top of page

परिवार तथा प्रजातन्त्र

  • kewal sethi
  • Jun 23, 2020
  • 4 min read

परिवार तथा प्रजातन्त्र


परिवार प्रथम सामाजिक ईकाई है। परिवार ही प्रजातन्त्र का स्रोत्र तथा शकित है। व्यकित की असीमित साख के आधार पर ही प्रजातानित्रक संगठन बनते हैं। परिवार में ही बिना किसी स्वार्थ के परस्पर सम्बन्ध बनते हैं। इस से ऊंचे स्तर पर व्यापार की भावना आ ही जाती है। यधपि व्यक्ति के महत्व की बात की जाती है किन्तु वह यर्थाथ कम तथा औपचारिकता अधिक होती है। किन्तु परिवार में पति पत्नि बिना किसी स्वार्थ के बच्चे का लालन पालन करते हैं। प्रजातन्त्र का सिद्धांत इसी आपसी निर्भरता का बृहत रूप है। परिवार को किसी भी रूप में निर्बल करने का अर्थ प्रजातन्त्र को निर्बल करना हो गा। इस के विपरीत परिवार को केन्द्रबिन्दु बनाने से प्रजातन्त्र को अन्य क्षेत्रों में भी स्थापित करने में सहायता मिले गी। इस में किसी वस्तु को हथियाने की प्रवृति के बिना अच्छाई करने की मनोभावना प्रधान रहती है अत: यह उत्कृष्ट प्रकार का प्रजातन्त्र हो गा। इस में दूसरे के लिये बलिदान करने की भावना है न कि केवल अपनी इच्छा थोपने की।


परिवार में पति पत्नि का कर्तव्य केवल बच्चे पैदा करना ही नहीं है वरन उन को शिक्षा देने का भी है। वह चाहते हैं कि उन के बच्चे सभ्यता के सर्वोत्तम वातावरण में ज्ञान, चारुता तथा गौरव का जीवन प्राप्त करें। शिक्षा इन उच्च विचारों को प्राप्त करने का एक साधन है। शिक्षा घर से ही आरम्भ होती है तथा शाला उस को उस दिशा में आगे बढ़ाती है जो घर पर रह कर प्राप्त नहीं की जा सकती। माता पिता तथा बच्चों में परस्पर विश्वास की भावना को ही शाला में अध्यापक तथा छात्रों में अपऩाने की आवश्यकता है जो शिक्षा को केवल राज्य का दायित्व समझने से उपलब्ध नहीं हो सकती। इसी कारण माता पिता को यह अधिकार होना चाहिये कि वे अपने बच्चों के लिये शाला का चयन कर सकें परन्तु कुछ न्यूनतम स्तर बनाये रखने का अधिकार सरकार के पास सुरक्षित होना चाहिये।


परिवार के अन्दर बिखराव का मुख्य कारण परिवारिक सम्बन्धों में कामनाओं को शामिल करना है। माता पिता बच्चोें को अपने लक्ष्य पूरे करने के लिये इस्तेमाल करना चाहते हैं। वह उन के माध्यम से अपना अकेलापन, अपना खालीपन, अपनी निर्थकता को दूर करना चाहते हैं। इस के बदले में वे ब्रच्चे की इ्रच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करते है। इस से उन के सम्बन्ध एक व्यापार की भांति हो जाते हैं। जबकि उन के सम्बन्ध बिना किसी शर्त के होना चाहिये। यह उचित नहीं है कि बच्चे को शाबाशी दी जाये जब वह माता पिता की इच्छा को पूरा करता है तथा इस में असफलता पर उस की भर्त्सना की जाये। बच्चा अपने में एक स्वतन्त्र इकाई है तथा उस से उसी प्रकार व्यवहार करना चाहिये।


एक प्रकार से बच्चों के लिये प्यार माता पिता का आपस में प्यार की भांति ही है। केव्ल अन्तर यह है कि माता पिता ने एक इकरारनामे के तहत एक दूसरे से वचनबद्ध हुए हैं जबकि बच्चों के पास इस प्रकार का इकरार नामा नहीं है। इस कारण माता पिता का प्यार पूर्णतया निशर्त होना चाहिये। पर इस का अर्थ यह भी नहीं कि बच्चों से कोई आशायें भी न बांधी जायें। इन आशाओं की पूर्ति ही पारिवारिक जीवन की सफलता है। परन्तु जिस प्रकार माता पिता की आपस में अपेक्षायें कई बार पूरी नहीं होतीं परन्तु फिर भी उन के सम्बन्ध बने रहते हैं उसी प्रकार बच्चो द्वारा अपेक्षायें पूरी न करने पर भी प्यार बना रहना चाहिये। इसी प्रकार यह आवश्यक है कि बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाये परन्तु इस का अर्थ यह नहीं कि उन की सभी मांगों को पूरा किया जाये। आवश्यकता ही कसौटी होना चाहिये। यही वास्तव में शिक्षा है। इसी से बच्चा उस जीवन का अभ्यस्त हो सके गा जो मूल्यों पर ध्यान देता है। बच्चों की मांग का परीक्षण करना चाहिये तथा फिर उस का औचित्य देख कर उस की पूर्ति करनी चाहिये। यही सब से बड़ा पाठ है। परन्तु बच्चों से अनुचित अथवा असंगत अपेक्षा करना भी उचित नहीं है। बच्चें द्वारा आज्ञा मानना चाहिये किन्तु आज्ञा मानना उस सेवा का प्रतिफल नहीं माना जाना चाहिये जो माता पिता ने की है। आज्ञापालन शिक्षा का एक अंग है। माता पिता का जीवन इस से सुखी हो गा, यह एक स्वागत योग्य लाभ हो गा परन्तु यह इस का आश्य नहीं है। बच्चा सुनिशिचत प्यार का अनुभव तभी कर सकता है जब उसे माता पिता का अधिकारयुक्त दिशा निर्देश मिलें।


स्वतन्त्रता तथा प्रजातन्त्र के नाम पर माता पिता द्वारा अपने अधिकार का प्रयोग न करने की बात ने पारिवारिक जीवन को काफी हानि पहुंचाई है। इस से परिवार में बिखराव का वातावरण बना है। इस से उन की शिक्षा पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। यह समस्या इस कारण उत्पन्न हुई है कि प्राधिकार की बात को ठीक से समझा नहीं गया है। निरकुंश, स्वेच्छाचारी, हेर फेर युक्त प्राधिकार दोषपूर्ण है। यह न परिवार के लिये उपयुक्त हे न राज्य के लिये। दायित्वयुक्त प्राधिकार जो अच्छाई के प्रति श्रद्धा से आता है, वह परिवार के लिये न केवल उपयुक्त है वरन आवश्यक भी है।

Recent Posts

See All
अहंकार 

अहंकार  हमारे जीवन में हमारे विचार एवं व्यवहार का बड़ा महत्व है। नकारात्मक विचारों में सब से नष्टकारक विचार अहंकार अथवा घमंड है। इस से...

 
 
 
the grand religious debate

the grand religious debate held under the orders of mongke khan, grandson of chengis khan who now occupied the seat of great khan. The...

 
 
 

Comments


bottom of page