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बेबसी

  • kewal sethi
  • Jan 13, 2023
  • 2 min read

बेबसी


तुम फिर आ गये - सचिव ने फारेस्ट गार्ड राम प्रसाद को डॉंटते हुये कहा।

- सर, अभी तक कोई आडर्र नहीं हुआ।

- सरकारी काम है। देर होती ही है। अब मुख्य मन्त्री के पास यही काम थोड़े ही है।

- पर हज़ूर थोड़ी जल्दी हो जाती तो

- समय पर जागना चाहिये था न।

- हज़ूर, डी एफ साहब को अर्जी दी थी।

- फिर

- उन्हों ने मना कर दिया। एक डिविज़न से दूसरे में ट्रांसफर की पावर उन्हें नहीं है।

- कन्सरवेटर से क्यों नहीं मिले।

- मिला था सर। उन को बच्चे का मैडीकल सर्टिफिकेट भी दिया। उन्हों ने कहा सब ट्रांसफर मन्त्री जी ही कर रहे हैं। उन के बस की बात नहीं है।

- फिर मन्त्री से मिल लेते।

- मेरी इतनी हिम्मत कहॉं। उन के पी ए से मिला था। उस ने कहा कि पचास हज़ार लगें गे।

- उन को मैडीकल सर्टिफिकेट नहीं दिखाया।

- दिखाया था साहब।

- फिर

- उन्हों ने हमदर्दी ज़ाहिर की। कहा अपने दस हज़ार छोड़ दूॅं गा पर चालीस तो देने पड़ें गे। मन्त्री जी उस से कम में नहीं मानते। अब मेरे पास इतना पैसा कहॉं? सारा तो ग्वालियर आने जाने में खर्च हो गया है। डाक्टरों की फीस अलग।

- अपने मुखिया से नहीं मिले।

- मिला था हज़ूर।

- फिर

- फिर कुछ नहीं हुआ साहब। बस एक दिन कह दिया, सब ट्रांसफर बन्द हो गये हैं।

- सही है। बेतहाशा ट्रांसफर हो गये थे। मन्त्री और विधायक मिल कर इसे धन्धा बना लिये थे। इस लिये सरकार को रोक लगाना पड़ी।

- अब सर?

- तुम्हारा केस सही है। ट्रांसफर तो बनता है। इसी लिये तो मैं ने उस को मंज़ूर करने के लिये मन्त्री जी को कहा। मन्त्री जी भी मान गये।

- अब क्या हो गा।

- तुम्हारे लिये तो मैं ने कोशिश कर ली। मुख्य सचिव से डांट भी खाई। क्यों एक फारेस्ट गार्ड में इतनी दिलचस्पी ले रहे हो। पर उन्हें मना ही लिया। लेकिन उन के बस की बात थी नहीं। समन्वय में केस मुख्य मन्त्री को भिजवा दिया। अब वहॉं पर से निकलवाने की हिम्मत तो नहीं है मुझ में।

- सर

- छुट्टी ले लो।

- वह भी खत्म हो गई हज़ूर।

- सब तरफ मुसीबत है। अब एक ही बात कर सकते हो।

- क्या सर?

- इंतज़ार

- किस का, माई बाप? मौत का या ट्रांसफर का?




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