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एलोपैथी बनाम आयुर्वेद

  • kewal sethi
  • Apr 17
  • 3 min read

एलोपैथी बनाम आयुर्वेद

परसों की बात कृत्रिम बुद्धि (ए आई) पर थी। सूचनायें अल्प समय में मिल जायें गी। आपस में मिलान भी हो जाये गा। सिलसिलेवार जानकारी मिलने से और आगे जाने का मार्ग सरल हो जाये गा।

मेरा ध्यान एलोपैथी और आयुर्वेद की ओर चला गया। दोनों में अन्तर क्या है। मेरा अनुभव बी एल के कपूर हस्पताल का है। पर शायद सब बड़े हस्पतालो में ऐसा ही होता हो गा।

आप के गले में दर्द् होता है, इस लिये हस्पताल गये। अपना पता लिखिये, फोन नम्बर लिखिये। पहले से पंजीकृत हैं तो नम्बर बताईये। उस के बाद तीन स्थान पर आप के हहस्ताक्षर लिये गये। और इस बार तो फोटो भी लिया गया। और उस के बाद एक पर्ची दी गई। सी जी एच एस का कार्ड उन्हों ने रख लिया।

यह सब होने के बाद, स्वागत डैस्क पर गय। आप का वज़न, आप का बी पी, आप में आक्सीजन की मात्रा एक रजिस्टर में और आप की पर्ची पर लिखा गया। उस के बाद डाक्टर के यहॉं पहूॅचे। उस ने पर्ची देखी, आप को देखा और रक्त जॉंच, छाती के एक्सरे के लिये लिख दिया। खाली पेट रक्त जॉंच हो गी, सो आप घर लौट गये।

दूसरे दिन फिर से पंजीकरण डैस्क पर गये। दो एक पर्ची तैयार हुईं, तीन जगह दस्खत लिये गये। इस बार फोटो नहीं लिया। और सैम्पल जमा करने के लिये भेज दिया। एक्स रे के लिये अलग पंजीकरण है। वहॉं फिर से पंजीकरण हुआ। पर्ची बनी, तीन जगह दस्खत लिये गये। फोटो खिंची। एक्स रे कमरे में गये। बारी आई तो एक्स रे हुआ। दो एक घण्टा प्रतीक्षा की और एक्स रे लिये। अगर रक्त जॉंच में शूगर भी देखना है तो खाना खा कर दो घण्टे बाद फिर से रक्त का सैम्पल दिया। पर इस बार सीधे ही सैम्पल रूम में गये।

रक्त जॉंच का परिणाम जानने  के  लिये शाम को जा कर रिपोर्ट ली। तीसरे दिन फिर आये। वही पहले वाले दिन की कवायद, पंजीकरण, दस्खत, फोटा और फिर डाक्टर की प्रतीक्षा। डाक्टर ने रिपोर्ट देखी। पूरी तरह संतोष नहीं हुआ, दो टैस्ट और  लिख दिये। फिर से वही कवायद। इस बीच चार तरह की गोलियॉं अंतरिम राहत के लिये लिख दीं। जो सी जी एच एस से जा कर लीं।

फिर से टैस्ट की कवायद के बाद फिर नई दवायें लिखी गईं। सी जी एच एस से लीं।

अब आईये आयुर्वेद की ओर। आप गये, बैठे। वैद्य जी को बताया। गले में दर्द होता रहता है, सिर दर्द  भी है। अब प्रश्न आरम्भ हुये। नींद कैसी आती है। शाम को कितने बजे सोते हो, कितनी देर सोते हो। सिर दर्द दाईं तरफ होता है कि बाई तरफ। हमेशा होता है या कभी कभी। जब होता है तो कितनी देर तक रहता है। गले का दर्द हमेशा होता है। खाना खाते समय ज़्यादा होता है। हाजत कैसे होती है। क्या क्ब्ज़ के साथ। पानी कब पीते हो, कितना पीते हो। खाने के साथ या खाने के बाद या खाने से पहले। पिछली बार कब दर्द हुआ था। गला कब से खराब है। खटाई कितनी खाते हो। तम्बाकू सिगरेट लेते हो या नहीं। लेते हो तो कितना। शराब कितनी लेते हो अगर लेते हो तो। क्या घर में किसी ओर को भी गले की या सिरदर्द की शिकायत हे। दर्द होने पर कौन से दवाई ली।

प्रश्न हैं कि समाप्त ही नहीं होते। और फिर नब्ज़ देखी। कितनी देर तक देखते रहे जैसे एलोपैथी का डाक्टर कम्पयूटर सक्रीन को देखता रहता है।

तो अन्तर समझे आयुर्वेदिक चिकित्सा में और कृत्रिम बुद्धि चिकित्सा में। एक में डाटा की भरमार है। कितने टैस्ट, कितने नाप तौल पर कभी मरीज़ से पूछने की आवष्यकता नहीं। डाटा ही प्रधान है। डाटा सब बता दे गा। और फिर कोई एप्प दवाई का भी सुझाव दे दे गा। हर सिप्टम के लिये एक दवाई। साथ में विटामिन, कैल्षियम। एलोपैथी में बीमारी असली बात है, मरीज़ तो डाटा है।

आयुर्वेद में व्यक्ति - मरीज़ - महत्वपूर्ण है। उस का इतिहास महत्वपूर्ण है। असली कमी कहॉं है, यह जानने की इच्छा। कोई डाटा नहीं। कोई टैस्ट नहीं। और दवाई भी सीमा में।

एक में मर्ज़ अहम]दूसरे में मरीज़। एक में रोग प्रधान]दूसरे में रोगी प्रधान। 

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