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नारी जागरण और इक्कीसवीं सदी

kewal sethi

नारी जागरण और इक्कीसवीं सदी


कल तक इस मुल्क का ऐसा हाल था

इक्कीसवीं सदी तक पहुँचना लगता मुहाल था

कौम का नौजवान बढ़ चुका था हर जगह असरदार था

इस की शहादत वह लुटा हुआ बाज़ार था

हुई कालिज चुनाव में जीत उसे इस तरह मनाया

रास्ते में आई जो मिनी बस उसे अपना बनाया

घूमते रहे शहर की सड़कों पर जलवे दिखाते हुए

पूरे निज़ाम को अपने कौलो करम से चिढ़ाते हुए

लेकिन अफसोस इस का था कि आधी थी बात

हुए थे चुनाव लड़कियों के कालिज में भी, पर चुपचाप

बढ़े गा कैसे यह मुल्क जब आधी कौम पीछे हो

एक पहिया तो सड़क पर दूसरा कीचड़ में नीचे हो

लेकिन कल हुई वह बात कि दिल बाग़ बाग़ हो गया

अंधरी रात में जैसे कोई रोशन चिराग़ हो गया

सुन करिश्मा भोपाल की लड़कियों का तबीयत मचल गई

लूटा था चाट का ठेला, देश की किस्मत बदल गई

अब मुल्क तरक्की की राह पर चलने से रुक नहीं सकता

कोई लाख करे कोशिश नौजवान अब झुक नहीं सकता

कहें कक्कू कवि कि अब तो बस मज़ा आ गया

लगता है जैसे अभी से सन दो हज़ार आ गया


(30 सितम्बर 1986 भोपाल ज्योत टाकीज़ के पास चुनाव की जीत की खुशी में लड़कियों के चाट का ठेला लूटने पर)

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