top of page
  • kewal sethi

मुझे सब है याद ज़रा ज़रा — 6

मुझे सब है याद ज़रा ज़रा — 6


अपनी आत्म कथा लिखते समय इस बात पर बल दिया जाता है कि उन बड़े आदमियों का ज़िकर किया जाये जिन के सम्पर्क में व्यक्ति आया था। इसी तारतम्य में मैं आज रिब्बन लाल के बारे में लिख रहा हूॅं। रिब्बन लाल एक आदिवासी युवक था, बहुत निष्ठावान। बहुत कम समय उस के साथ रहने का अवसर मिला पर जितना था, अच्छा था।

रिब्बन लाल होशंगाबाद में चपड़ासी के पद पर था। जब मेरी नियुक्ति वहाॅं सहायक कलैक्टर के रूप में हुई तो उसे मेरे साथ कर दिया गया। सफाई, खाना बनाना उस का काम था। मेरे लिये यह पहला अवसर था जब किसी सरकारी व्यक्ति को मेरे लिये काम करने के लिये नियुक्त किया गया। मुझे इस से कोफत होती थी कि सरकारी आदमी से कैसे घर का काम लिया जाये। मेरे बड़े भाई ने परामर्श दिया कि मैं अपनी अन्तरात्मा की शॉंति के लिये उसे कुछ दे दूॅं। सो उसे मैं ने अपने वेतन का दस प्रतिशत देना आरम्भ किया।


मेरी शुरू से आदत है कि मैं दो रोटी ही खाता हूॅं (कारण फिर कभी)। सो शाम को जल्दी उसे छुट्टी देने के लिये मैं ने उसे कहा कि दो रोटी मेरे लिये बना कर चला जाये करे। मैं समय पर गरम कर खा लूॅं गा। हुआ यह कि कुछ रोज़ बाद उस ने सोचा कि दो रोटी से मेरा क्या होता हो गा। साहब भूखे रह जाते हों गे। उस ने तीन रोटी बनानी आरम्भ कर दी। अब मेंरी आदत यह कि खाना ज़ाया नहीं करना चाहिये। उस समय फ्रिज तो था नहीं, इस कारण मैं तीनों रोटी खा लेता था। कुछ दिन बाद रिब्बन लाल को लगता था कि तीन रोटी भी शायद कम हैं। वह चार बनाने लगता था। तब उसे टोकना पड़ा कि भई दो ही काफी हैं। इस तरह की बात दो तीन बार हुई।


कुछ समय बाद मेरा स्थानान्तर हरदा हो गया। मैं चाहता था कि रिब्बन लाल भी वहाॅं साथ चला चले। हरदा भी उसी ज़िले में ही था और स्थानान्तर में कोई समस्या नहीं थी। पर उस ने इंकार कर दिया। उस का कहना था कि हरदा उस के घर से बहुत दूर था (लगभग 80 किलोमीटर)। इस तरह हमारा साथ छूट गया।

5 views

Recent Posts

See All

संयोग

संयोग कई बार जीवन में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें संयोग कहा जाता है। क्यों, कैसे, इस का विश्लेषण नहीं किया जा सकता। यह बात उसी के बारे में ही है। पर पहले पृष्ठभूमि। मेरे दादा का देहान्त उस समय हो ग

यादें

यादें आज अचानक एक पुराने सहपाठी विश्ववेन्दर की याद आ गई। रहे तो हम शाला में साथ साथ केवल दो साल ही पर वह समय सक्रिय अन्तकिर्या का था। विश्वेन्दर आगे पढ़ पाया या नहीं, मालूम नहीं। कैसे जीवन कटा, मालूम न

बेबसी

बेबसी तुम फिर आ गये - सचिव ने फारेस्ट गार्ड राम प्रसाद को डॉंटते हुये कहा। - सर, अभी तक कोई आडर्र नहीं हुआ। - सरकारी काम है। देर होती ही है। अब मुख्य मन्त्री के पास यही काम थोड़े ही है। - पर हज़ूर थोड़ी

bottom of page