दिलेरी की उदासी
आज दिलेरी का मन बहुत खिन्न था। इस कारण वह दोपहर की अपने साथियों की महफिल में भी नहीं गया था। तबियत तो नहीं थी पर लंच समय में कमरे में बैठने का तो सवाल ही नहीं उठता। सभी साथी तरह तरह की बातें करें गे, इस लिये वह वैसे ही टहलने निकल पड़ा। वैसे बात खास नहीं थी। सुबह दफतर आने के समय बीवी से चिक चिक हो गई थी। मामूली सी बात पर। पर वह नाराज़ हो गई थी। इतनी नाराज़ कि टिफिन में अचार रखना भी भूल गई।
समय लंच का खतम हो गया और वह लौट चला। तभी एक लड़की ने पूछ लिया। यह शास्त्री भवन कहाॅं है। दिलेरी ने रास्ता बता दिया, आगे की तरफ इशारा कर केे।
वह लड़की साथ साथ ही चलने लगी।
- आप वहीं जा रहे हो।
दिलेरी ने सिर हिला दिया। बोला कुछ नहीं।
- आप क्या काम करते हो।
यूॅं तो दिलेरी सभी लड़कियों से बड़ी हलीमी से बात करता है, उसी तरह जैसे कोई पति नई नवेली दुलहन से शादी के दो एक महीने तक करता है बशर्ते कि वह अच्छा देहज़ लाई हो। पर उस दिन दिलेरी अपने ही ख्याल में था। उसे बहुत बुरा लगा। यह बातूनी लड़की तो फ़िज़ूल की बात कर रही है। इसे ऐसा जवाब देना चाहिये कि इस की बोलती बन्द हो जाये।
उस ने कहा - झख मारता हूॅं।
अगर दिलेरी का यह ख्याल था कि यह सुन कर लड़की मूॅंह फेर ले गी और अपनी रफतार कम कर ले गी कि पीछे रह जाये या अधिक कर ले गी कि आगे निकल जाये, पर ऐसा कुछ हुआ नहीं।
लड़की के चेहरे पर जैसे हल्की सी मुस्कान आ गई। वह साथ ही चलती रही। बोली -
- मेरे भैया भी यही कहते हैं।
यह सोच कर कि बात को और स्पष्ट कर देना चाहिये, बोली ‘‘वह भी सरकारी मुलज़िम हैं’’। उस ने शायद भाॅंप लिया था कि दिलेरी तो सरकारी मुलज़िम हैं ही। शायद कुछ साल सरकार के यहाॅं काम करने पर चेहरे पर ही से पता चल जाता हे कि आदमी सरकारी नौकर है।
लड़़की ने बात आगे बढ़ाई। ‘‘भेया ने कहा है कि शास्त्री भवन के सामने जहाॅं छोले भटूरे मिलते है, वहाॅं मिलो’’।
तो?
‘‘पर एक बात समझ में नहीं आई। अगर सरकार में सब लोग झक मारते हैं तो यह बड़ी बड़ी स्कीमें कैसे चलती हैं जिन से अखबारें भरी रहती हैं। सरकार क्या करती है।
दिलेरी को यह अच्छा नहीं लगा। आखिर वह सरकारी मुलाज़िम था। सरकार से पगार पाता था जिस से जीवन सही पटरी पर रहता था। इस तरह कोई सरकार को बदनाम करे, यह तो ठीक नहीं है। जवाब देना ज़रूरी है, यह सोच कर उस ने कहा -
झख मारना फाईल पर दस्खत मारने से तो अच्छा है जैसे कि अफसर लोग करते हैं। मन्त्री लोग तो हैलीकाप्टर और हवाई जहाज़ पर चलते हैं। एकाध को सस्पैण्ड करते हैं और फिर आ कर अखबारों के लिये गप्पें मारते हैं ओर ढींग हॉंगते हैं। और अखबार वाले भी ऊल जलूल लिख मारते हैं, चैक कौन करता है। अफसर लोग गाड़ियों और रेल पर चजले हैं। उन का काम तो सिर्फ छोटे कर्मचारियों पर रौब मारने का होता है। रही स्कीमों की बात तो वो तो सिर्फ अख्बारों में चलती है। ज़मीन पर स्कीम चलती है, यह किस ने देखा, जाना है। अपना काम तो फाईल चलाना है, बस।
इतनी देर में शास्त्री भवन अ गया।
लड़की ढाबे की तरफ मुड़ गई। जाते जाते बोली - मैं किशन भैया को आप के बारे में बताऊॅं गी।
किशन?
वह मरदूद। चुगलखोर, चाटूकार, अफसरों की नाक का बाल, सदा अफसरों के आगे पीछे घूमने वाला। रेल की टिकट हो या सिनेमाघर की, बच्चे की फीस देनी हो या बैंक से पैसा निकलवाना, हमेशा आगे आगे बढ़ कर उन को लुभाने वाला। चापलूस नम्बर एक। लाया हो गा, डायरैक्टर से मिलाने। अगले महीने इटरवियू भी तो हैं। उसी के विभाग में। क्या पता?
अचानक दिलेरी को अपनी बीवी पर बहुत गुस्सा आया।
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