यात्रा भत्ते में सम्भावनायें
- kewal sethi
- Jun 7
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यात्रा भत्ते में सम्भावनायें
बात पुरनी है पर इस उम्र में पुरानी बातें ही तो याद आयें गी। नई बात को तो पुरानी होने की प्रतीक्षा करना हो गी।े
1969 में प्रति दिन यात्रा के समय दैनिक भत्ता होता था सात रुपये। इस में अधिकारी से अपेक्षा थी कि इस में वह अपना चाय, खाना वगैरा खाये गा। आजकल तो सात रुपये में एक केला भी नहीं मिलता पर वह ज़माना और था।
कलैक्टर था तो जीप भी थी। आजकल तो तहसीलदार भी सरकारी कार पर घूमते हैं। खैर। जीप थी तो ड्राईवर भी था। और स्टैनेो भी साथ होना ही था। एक चपड़ासी साथ रखना तो ज़रूरी था ही। और श्रीमती भी तो साथ में होती थीं। उस ज़माने में नौकरी अधिक पुरानी नहीं थी और अभी आदर्शवाद समाप्त नहीं हुआ था, इस कारण तहसीलदार को भोजन का प्रबन्ध करने के लिये कहने की इच्छा नहीं थी। एक लकड़ी का बक्सा बनवा लिया था जिस में कई खाने थे जिन में आटा, चावल, दाल, सब्ज़ी, मसाले रखे रहतेे थे। जीप में सवार चारों पांचों व्यक्तियों के लिये भोजन बनवा लेते थे।
सात तो बहुत कम पड़ते थे पर प्रश्न यह था कि इसे बढ़ाया कैसे जाये। यहॉं पर थोड़ा नियमों के बारे में विस्तार से बताना हो गां। नियम था कि अगर आप एक स्धान पर पहुॅंच कर रुकते हैं तो यह मान कर कि आप घर से खा कर चले थे, आधा दैनिक भत्ता मिले गा। इसी प्रकार रुकने के बाद अगले दिन आप चलें गे तो घर पहुॅंच कर खाना खायें गे ही, इस कारण आधा दैनिक भत्ता मिले गा। हॉं, आठ घण्टे मुख्यालय से बाहर रहें तो पूरे दिन का भत्ता मिल जाये गा क्योंकि दोपहर में तो खाना ही पड़े गा।
अब नियमों में सम्भावना तलाशने का प्रश्न था। ज़िले में फासला होता ही कितना है। आराम से सुबह चल कर शाम तक काम कर के वापस भी आ सकते हैं और इस के लिये मिलें गे सात रुपये।
अब देखिये खरगौन से चले, रात को जुलवानिया में रुक गये। फासला - पचास किलोमीटर। पर पहुॅ का आधा दैनिक भत्ता तो मिल गया। (खाना खा कर आठ बजे चलो, नौ बजे वहॉं) सुबह उठे, बड़वानी पहुॅंच गये। फासला 40 किलो मीटर। आधा भत्ता जुलवानिया से चलने का, आधा बड़वानी पहुॅंचने का। काम किया। फिर चले, खलघाट में रुक गये। फासला 60 किलो मीटर। फिर आधा भत्ता बड़वानी से चलने का, आधा खलघाट पहुूंचने का। तीसरे दिन सुबह (चाय पोहा के बाद, नाश्ता घर पर)) मुख्यालय वापस। फासला 55 किलो मीटर। आधा भत्ता। कुल मिला कर तीन देैनिक भत्ते। काम उतना ही पर हिकमतअमली से तीन गुण भत्ता। सीधे बड़वानी जाते, काम करते, लौट आते केवल एक भत्ता##।
कैसी रही। उस ज़माने में टी वी भी नहीं था जिस से सीरियल देखना रहा जाता।
और हॉं, स्टैनो, ड्राईवर, चपड़ासी को भी तीन दैनिक भत्ते मिलते ही थे।
ं(नोट - दैनिक भत्ता अलग अलग वर्ग का अलग होता है। उस समय की दर तो याद नहीं पर यह तो स्वाभाविक है कि जितना बडा़ अफसर हो, वह उतना अधिक महंगा खाना खाता है। और इस कारण दैनिक भत्ते में अन्तर होता है)
## (एक बार ऐसा हुआ भी। कटनी उप संभाग में शाम को खतौली पहुॅंचे, देर शाम को कलैक्टर का फोन आया- फौरन कटनी पहूॅंचो। दूसरे दिन कटनी बन्द का अहलान था। रात को ही चल कर आये। 79 किलो मीटर। सारी कवायद में केवल एक भत्ता, सो नही ंपाये, वह अलग)
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