कृपा कहां अटकी है
- kewal sethi
- Sep 25
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कृपा कहां अटकी है
- कैसी हो, बहुत दिन से दिखी नहीं।
- ईश्वर की कृपा है और तुम कैसे हो।
- बस देवी की कृपा का आकांक्षी हूं।
- कौन सी देवी?
- भई, हम तो सब देवियों को नमस्कार करते चलते है। जो भी कृपा कर दे।
- और चाहिये क्या?
- इस उम्र में तो कुछ भी चाहिये होता है - शारदा, रमा, उमा
- या रेखा, काजल, माधुरी। सब एक साथ। थोड़ा लालच कम करो।
- उस का भी वक्त आये गा।
- ठीक है, तब शॉंति चाहिये हो गीं।
-शांति ही सही पर यह कहां रहती है।
- शांति तो हर दिल में रहती है, हर घर में रहती है।
- पता तो मालूम होना चाहिये।
- यही तो मालूम नहीं है। पर मन में आस है, मिले गी ज़रूर।
- आज बड़े दार्शनिक बन रही हो। क्या बात है। दिल टूटा है क्या।
- नहीं। टूटा तो नहीं है, बस थोड़ी सी खरोंच आई है।
- क्या कर रही हो इस के बारे में
- इंतज़ार
- बस, इंतज़ार। यह तो गलत है। तलाश जारी रहना चाहिये।
- वह तुम्हारे ज़िम्मे छोड़ दी है।
- मैं तो निराश हो चुका हूॅं। सोच रहा हूं सन्यास ले लूं।
- यानि माया छोड़ कर शांति के साथ रूहें।
- मैं तो किसी माया को जानता नहीं। छोडूॅं गा कैसे। और शांति का पता भी नहीं मालूम।
- अरे, मैं लाक्षणिक बात कर रही हूॅं।
- यानि कि अब फिर दार्शनिक बन रही हो।
- दार्शनिक? नहीं नहीं। मेरा तो अल्प ज्ञान है।
- अब यह अल्प ज्ञान क्या कहता है?
- जो सामने है, वह अपना है। जो गया वह सपना था।
- सपना? अब सपना कौन है।
- सपना, जो अपना है।
- इस से एक बात याद आ गई। आज क्या कर रही हो।
- इंतज़ार
- अब यह इंतज़ार छोड़ो। बहुत हो गया इंतज़ार। चलो, कहीं घूम कर आते हैं।
- यानि इंतज़ार खत्म? पर यह हुआ कैसे?
- वही तुम्हारी बात। जो सामने है, वह ही अपना है।
- यानि लौट कर बुद्धु घर को आये।
- देर आये, पर दुरुस्त आये।
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