गुज़रे कुछ अफसाने।।
सम्झे थे उस की नज़रे करम, थे हासिल जब इशरत के सामॉं।
सरासर थी यह हमारी खता, हम थे गुमराह, हम थे अनजाने।।
नर्मतर ज्यूॅं ज्यॅं होती गई किस्मत अपनी की कड़ियॉ।ं
वो परदे थे नासमझी के, किये ओझल जिस ने सनम खाने।।
भरपेट पिया हम ने उस को, उस ने हम को भरपेट पिया।
वह सम की शमॉं तो वैसी रही, हम झुलस गये ज्यूॅं परवाने।।
झुलसे झुलसे फिरते हैं ला हासल मकसद, नाकारा।
हसरत है अब तैशे सनम, यह नाज़ुक दुनिया क्या जाने।।
इसी में आता सूदे नज़र, ऐ दुनिया वालो सुन लेना।
दरकार नहीं अब लुत्फो करम, वो मीना सागर पैमाने।।
अब बन्द किया हम ने यह जुआ, इल्लत थी जिस की कभी।
अब चैनो सकूॅं कुछ आने लगा, हो मस्त लगा दिल कुछ गाने।।
अब दर्द है दिल को देता चैन हमें, लाती है राहत रंजो अलम।
दुख और सुख के राज़ों को यह यह नादॉं दुनिया क्या जाने।।
निवेदन
यह गज़ल श्री गिरधारी लाल नारंग द्वारा लिखी गई है।
श्री नारंग मेरे एफ एस सी (कक्षा 11 तथा 12) में जमायती थे। उस के बाद पारिवारिक समस्या के कारण वह अपनी शिक्षा जारी नहीं रख पाये। डाक तार विभाग में सेवा करते रहे और वहीं से सेवा निवृत हुये। बीच में उन की प्रवृति धार्मिक हो गई और वह संतों के साथ् ाउठने बैठने लगे। आगे चल कर एक स्वयंसेवी संस्था बनाई जिस से वह अपनी कालोनी तथा आस पास के गरीब लोगों तथा बच्चों की सेवा कर सकें।
हमारी पीढ़ीे (जो पाकिस्तान से आई थी) की तरह उन का उर्दू का ज्ञान भी आला दर्जे का
हे। और यह उन की गज़लों में देखा जा सकता है।
एक नई परम्परा है कि गज़ल के नीचे उर्दू शब्दों के हिन्दी अर्थ दिये जाते हैं। यहॉं ऐसा नहीं किया जा रहा है क्योंकि मेरे ख्याल में गज़ल का असली मज़ा तो उस की रवानी में है, उस के शब्दों में नहीं। यदि किसी को अनुवाद चाहिये तो वह गूगल की सहायता ले सकता हेै पर उस में आनन्द न आये तो वह मेरा ज़िम्मा नहीे है।
तो यह उन की पहली गज़ल पेश है। (आगे और आने की भी उम्मीद है)।
Comments