मन का चैन
- kewal sethi
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मन का चैन
- कहो ललिता बहन, कैसी हैं।
- सब ईश्वर की कृपा है।
- और बहु कैसी है।
- सिरफिरी, कहना ही नहीं मानती, मनमर्जी करती है।
- क्येां क्या हो गया। वह तो इतनी सुशील है। काम में भी चुस्त और बात में भी कुशल।
- अरे, यह सब मत पूछो। मैं तो बहुत परेशान हूॅं।
- पिछले महीने तक तो बड़ी तारीफ कर रही थी। अब नया क्या है।
- बात यह है कि अब वह पेट से है।
- बधाई हो। तो अब तुम दादी बनने वाली हो।
- पर मैं दादा बनना चाहती हूॅ।
- अरे यह क्या कह रही हो।
- नहीं नहीं, मेरा मतलब है, मैं पौता चाहती हूॅ, पौती नहीं।
- तो इस में बहु से नाराज़गी क्यो। यह तो ईश्वर के हाथ है।
- पर कम से कम पता तो लगाया जा सकता है।
- पागल हो क्या। पता है ऐसा करना मुश्किल है।
- मुश्किल क्यों। साईस के युग मे सब आसानी से हो जाता है।
- समझी नहीं। इस की कानून में मनाही है।
- डाक्टर तो अपना ही है। किसी को पता भी नहीं चले गा।
- बेटा क्या कहता है।
- वह बदल गया है। बीवी की ही बात मानता है।
- सही है न। उसे पता है कि डाक्टर भी अन्दर जाये गा और वह भी।
- सब कहने की बातें हैं
- पर इतनी रिस्क लेना सही नहीं हो गा। आ बैल, मुझे मार जैसी बात हो जाये गी।
- रिस्क कैसी? सब अन्दर की बात है।
- पता करने से हो गा क्या। बदल तो नहीं पाओं गी। या कुछ और इरादा है।
- राम राम, ऐसा कैसे सेाच सकती हो। बहु है मेरी।
- तो फिर इतनी जल्दी क्यो। महीनों की ही बात है। तुम तो नाम रखने की सोचो।
- नाम भी बेटा बेटी देख कर रखा जाता है।
- एक सलाह दूॅं। मानो गी।
- बताओ
- किसी ज्योतिषी से पूछ लो। वह सही सही बता दे गा। और कोई जोखिम नहीं।
- यह बात तो अच्छी कही तुम ने।
- बेटे की और बहु की कुण्डली ले जाना और हो सके तो अपनी भी।
- कौन सा ज्योतिषी सही हो गा।
- कोई भी हो। दक्षिणा ले गा और बेटा हो गा, बता दे गा। तुम भी खुश और वह भी खुश।
- और गल्त हुआ तो?
- कुछ रकम ही तो जाये गी। इतनी देर मन का चैन तो रहे गा।
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