top of page
  • kewal sethi

भस्मासुर और शिव

भस्मासुर और शिव


शिव ने प्रसन्न हो कर भस्मासुर को वरदान दिया कि जिस के सर पर हाथ रख दो गे, वह समाप्त हो जाये गा। भस्मासुर ने वरदान पाते ही पहले प्रयोग के रूप में शिव को ही चुना। अब शिव आगे आगे और भस्मासुर उन के पीछे पीछे। तब विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का अपने साथ नृत्य के लिये कहा तथा इस नृत्य में ही भस्मासुर नष्ट हुआ।

एक सीधी सी कहानी जो विश्वसनीय भी नहीं लगती। शिव वरदान देते हैं तो उसे वापस भी ले सकते थे।


इस कथा का तात्पर्य क्या था। क्या केवल कहानियों में एक और कहानी।


थोड़ा मणन करें तो इस में से कुछ नई बात मिल सकती है।


शिव तो महाकाल हैं। काल अर्थात समय। समय को नष्ट करने का प्रयास। क्या यह सम्भव है।


भस्मासुर क्या है। जो हर बात को राख में बदल देता है, नष्ट कर देता है। भस्मासुर है प्रतीक क्रोध का।


क्रोध आरम्भ होता है छोटी सी बात से। पर यदि उसे नियन्त्रित न किया जाये तो वह समय के साथ बढ़ता है। समय ही उस को बलवान बनाता है। वह जब अति को पहॅंचता है तो बुद्धि को, विवेक को, शाॅंति को वह भस्म कर देता है। क्रोधित मनुष्य अपने को, अपने समय को नष्ट करता है।


समय को भी नष्ट करने के लिये क्रोध समर्थ है। तब उसे कैसे नियन्त्रित किया जाये।


क्रोध तब बलहीन हो जाता है जब उस का सामना सौम्य स्वभाव से होता है। क्रोध का मुकाबला क्रोध से नहीं हो सकता है। मोहिनी सौम्यता की प्रतीक है, शाॅंति की प्रतीक है, प्रेम की प्रतीक है। जब उस से सामना होता है तो क्रोध उसे नष्ट नहीं कर पाता है। वह स्वयं अपने आप ही नष्ट हो जाता है।


शिव, भस्मासुर, मेाहिनी सभी प्रतीक हैं और इन के माध्यम से ही हमें बताया गया है कि क्रोध केवल समय नष्ट करता है परन्तु उस पर कोमलता से, नम्रता से काबू पाया जा सकता है।


मनुष्य को अपने क्रोध को समाप्त करने के लिये अपने अन्तर्मन का ही प्रयोग करना चाहिये।


1 view

Recent Posts

See All

जापान का शिण्टो धर्म

जापान का शिण्टो धर्म प्रागैतिहासिक समय में यानी 11,000 ईसा पूर्व में, जब जापानी खेती से भी बेखबर थे तथा मवेशी पालन ही मुख्य धंधा था, तो उस समय उनकी पूजा के लक्ष्य को दोगू कहा गया। दोगु की प्रतिमा एक स

उपनिषदों में ब्रह्म, पुरुष तथा आत्मा पर विचार -3

उपनिषदों में ब्रह्म, पुरुष तथा आत्मा पर विचार (गतांश से आगे) अब ब्रह्म तथा आत्मा के बारे में उपनिषदवार विस्तारपूर्वक बात की जा सकती है। मुण्डक उपनिषद पुरुष उपनिषद में पुरुष का वर्णन कई बार आया है। यह

उपनिषदों में ब्रह्म, पुरुष तथा आत्मा पर विचार -2

उपनिषदों में ब्रह्म, पुरुष तथा आत्मा पर विचार (पूर्व अ्ंक से निरन्तर) अब ब्रह्म तथा आत्मा के बारे में उपनिषदवार विस्तारपूर्वक बात की जा सकती है। बृदनारावाक्य उपनिषद आत्मा याज्ञवल्कय तथा अजातशत्रु आत्

bottom of page