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दादी के नुसखे

  • kewal sethi
  • Aug 20
  • 4 min read

दादी के नुसखे


ये कहानी चोरी की है। अब चोरी करना तो गुनाह नहीं है जब तक ये ना पता हो कि चोरी कहाँ से की गई। वह किस्सा तो आपको याद होगा जब बीवी ने पति से शिकायत की कि हमारा नौकर तो चोर है। वो हमारा तौलिया उठा कर ले गया है। पति ने पूछा, कौन सा तौलिया तो बीवी ने बताया कि वही, जो हम ताजमहल होटेल से लाये थे। अब इसमें तो ये पता है कि कहाँ का तौलिया था, पर मेरी कहानी का तो ओर छोर भी आपको मालूम नहीं होगा। इसलिए यह चोरी चोरी नहीं है। सीनाज़ोरी भले ही कह लें।

तो किस्सा यूं है कि हमारे एक दोस्त पता नहीं किस बिमारी के शिकार हो गए कि उन का वजन लगातार बढ़ने लगा। पर वजन के साथ साथ उनका शरीर भी वैसे ही फूलने लगा। बड़ी मुश्किल। कहीं आए जाए तो दिक्कत। बैठने के लिए अलग कुर्सी चाहिए। उससे क्या, सोफा ही चाहिए?

अब हमारे पास एक किताब थी - दादी के नुसखे। यह किताब उन्हों ने देख रखी थी, इसलिए वो हम से बार बार ये कह रहे थे कि उस किताब को देख कर कोई ऐसी तरकीब बताईये,  कोई ऐसी दवाई बताईये जिस से वजन कम हो जाए। मैं उन्हें लाख समझाऊॅं कि ये दादी के नुस्खे मेरी दादी के नहीं है। शायद उनकी दादी के हों गे। और चार पीढ़ी के बाद इन नुस्खों को इस्तेमाल करना सही नहीं होगा। पता नहीं कहाँ पर क्या प्रभाव  होता है, तो किसको बताते फिरो गे। मगर उन की ज़िद थी कि मैं उन नुसखों को देखकर इस में वजन घटाने का कोई नुसखा तो डूॅंढ ही लूॅं।

आखिर तंग आकर मैंने उस किताब को एक सिरे से दूसरे सिरे तक पढ़ा और उस में से एक नुसखा निकाला जिस में वजन कम करने का तरीका बताया गया था। देखा कि जो दवाई बताई गई है जो आम तौर पर बाजार से मिल सकती है। सो हम ने अपने मित्र को वह नुसखा बतला दिया। और यह कहा कि इस का सेवन सात आठ दिन करें तो इसका प्रभाव दिखने लगेगा।

एक दिन हमें उन का फ़ोन आया - जल्दी से घर पर आ जाओ क्योंकि मैं बड़ी मुश्किल में हूं। मुझे तो पहले ही शक था  कि पता नहीं दवाई का क्या परिणाम होगा। इतनी उतावली से उन्होंने बताया कि मैं तुरन्त भाग कर उन के घर पहुंचा। द्वार खटखटाया। आवाज़ आई अन्दर आ जाइए, दरवाजा खुला है। मैं दाखिल हुआ। चारों तरफ़ देखा, तो कहीं दिखाई नहीं दिये। कहाँ गायब हो गए? बाथरूम में भी देखा। वहाँ भी नहीं। तभी उन की आवाज आई कि ऊपर देखो।

हम ने ऊपर देखा तो हमारे मित्र छत के साथ लगे हुए। वैसा ही मोटापा था जितना कि पहले था। मैंने उससे जानना चाहा कि ये क्या मामला है। उन्हो ंने बताया कि ये सब मेरे दिए हुए नुसखे का ही कमाल है। मैं ने गलत नुसखा उन को थमा दिया। अब वह नुसखा उस का वजन कम करने का था। पर परिमाण कम करने का नहीं था इसलिए उनका डील डौल तो वैसा ही रहा। वजन कम हो गया। इतना कम हो गया।कि वह हवा में उड़ने लगे।

अब क्या करें। छत के साथ टंगे रहने का तो मतलब नहीं। कहीं से उन्हों ने सीढ़ी लाने को कहा। लाई गई। अब वो धीरे धीरे सीढ़ी पकड़कर नीचे उतरने की कोशिश करने लगे। हवा का झोंका उन्हें ऊपर की तरफ ले जाएं और हम सीढ़ी को और उन को पकड़ें। सीढ़ी लोहे की थी। कुछ उन्हों ने कोशिश की, कुछ मैं ने मदद की, तो वो जमीन पर आ गए। पर अब आगे क्या करें? उन को कब तक पकड़ कर रखें। एक रस्सी ले कर सीढ़ी से बॉंधे और पलंग पर लिटाया।

अब वह कह रहे हैं कि भाई, कोई ऐसा नुस्खा दिखाओ जिस से वजन बढ़ जाता है। या मोटापा कम हो जाए। अब इस के लिए तो फिर से पूरी किताब छाननी पड़ेगी, जिस में समय लगेगा। तब तक क्या करें। आखिर एक तरकीब मन में आई। कुछ लोहे के टुकड़े लाकर उनके पैर से, उन के पेट से बांधे जायें। तो उन के वजन से वह कम से कम जमीन पर तो रहें। वज़न बढ़ाने का नुसखा मिले या न मिले, इस का तो ठिकाना नहीं है पर कम से कम वे आसमान में तो नहीं उड़ें गे। वो घर में रहें पर उस के बाहर निकलना तो बिल्कुल ही नामुमकिन सा है।

परन्तु समय के साथ उन के नाप के लोहे के बकतरबन्द बनवाये गये। उसी तरह के कपड़े भी उन के सिलवाए गए, जिससे कि फिर बाहरी जीवन का आनंद उठा सकते हैं। इस तरीके से वो बाहर फिर आने जाने लगे। वो क्लब में भी फिर शिरकत कर ही लेते थे। अब उन्हें मुझ से शिकायत रहती है कि एक तो मैं नुसखा नहीं ढूंढ पा रहा हूं और दूसरे डर लगा रहता है कि मैं उन का भेद सब को बता दूं गा। हालांकि मैंने उन्हें बताया कि वो किताब एक बार नहीं चार बार पढ़ ली है, पर उस में मुझे वजन बढ़ाने का कोई नुस्खा तो नहीं मिला।

लगता है अब जैसा है वैसा ही रहना पड़ेगा।

 

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