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अहंकार 

  • kewal sethi
  • Oct 8
  • 1 min read

अहंकार 

हमारे जीवन में हमारे विचार एवं व्यवहार का बड़ा महत्व है। नकारात्मक विचारों में सब से नष्टकारक विचार अहंकार अथवा घमंड है। इस से आदमी का कद गिरता है चाहे वह कितने भी प्रतिष्ठित पद पर पहुंच चुका हो। अहंकार के कारण मनुष्य अपने आप को ऊंचा समझता है तथा दूसरों को हीन समझता है। व्यक्ति का अहंकार चाहे उस की शिक्षा के कारण हो अथवा अपने रूप के कारण अथवा अपनी सम्पत्ति के कारण, वह किसी से आदर तभी पा सकता है जब वह अपने अहंकार की तिलांजली देता है तथा नम्रता को अपनाता है। 

प्रसन्नता का मौलिक कारण किसी से प्रशंसा किया जाना है। परन्तु सही आदर तभी मिलता है जब अहंकार को छोड़ कर व्यक्ति नम्रता को अपनाता है। भगवद गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो निन्दा तथा प्रशंसा, दोनों को एक ही भाव से देखता है, जो हर स्थिति में शांत एवं स्थिर रहता है तथा अपने मन में निश्चल रहता है, वह ही उन्हें प्रिय है। 

अहंकार केवल सम्पत्ति के कारण ही नहीं आता वरन् कभी कभी अपने ज्ञान के कारण भी आता है। इस स्थिति में निष्चल रहना कठिन है किन्तु इस में गुरू के मार्गदर्शन से ही वह चित्त की एकाग्रता प्राप्त कर सकता है एवं नम्रता धारण कर सकता है। आचार्य का भी कर्तव्य है कि वह शिष्य का चयन सभी बातों पर विचार कर करें क्योंकि शिष्य का कोई दोष अन्ततः उस के गुरू का व्यवहार तथा प्रतिक्षण ही प्रदर्षित करता है। 

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