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education surveys in colonial india

  • kewal sethi
  • Sep 2
  • 2 min read

education surveys in colonial india

(ref – the dayanand anglovedic school of lahore – ankur kakkar –manohar 2025)

मद्रास 1822

ज़िला बेलारी. 533 पाठशालाएं 6338 छात्र

ब्राह्मण 1187; 982 वैश्य; 3024 शूद्र; 1205 अन्य जातियां

सामान्य चार कक्षायें होती थीं।

प्रथम में अक्षर ज्ञान था जो रेत पर उंगली से लिख कर प्राप्त किया जाता था।

उस के बाद कागज़ पर कलम से लिखा जाता था।

रामायण, महाभारत तथा भगवद गीता का ज्ञान दिया जाता था।

व्यवहारिक ज्ञान के लिये विश्वकर्मापुराण, नागलिंगायन कथा, कमलशेरा कलिकामहता

मनोरंजन - पंचतन्त्र, भतालपंचनवनसती, सूपतकहलर, महातरंगिनी

भाषा - निघटू, उमरा (अमरकोष - नामल्रिगअनुशाशनम), शब्दुमबरेद, शब्दमनि दर्पण, व्याकरण अन्दीपिका, ऑंध्रनाम संग्रह


मुम्बई

ज़िला अहमदाबाद

84 पाठषाला, लगभग 3000 छात्र, 410 ब्राह्मण, 1080 वणि, 524 कुनबी, षेष मोची, कुम्हार इत्यादि

पंद्रह गणित के पाठ; गुणा का पहाड़ा 40 तक; साढ़े तीन तक का पहाड़ा ;

दसवें पाठ तक 20 तक का पहाड़ा; पंद्रवें पाठ तक 3/4 तक का पहाड़ा

उस के बाद पढ़ने लिखने के पाठ

उस के बाद धर्म एवं संस्कृति के पाठ


बंगाल

1835

ज़िला दक्षिण बिहार

286 हिंदी पाठषाला, 3090 छात्र

छात्रों में मालो, चण्डाल, कहार, लूनियर, धोबा, कालू जाति वाले भी थे

प्रथम दस दिन तक ज़मीन पर अक्षर ज्ञान

दो से चार वर्ष (योगयता के अनुसार) पाम पत्ते पर अक्षर ज्ञान

काउरी (संख्या) पहाड़ा, कथा (क्षेत्रफल) पहाड़ा, सेर (वज़न) पहाड़ा

तीसरा चरण - दो से तीन साल — लिखने का अभ्यास, पूर्व के पाठों का आगे बढ़ाना,

पत्र लेखन - व्यापार, लीज़ इत्यादि के लिये

पुस्तकें - शब्द सुभंता, अष्ट शब्दि, चाण्क्यनीति, महाभारत (दाता करण), राम जन्म, गंगावन्दन, रामायण (सुन्दर काण्ड), महाभारत (आदि पर्व)

पंजाब

1882

सूबे में 13,109 शालायें थीं जिन में 1,35,384 छात्र थे - 25,576 हिन्दू; 103ए133 मुस्लिम, 6516 सिख, 59 अन्य - 74,423 कृषक, 60,955 अन्य

अम्बाला क्षेत्र - 14,950; लाहौर क्षेत्र - 35,717; रावलपिण्डी 61,293; मुलतान क्षेत्र - 23,424

फारसी शालायें - गुलिस्तान, बोस्तान - मौखिक पाठ

मकतब - लिखना । इन में हिन्दू अधिक थे, मुस्लिम कम, हिन्दुओं में खत्री अधिक थे

षाला - बाज़ार का लेखा, व्यापारियों के लियेए पहाड़े,

पाठशालाओं में हिन्दी तथा संस्कृत देवनागरी में सिखाई जाती थी; दूसरी में गुरूमुखी में पंचाबी धार्मिक साहित्य;

आरम्भ में ज़मीन पर लिखना सिखाया जाता था और और बाद में तख्ती पर

गिनती तथा पहाड़े

पुस्तकें - अक्षर दीपिका, वर्णमाला, चरणवेक, बैताल पचीसी, प्रेम सागर, दिल बहलाओ, गणित क्रिया, रामायाण, अक्षर मंजरी

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