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जलियांवाला  युद्ध 

  • kewal sethi
  • May 20
  • 2 min read

जलियांवाला  युद्ध 

13 अप्रैल 1919े। बैसाखी का दिन। दिन तो अच्छा शुरू हुआ था पर आगे का किस को मालूम था कि कितना मनहूस दिन है। 

पूरे पंजाब में राउलट एक्ट के खिलाफ अन्दोलन चल रहा था और उसी असिसिले में जलियांवाला बाग में लोग इकठ्ठे हुये थे। भाषण हो रहे थे। इसी में  श्री रमिन्दर सिंह का भाषण हो रहा था। 

उधर अंग्रेज़ हकूमत इसे विद्रोह मान कर कार्रवाई करने की सोच रही थह। जनरल डायर को भीड़ को तितर भितर करने का ज़िम्मा सौंपा गया। जनरल डायर गुरखा और सिख रैजीमैण्ट के सिपाहियों को ले कर वहॉं पहुॅंचा और सिपाहियों को उस रास्ते पर तैनात कर दिया जो मैदान की तरफ जाता था। किसी को यह ख्याल नहीं था कि वही एक रास्ता मैदान को जाता था। बाकी तरफ मकान थे। 

जब सिपाहियों की तारफ से अचानक गोली चलाना शुरू हुई तो भीड़ में खलबली मच गई। रमिन्दर सिंह ने अचानक ज़ोर से चिल्ला कर कहा - सब लोग तुरन्त फौजियों की ओर भागें ताकि उन पर काबू पाया जा सके। पूरी भीड़ ने उस तरफ हल्ला बोल दिया जब कि फौज की तरफ से गोली बारी जारी थी। कई गिरे पर बाकी उन के ऊपर से हो कर आगे बढ़ते रहे। उस वक्त बच निकलनं का ही सब को ख्याल था। फौजी इस के लिये तैयार नहीं थे। जब तक वह सम्भल पाते, भीड़ उन तक पहुॅंच चुकी थी और बराबर आगे बढ़ती रही। चारों तरफ अब भीड़ थी और फोजियों को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरफ गोली चलायें। कुछ फौजी इस आदमियों के सैलाब के कारण गिर भी गये। बाकी लोग उन गिरे हुओं को कुचलते हुये चारों तरफ फैल गये। 

भागते हुये एक सरदार की किसी फौजी से टक्कर हुई तो वह गिरा और उस की बंदूक सरदार के हाथ में आ गइ्रं। घोड़ा का दबा ही हुआ था, सरदार ने बिना इधर उधर देखे उसे दबा दिया। ‘‘ओ माई गाड’’ कहते हुये जनरल डायर गिरा। ज़्यादा गम्भीर चोट नहीं थी। गोली टॉंग में लगी थी। 

सब फौजियों का ध्यान उधर चला गया। जब तक वह फिर तैयार होते, गलियॉं सूनी हो चुकी थीं। 

बताया जाता है कि इस घटना में लगभग एक सौ से अधिक लोग मारे गये और ज़खमी होने वालों की संख्या ढाई सौ से अधिक थी। मरने वालों में सात सिपाही भी थे जो भीड़ द्वारा कुचले गये थे। लगभग पच्चीस सिपाही घायल हुये। परन्तु बंदूकें पूरी की पूरी बच गईं। 


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