i have written about some dictators earlier. so i tried it again when i got a book ok franco, spanish dictator.i was disappointed abotu his achievments but having started, it is there.
so here goes
फ्रानकोे
स्पैन के डिक्टेटर। लम्बे समय तक कायम रहे। शायद ही कोई डिक्टेटर इतने समय तक रहा हो। वह 36 वर्ष तक स्पैन के सर्वे सर्वा रहे जबकि माओ भी चीन में 26 वर्ष तक ही रह पाये।
फ्रानको की चिशेषता यह है कि वह एक सैनिक थे। वह जल सैना में भर्ती होना चाहते थे पर उस में जब नहीं हो पाये तो थल सैना में भर्ती हो गये। वह आम सैनिक अधिकारियों की तरह आरामदेह जिंदगी के कायल न थे बल्कि उन के मन में कुछ कर गुज़रने का जज़बा था। उस समय सैना में अफसरों की बहूतायत थी। प्रत्येक दस फोजियों पर एक अधिकारी था। आम तौर पर सैनिक संतुष्ट नहीं थे और न ही ठीक से प्रशिक्षित थे।
मोरोक्को में स्पैन का उपनिवेश था परन्तु उस को मूर विद्रहियों का समाना करना पड़ रहा था। फ्रानको ने अपनी नियुक्ति वहॉं करवा ली। उस समय वहॉं की हालत खराब थी। स्पैनिश फौजी मलेरिया से भी लड़ रहे थे और मूर सैना से भी। दोनों तरफ ही हार का सामना करना पड़ रहा था। फ्रानको को एक बड़ी सफलता मोरोक्को में मूर विद्राह के समय मिली। उस ने अपनी सैनिक टुकड़ी में अनुशासन कायम रखा, प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया। इस बीच रूपैन में युद्ध में होने वाले व्यय के कारण काफी अफरातफरी थी और इस का परिणाम सैना द्वारा विद्रोह तथा डिक्टेटर का सत्ता हथियाना था। मोरोक्को का युद्ध स्पैन के पक्ष में नहीं रहा किन्तु मूर सैनापति ने गल्ती यह की कि उस ने फ्रांस वाले क्षेत्र में भी अतिक्रमण कर लिया। फ्रांस की सैना सुसज्जित ओर प्रशिक्षित थी अतः उन की तथा स्पैन की सैना ने मिल को युद्ध की दिशा मोड़ दी। इस विजय में फ्रानको की भूमिका सराहनीय रही। फ्रानको युरोप में सब से कम आयु वाला ब्रीगेडियर जनरल बनाया गया।
स्पैन में तीन तरफा गुट थे। कुछ लोग राजशाही के पक्ष में थे, कुछ प्रजातन्त्र के पक्ष में। सैना अपने में ही एक पक्ष थी।
स्पैन में एक के बाद एक डिक्टेटर ने सत्ता सम्भाली। इन में एक थे - जनरल प्रीमो डी वीरेरा। उन्हों ने फ्रानको को प्रशिक्षण अकादमी का मुख्य अधिकारी नियुक्त किया। इस में फ्रानको ने सही ढंग से प्रशिक्षण करवाना आरम्भ किया जो शुद्ध व्यवसायिक तरीके का था। अप्रैल 1931 में चुनाव हुये तथा जनरल सारजूरजो को प्रधान मन्त्री नियुक्त किया गया। रक्षा मन्त्री बने अज़ाना। राजा स्पैन छोड़ कर चले गये। अज़ाना ने यह महसूस किया कि सैना अब एक अपने में ही राजनीतिक शक्ति बन गई है। उस ने इस की शक्ति कम करने के लिये मुख्य व्यक्तियों को छोटे पद पर भेजा। फ्रानको को कनारी द्वीपसमूह में भेज दिया गया।
इस बीच सेना द्वारा सत्ता हथियाने के प्रयास जारी रहे परन्तु वह सफल नहीं हो पाये। इन में एक प्रयास जनरल सारजूरजो का भी था। अजाना की पदोन्नति हो गई थी तथा अब वह प्रधान मन्त्री थे। विद्रोह का परिणाम यह हुआ कि प्रजातन्त्रवादी और सतर्क हो गये। परन्तु उन्हें खतरा केवल सैना का ही नहीं था, साम्यवादी भी काफी सक्रिय थे। सम्भावित सैनिक विद्रोह के कारण हथियार आम जनता को बॉंटे गये थे। इन में से कई अराजक तत्व के हाथ में भी आ गये। इस बीच सैना ने विद्रोह का निर्णय लिया। फ्रानको को मरोक्को का चार्ज सौंपा गया। यहीं पर विद्रोह की शुरूआत हुई। स्पैन में सैनिक अधिकारियों को विशेष सफलता नहीं मिली। अफ्रीका की ओर भी प्रजातान्त्रिक सरकार द्वारा सैना भेजी गई। अधिकारी वर्ग तो विद्रोहियों के पक्ष में था और चाहता था कि वहॉं से सहायता ले कर मुख्स भूमि पर आक्रमण किया जाये। पर सिपाही इस मत के नहीं थे। इस कारण अफ्रीका से कुमक स्पैन नहीं पहुॅंच पाई। उधर सारजूजो एक हवाई हादसे में मारे गये। एक और जनरल गोडड पकड़े गये। सभी बड़े नगर प्रजातन्त्रवादियों के हाथ में थे। अज़ाना, जो अब राष्ट्रपति थे, ने जनरल मोला को अपनी ओर करने का प्रयास किया किन्तु वह नहीं माने। इस के बाद अज़ाना ने वामपंथयों का साथ लिया। वास्तविक गृहयु़द्ध ने अब देश को अब पूर्ण रूप से अपने काबू में ले लिया था।
इधर फ्रानको मोरोक्को से स्पैन नहीं पहॅंच पा रहा था और उस का धैर्य जवाब दे रहा था। आखिर एक असम्भव सा दिखने वाला प्रयास उस ने किया तथा उस के कुछ सिपाही मुख्य भूमि तक पहॅंच गये। आठ इटली के हवाई जहाज़ भी मदद करने को रवाना हुये पर उन में पैट्रोल कम पड़ गया। इधर जर्मनी से भी मदद नहीं पहुॅंच पा रही थी। एक बार फिर फ्रानको ने जोखिम भरा दॉंव खेला तथा मुख्य भूमि के लिये रवाना हो गया। आशा के विपरीत बिना किसी हानि के उस की सैना मुख्य भूमि पर पहुॅंच गई। उस ने सैविल को अपना मुख्यालय बनाया। उस के साथी थे एस्ट्रे और दि ललानो। ललानो अपने आप में ही एक नमूना था पर वह असरदार था तथा फ्रानको को भी उस की ज़रूरत थी। सैविल में अराजक तत्वों की कमी नहीं थी। इस के बाद अत्याचार का खेल आरम्भ हुआ। इस में जुल्म में कोई कौर कसर नहीं की गई। उस के बाद उत्तर की तरफ बढ़ना आरम्भ हुआ। फ्रानको ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह जर्मनी तथा इटली जैसा निज़ाम ही चाहता है।
गृहयुद्ध के बारे में विस्तार से लिखना आवश्यक नहीं है। यह तीन वर्ष तक चला और हज़ारों लोग इस में हतातहत हुये। आखिर एक अप्रैल 1939 को मेड्रिड पर विजय के साथ फ्रानको स्पैन का एक छत्र अधिनायक बन सका।
विजय ने भी फ्रानको के दमनात्मक शासन ने अपनी रौ नहीं छोड़ीं। पुराने विरोधियों को जिन्हों ने विद्रोह के खिलाफ काम किया था, चुन चुन कर सज़ा दी गई। बताया जाता है कि विजय के चार साल तक प्रति सप्ताह एक हज़ार व्यक्तियों को मृत्यु दण्ड दिया गया। जिन्हें कैद की सज़ा दी गई, उन में से आधे तो जेल में ही समाप्त हो गये।
दूसरी और लम्बे गृहय़द्ध ने स्पैन को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। वह भुखमरी के कगार पर था। हिटलर द्वारा आरम्भ किये गये युद्ध में भगदीदारी का सवाल ही नहीं था यद्यपि उस की गृहयुद्ध में विजय जर्मनी और इटली की सहायता के कारण हुई थी। पर शायद जर्मनी भी समझता था कि स्पैन में कोई दम नहीं है। और उस का युद्ध में शामिल होने का कोई लाभ नहीं हो गा। फ्रानको हिटलर को अपने सहयोग का आश्वासन देता रहा परन्तु 1944 में जब जर्मनी को पीछे हटना पड़ा तो उस ने पूर्ण तटस्था की घोषणा कर दी।
परन्तु इस सब से स्पैन को विशेष लाभ नहीं हुआ। स्पैन से मित्रता को कोई भी तेयार नहीं था। लगभग दिवालिया हो चुके स्पैन में दूसरे देशों को कोई लाभ नहीं दिखता था। पर फ्रानको के विरोधी एक जुट नहीं थे। राजवंश के सर्मथक अपनी जगह थे तथा सामवादी दूसरी ओर। उधर फ्रानको ने सैना के वेतन इत्यादि में वृद्धि की थी तथा उन्हें उस के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं थी। अधिकारी वर्ग भी अपनी शक्ति तथा रिश्वत के कारण विरोधी नहीं बन सके।
1953 तक पश्चिमी देशों का विरोध जारी रहा। कोशिश तो उन्हों ने की पर फ्रानको को मना नहीं पाये। वह आर्थिक मदद भी चाहता था और सैनिक मदद भी। उधर साम्यवादियों की शक्ति बढ़ रही थी जिस में असंतुष्ट श्रमिकों का बड़ा हाथ था। इसी कारण आखिर 1953 में अमरीका को ही झुकना पड़ा। 8.5 करोड़ डालर का आर्थिक पैकज तथा 14 करोड़ डालर की सैनिक सहायत दी गई। बदले में अमरीका को कुछ बेस मिले जिन का उसे विकास करना थां। यह विकास भी स्पैन की अर्थव्यवस्था के लिये सहायक था।
इस के बाद भी फ्रानकों का काल आर्थिक प्रगति का नहीं रहा। उस ने पोप का सर्मथन तो प्राप्त कर लिया तथा कैथेलिक चर्च को शिक्षा का प्रभार भी दिया किन्तु श्रमिकों को अने पक्ष में नहीं कर पाया। 1963 में आर्थिक सुधारों के पश्चात कुछ स्थिति सुधरी तथा पर्यटन के कारण भी स्पैन की अर्थव्यवस्था कुछ पटरी पर आई। उस ने राजवंश को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया तथा राजवंश के उत्तराधिकारी डान जुआन के बेटे को स्पैन आने की अनुमति दी एवं 1969 मे जुआन कार्लोस को अपना उत्तराधिकारी भी मानने को तैयार हो गया। परन्तु उस के दमनकारी प्रशासन के रवैये में कोई परिवर्तन नहीं हो पाया।
सेना के सर्मथन के कारण वह अपनी मृत्यु पर्यन्त 1975 तक स्पैन का अधिनायक बना रहा। पर वह कभी लोकप्रिय शासक नहीं बन पाया। न ही यह कहा जा सकता है कि उस ने स्पैन को उन्नति के शिखर तब पहुॅंचाया या बहुत ऊपर तक ले गया। उस की मृत्यु के पश्चात भी उस के समर्थक तानाशाही को चलाने का प्रयास करते रहे किन्तु सफल नहीं हो पाये। धीरे धीरे स्पैन भी संवैधानिक राजशाही देश बन गया।
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