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खामोश

  • kewal sethi
  • May 29
  • 1 min read

खामोश


जब से उस की पत्नि की मृत्यु हई है, वह बिल्कुल चुप है। उस की ऑंखें कहीं दूर देखती है पर वह कुछ देख रही हैं या नहीं, वह नहीं जानता। वह कहॉं है, उसे पता नहीं। उस के लिये कौन खाता लाता है, वह नहीं जानता। उस के बिल कौन चुकाता है, उसे खबर नहीं। उस के कमरे में एक खिउ़की है। जब वह खडा होता है तो मुश्किल से उस तक पहॅंच पाता हैं। उस खिड़की पर परदा है। वह परदे को हटाता नहीं है किन्तु उसे पता है कि बाहर कारें चल रहीं हैं। उन की आवाज़ वह सुन सकता है, पर उन्हें देख नही सकता। उस का देखने की हसरत भी नहीं है। वह कब से यहॉं है, यह भी वह नहीं जानता।

और आज! उसे उस कमरे से बाहर लाया गया है। वह कहीं जा रहा है। कहॉं, उसे पता नहीं पर वहॉं बहुत से लोग हों गे। कुछ खड़े हों गे, कुछ बैठे हों गे। कुछ बोल रहे हों गे, कुछ सुन रहे हों गे। पर क्या बोल रहे हैं, क्या सुन रहे हैं, उसे पता नहीं। उस का मन इन सब में नहीं है। वह कहीं दूर है।

पर उसे एक आवाज़़ आती है।

पत्नि की हत्या के अपराध में तुम्हें उम्र कैद की सज़ा दी जाती है।

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