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दर्द होशंगाबादी

  • kewal sethi
  • Jul 4, 2020
  • 1 min read

दर्द होशंगाबादी


हम हसरतों के दीप जलाने में रह गये

वह हम को सब्ज़ बाग दिखाने में रह गये

जो चल पड़े वह मंज़िले मकसूद पा गये

हम एक दूसरे को गिराने में ही रह गये

जिन में था अज़्म, छीन कर साकी से पी गये

हम अपने खुश्क होंट दिखाने में ही रह गये

मेरा जनाज़ा उन की गली से गुज़र गया

वो थे कि अपनी ज़ुल्फ़ सजाने में रह गये

सब की दुआयें तेरे ही दर से हुई कबूल

एक हम ही नामुराद ज़माने में रह गये

जिन पत्थरों से दिये थे उन्हों ने हम को ज़ख्म

हम प्यार से वह ही संग उठाने में रह गये

कब का रवाना काफ़िला-ए- दर्द हो चुका

हम दोस्तों से हाथ मिलाने में ही रह गये


होशंगाबाद

1979

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