पहचान
- kewal sethi
- 4 days ago
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पहचान
मैं अपने रास्ते से जा रहा था। रास्ता ज़रा संकरा सा था। इतना संकरा कि दो व्यक्ति साथ साथ नहीं चल सकते थे। वह महिला सामने से आ रहीं थीं। बचने की कोई गुंजाईश नहीं थी। और फिर हम आमने सामने थे। मैं थोड़ा सिकुड़ कर रास्ता देने की सोच रहा था पर रुक गया। वह ही बोलीं -
- ज़रा थोड़ा सा एक तरफ हो जायें तो मैं गुज़र जाऊॅं।
- मैं सोच रहा था।
- इस में सोचने की क्या बात है।
- नहीं मैं इस बारे में नहीं सोच रहा था।
- तो
- आप गीता साहनी को जानती हैं?
- मतलब?
- आप की शकल उन से बहुत मिलती है
- क्यों नहीं मिले गी, हम बहनें है।
- ओह! इसी कारण
- आप गीता को कैसे जानते हैं।
- वह मेरे साथी अधिकारी की धर्मपत्नि हैं।
- पर वह तो भोपाल में रहती हैं।
- मैं भी भोपाल में ही रहता हूॅं।
- आप दिल्ली में क्या कर रहे हैं।
- मेरे भाई साहब यहॉं रहते हैं। उन से मिलने आ जाता हूॅं।
- बड़ी खशी हुई आप से मिल कर। गीता को कहिये गा, सुनीता नमस्ते कह रही थी।
- जी बिल्कुल
- और यह भी कहिये गा कि मनोहर डेरी की जो कचौड़ी उन्हों ने भेजी थी, वह बहुत अच्छी थी
- मिलूॅं गा तो यह सन्देश उन्हें दे दूॅं गा। और कुछ?
- अगली बार जब दिल्ली आईये गा तो कचौड़ी लेते आईये गा।
- जी, अगली बार आने से समय गीता जी से मिल कर आऊॅं गा। अगर उन्हों ने कचौड़ी दी तो ज़रूर लाऊॅं गा।
- गीता क्यों दे गी। मैं ने तो सोचा था कि अब जब वाकफियत हो गई हैं तो आप ले ही आयें गे।
- अभी वाकफियत कहॉं हुई है। अभी तो सिर्फ पहचान हुई है।
- तो वाकफियत कैसे हो गी।
- जब आप मेरे को अपने घर पर चाय नाश्ते के लिये बुलायें गी।
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