नई यात्रा
फिर आई यात्रा एक, यात्रा से कब वह डरता था।
लोक प्रसिद्धी की खातिर वह पैदल भी चलता था।
तभी तलंगाना से बस मंगा कर यात्रा करता था
एलीवेटर लगा कर बस में वह छत पर चढ़ता था
ऊपर ऊपर से ही वह जनता के दर्शन करता था
फिर देता था भाषण हर तरह के वायदे करता था
कभी न्याय की तो कभी शॉंति की देता था दुहाई्र
पर इन सब से ज़्यादा प्यारी थी मोदी की बुराई
बस मोदी की ही वह नित दिन माला जपता था
जायेे वह तो सिंहासन मिले यही कामना करता था
पिछले साल ही वह दक्खिन से उत्तर आया था।
सब जगह रुक रुक कर यही सन्देश सुनाया था
सुना सब ने पर कोई ध्यान किसी न दिया नहीं
वोटों की खातिर थी यात्रा पर असर किया नहीं
जहॉं जीतना था वहॉं जीत गये, हारना था हार गये।
यात्री महोदय के सब वायदे अनसुने रहे, बेकार गये
असर नहीं पड़ता है, सियासत में ऐसा ही है होता
कोई उसे नये नये वायदे करने से तो नहीं रोकता
एक बार फिर निकल पड़े हैं नई यात्रा के लिये
पहलंे दक्षिण उत्तर था अब पूर्व पश्चिम चल दिये
याद है पुरानी यात्रा में लिये गये थे फोटो काफी
इस बार में फोटो आप में कसर तो नहीं हो गी
कैमरे हों गे साथ साथ और अखबार वाले भी
दिखते रहें जनता को बस यही तो कामना हो गी
कहें कक्कू कवि राजनीति तमाशा ही तो होती है ं
करे केवल एक ही, क्या यह किसी की बपौती है।
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