कन्फूसियसवाद
चीन में तीन विचार धारायें साथ साथ चलती रही हैं - ताओवाद, कन्फॅूसियसवाद तथा बौद्ध विचार। कन्फूसियसवाद प्राचीन है तथा कनफूसियस के जन्म से कई शताब्दियों पूर्व से चला आ रहा था किन्तु कन्फूसियस इस के सब से प्रसिद्ध प्रचारक थे अतः यह उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस का प्रभाव चीन के अतिरिक्त कोरिया, जापान, वियतनाम में देखा जा सकता है। जहाँ जहाँ विश्व में चीनी लोग गये हैं, वे इस विचारधारा को साथ ले गये हैं।
कनफूसियस का चीनी नाम काँग फुज़ी - आचार्य काँग - है। इस वाद का एक और नाम रूजिया है। रू का अर्थ है - विद्वान अर्थात यह विद्वान लोगों का वाद है। बाद में रू का अर्थ सभी शिक्षित लोगों के लिये भी किया जाने लगा। वाद का मूल मन्त्र है कि पूरा ब्रह्माण्ड पवित्र है तथा सभी तत्व एक दूसरे से सम्बन्घित हैं। वाद का ध्येय पूरे विश्व में समरसता लाने का है।
ताओवाद की तरह कन्फूसियस वाद भी विश्व के आरम्भ को ‘क्वी’ से मानता है जिस से यिन तथा यांग आस्तित्व में आये। यिन को अंधकार, आर्द्रता, जड़, नर्म एवं नारी सुलभ माना गया है। इस के विपरीत यांग प्रकाश, सक्रियता, गर्म, सख्त तथा नर सुलभ माना गया है। यिन तथा यांग के साथ पंच तत्व को भी द्रव्य के निर्माण में शामिल किया गया है। यह तत्व हैं - अग्नि, काष्ठ, धातु, जल तथा भूमि। यह भौतिक सामग्री न हो कर अभौतिक सिद्धाँत माने गये हैं तथा इन का प्रभाव सर्वतः देखा जाता है। प्रकृति तथा विश्व की सभी वस्तुयें - देवता, प्राकृतिक स्वरूप, मानव समाज में परिवर्तन यिन, यांग एवं पंचतत्व का रूप हैं। कन्फूसियस का उपदेश इन का साम॰जस्य बनाये रखने का सिद्धाँत है। इन्हें पाँच सम्बन्धों के रूप में भी देखा जाता है।
कन्फूसियस के सिद्धाँत का आधार इन पाँच सम्बन्धों पर है। यह सम्बन्ध हैं - 1. माता पिता तथा सन्तान के बीच 2. अग्रज तथा अनुज के बीच; 3. पति और पत्नि के बीच; 4. मित्र तथा मित्र के बीच; एवं 5. शासक तथा प्रजा के बीच। हर सम्बन्ध के अपने नियम तथा अपने कर्तव्य हैं। माता पिता का कर्तव्य अपने बच्चों को शिक्षा देना, उन को धार्मिक बनाना तथा उन की देख भाल करना है। सन्तान का कर्तव्य माता पिता का आदर करना, आज्ञा पालन करना तथा वृद्धावस्था में उन की देख रेख करना है। इसी प्रकार दूसरे समबन्धों के भी कर्तव्य हैं। पति पत्नि का एक दूसरे की सहायता करना कर्तव्य है तथा घर का चलाना है। राजा तथा प्रजा के बीच सम्बन्ध भी माता पिता तथा सन्तान के बीच सम्बन्ध जैसा है। राजा को मार्गदर्शन करना तथा सुरक्षा प्रदान करना है। प्रजा का आज्ञापालन करना तथा निष्ठावान रहना कर्तव्य है।
परन्तु इन सम्बन्धों में यह बात भी शामिल है कि यदि राजा अथवा माता पिता अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते हैं तो उन का प्रतिवाद भी करना कर्तव्य है। इसी प्रकार के सम्बन्ध अध्यापक तथा छात्र के बीच तथा मालिक तथा नौकर के बीच भी हैं। इन सब का वास्त्विक अर्थ सामाजिक संतुलन तथा सौहाद्र बनाये रखना है।
जैसा कि पूर्व में कहा गया है, कन्फूसियसवाद के विचार प्राचीन काल के हैं, जब कि कन्फूसियस का जन्म 551 ईसवी पूर्व में हुआ था। कहा जाता है कि चीनी संस्कृृति का जन्म यैलो नदी की वादी में हुआ था जिस क बारे में कुछ प्रमाण शाँग राजवंश काल के प्राप्त अभिलेखों से प्राप्त होता है जो उŸार पूर्वी चीन के स्थान अनयांग में मिले। शांग राजवंश 1766 ई्रसवी पूर्व से 1056 ईसवी पूर्व तक सत्ता में रहा। इस संस्कृति में दावा किया जाता था कि शासक को ऊपर से अध्यात्मिक सन्देश प्राप्त होते थे जिन में मौसम के बारे में जानकारी से ले कर दाँत दर्द तक का इल्हाम होता था। इन आदेशों के अनुसार ही युद्ध का समय तथा शिकार के समय का निर्धारण होता था। फसल कब भरपूर हो गी, यह भी बताया जाता था। सर्वोच्च सत्ता को शांग दी का नाम दिया गया था परन्तु माना गया कि वह बहुत र्स्वोच्च है अतः अधिकतर पृच्छा अपने पूर्वजों से ही की जाती थी।
शांग राजवंश के पश्चात ज़ाऊ राजवंश (1050 ईसवी पूर्व से 256 ईसवी पर्वू) के काल में शांग दी के स्थान पर तियन (स्वर्ग) को शक्ति तथा व्यवस्था का अधिष्ठदाता माना गया। इस काल में सदाचार तथा लाभकारी शासन को शासक का कर्तव्य माना गया। इस काल में निष्ठा, राजभक्ति, नेकी तथा शुभ कार्य पर आधारित साहित्य का निर्माण हुआ। पाँच गौरव ग्रन्थ को इस काल से ही सम्बद्ध माना जाता है।
ज़ाउ राजवंश के उत्तरकाल में कई प्रकार के विचार सामने आये जिन्हें ‘शत धारा’ के नाम से भी जाना जाता है। इसी में कनफूसियस ने अपने विचार सामने रखे। वर्ष 551 ईसवी पूर्व में जन्मे वह एक सम्भ्रान्त परिवार से थे। शासकीय सेवा के बाद उन्हों ने तेरह वर्ष विभिन्न क्षेत्रों का दौरा करते हुये बिताये ताकि अपने मत का प्रचार कर सकें परन्तु इस में उन्हें निराशा ही प्राप्त हुई तथा वह अपने गृह स्थान लौट आये और मृत्यु पर्यान्त वहीं रहे। इस बीच उन्हों ने पंच कलासिक पर काम किया।
कनफूसियस का मुख्य विचार है कि समाज तथा शासन में सौहाद्र बनाये रखने के लिये माता पिता तथा सन्तान में सम्बन्ध महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार अन्य सम्बन्ध की भी बात है। कनफूसियस के अनुयायी मैनसियस (371-289 ईसवी पूर्व) ने इस का विस्तार किया। तीसरे बड़े प्रचारक शुनज़ी (298-238 ईसवी पूर्व) थे। पर उन का विचार थोड़ा भिन्न था। उन के मतानुसार मानव मूलतः दुष्ट है तथा इस कारण कानून सख्त तथा दण्ड कठोर होने चाहिये। इस का प्रभाव अखिल चीन सम्राट क्विन शिनहुओ्रगदी (221-209ईसवी पूर्व) पर पड़ा तथा कई ग्रन्थ जलाये गये एवं विद्वानों को कष्ट दिया गया। अतः इस काल की सर्वत्र निन्दा की गई।
ऐसा नहीं कि कन्फूसियस के विचार को तुरन्त ग्रहण कर लिया गया। इस में कई श्ताब्दियाँ गुज़र गईं बल्कि क्विन राजवंश के समय तो इस के अनुयायिओं पर अत्याचार भी हुये। इस के नाम पर अत्याचार की बात हम ऊपर कर चुके हैं। हान राजवंश के समय (200 ईसवी पूर्व-200 ईसवी) इसे अधिकारिक रूप से स्वीकार किया गया। परन्तु दण्ड व्यवस्था शुनज़ी के विचार अनुसार ही रखी गई। यह तन्त्र दो सहस्त्र वर्ष तक प्रभावी रहा। हान राजवंष के काल में ही खुली परीक्षा से अधिकारियों के चयन का सिलसिला आरम्भ हुआ और कन्फूसियस के सिद्धाँत को चयन एवं प्रशिक्षण में शामिल किया गया। परीक्षा की यह पद्धति वियतनाम तथा कोरिया में भी अपनाई गई।
शासकीय तौर पर अपनाने के साथ ही विचारकों को भी हान राजवंश द्वारा प्रोत्साहित किया गया। इस काल में डेंग ज़वांगषु ने यिन तथा यांग के संयोजन के बारे मे लिखते हुये कन्फूसियस वाद तथा अन्य के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया। सम्पूर्ण जगत तिकड़ी - स्वर्ग, भूमि तथा मानव - को एक सूत्र में पिरोया तथा शासक को इन्हें मिलाने वाला बताया।
हान काल के पतन के पश्चात बौद्ध तथा ताओवाद का वर्चस्व रहा किन्तु सोंग राजवंश (960-1279) काल में पुनः कनफूसियस की विचारधारा पनप पाई। इस काल के प्रसिद्ध विचारक ज़़ू शी (1130-1200) थे। इन का मत था कि ‘ली’ तत्व सब का समन्वय करने वाला है। उन के विचार पर बौद्ध तथा ताओवाद का प्रभाव देखा जा सकता है तथा उन्हों ने ध्यान पर भी ज़ोर दिया। ध्यान पर विचारक वांग यंगमिंग (1472-1529) ने भी ज़ोर दिया। उन के अनुसार ज्ञान ही कर्म का उद्बोधक है।
कनफूसियसवाद का प्रसार वियतनाम में भी हुआ। यद्यपि तांग राजवंश के पतन के पश्चात वियतनाम चीन के आधीन नहीं रहा किन्तु कनफूसियसवाद द्वारा प्रतिवादित विचार तथा परीक्षा द्वारा चयनित प्रशासकों का प्रचलन यथावत रहा। इसी प्रकार कोरिया में भी 472 ईसवी से चीनी शासन एवं प्रशासन की अवधारणा अपनाई गई। चोसोन राजवंश (1392-1910) तक वही स्थिति रही। इन के काल में यि तोंगवे (1501-1570) नाम के विद्वान हुये। जापान की स्थिति थोड़ी अलग रही। वह चीन के आधीन नहीं रहा किन्तु कनफूसियस के विचार उस ने ग्रहण किये। इस का परिणाम सत्ता के केन्द्रीकरण में देखा जा सकता है। वर्ष 604 में राजकुमार शोतुकू ने 17 धाराओं वाला संविधान लागू किया जो कनफूसियसवाद के मौलिक सिद्धाँतों को ले कर चलता है। जापान के द्वन्द्वात्मक काल में काईबरा (1630-1714) नाम के विद्वान ने इस वाद का आम जनता में प्रचार किया।
आधुनिक युग में कनफूसियसवाद को चीन के पतन का ज़िम्मेदार ठहराया गया। साम्यवादी चीन में दूसरे विचार सामने आये किन्तु सामाजिक जीवन में आधार वही रहा है।
ईश्वरीय संकल्पना
इस वाद में विश्व की उत्पत्ति के बारे में अधिक विचार नहीं किया गया। केवल आदर्श राजाओं का वर्णन है जिन में याओ और शुन (2225-2205 ईसवी पूर्व) शामिल हैं जो जन आधारित शासक थे। इसी काल के यू को आदर्श मन्त्री माना जाता है।
कनफूसियावाद में लौकिक तथा पारलौकिक जगत की कल्पना की गई है। वाद के सामान्य नियम - पदक्रम, वरिष्ठ का आदर, कनिष्ठ के प्रति कर्तव्य सभी एक दूसरे पर प्रतिबिम्बित हैं। दिव्यलोक में जेड सम्राट हैं जिन के आदेश पर सभी कार्य होते हैं। सब से नीचे के स्तर पर जो देवता हैं, उन्हें तुडी गांग (पृथ्वी का देवता) कहा जाता है। हर ग्राम का अपना तुडी गांग होता है। वह लोगों की प्रार्थना को ऊपर के स्तर तक पहँचाता है। पदक्रम के अनुसार यह ऊपर की ओर जाती है तथा उचित स्तर पर इस पर आदेश होता है। जन्म, मृत्यु तथा विवाह इत्यादि की सूचना तुडी गांग तथा स्थानीय (लौकिक) थाने में दी जाती है। तुडी गांग इसे वरिष्ट स्तर पर पहुँचाता है। तुडी गांग का कर्तव्य स्थानीय प्रेत पर नियन्त्रण करने का भी है। यह प्रेत असंतुष्ट व्यक्ति जिन्हें मृत्यु के समय वाँछित संस्कार से दाह क्रम नहीं किया गया, हो सकते हैं।
तुडी गांग की पदोन्नति भी हो सकती है। सब से बड़ा उदाहरण माज़ू का है। उस महिला का जीवन आदर्श किन्तु अल्प था। 28 वर्ष की आयु में ही वह मृत्यु को प्राप्त हुई तथा उसे तुडी गांग माना गया। स्थानीय लोगों की श्रद्धा उस में थी जो क्रमश: बढ़ती गई। लगभग 200 वर्ष के बाद उसे क्रमश: पदोन्नति का अवसर मिला तथा समय पा कर वह तियन (आकाश अथवा स्वर्ग) की सम्राज्ञी (तियन हू) बनी तथा जेड सम्राट की सहचरी।
कनफूसियसवाद के विद्वान के मतानुसार इस विश्व का प्रथम सिद्धाँत ‘ली’ है (वैदिक संस्कृति में इसे ऋत कहा गया है - व्यवस्था)। इसी के पश्चात ‘क्वी’ का आर्विभाव हुआ जिस से यिन, यांग तथा सारी उत्पत्ति हुई। ताईजी (अथवा ताईची) ही सभी वस्तुओं में निहित है। नव कनफूसियसवाद में विद्यार्जन, आदर भाव एवं अनुशासन बद्ध मन तथा ध्यान को मन के विकास का आधार माना गया है।
पवित्र साहित्य
पूर्व में पाँच क्लासिक तथा चार पुस्तकों की बात कही गई है जो पवित्र साहित्य के अंग हैं। वे ही सेवाचयन परीक्षा में मुख्य ग्रन्थ थे जिन का अध्ययन आश्यष्यक था। जापान, कोरिया तथा वियतनाम में भी वह महत्वपूर्ण साहित्य माने गये। यह पाँच क्लासिक है सिज्रिग या आई चिंग (परिवर्तन सम्बन्धी); शूजिंग (अभिेलेख सम्बन्धी); शिजिंग (कविता सम्बन्धी); लि जि (पूजा सम्बन्धी); चाक्विन (ऋतु सम्बन्धी)। एक और ग्रन्थ संगीत सम्बन्धी (युवेजिंग) था किन्तु तीसरी शताब्दि ईसा पूर्व में खो गया। इन सभी में ज्ञान भण्डार है, समरसता की बात है, मानव बनने की सीख है। सिज्रिंग में मानव तथा प्रकृति में समन्वय का महत्व बताया गया है। इस के लेखक फ़ू षि (पौराणिक संस्कृति धारक सम्राट) माने गये हैं। इस में यिन तथा यांग के 64 संयोग बताये गये हैं। इस में सभी सम्भव स्थितियाँ आ जाती हैं। कनफूसियस ने दश व्रिग के नाम पर इस पर भाष्य लिखा था।
शूजिंग में सुशासन तथा नैतिक व्यवहार की बात है। शिजिंग में 305 कवितायें हैं जिन में लोक गीत भी हैं तथा सामान्य जीवन सम्बन्धी कवितायें भी हैं। इन में शासन पद्धति पर टिप्पणी भी की गई है। लि जि में पूजा की विधि के साथ व्यवहार सम्बन्धी बातें भी हैं जो युवा वर्ग, राजवर्ग के लिये हैं। आचार व्यवहार इन का विषय है।
इन पाँच क्लसिक के अतिरिक्त और साहित्य भी है। नौवीं शताब्दि में सोंग काल के विचारक ज़ू षि ने तेरह पुस्तकों का ज़िकर किया है। कनफूसियस सिद्धाँत को चार पुस्तकों में पूर्ण विवरण देने की बात कही गई है। यह चार पुस्तकें हैं - कनफूसियस की लुनया; मैनसियस की मेनगई; डाक्सयू; तथा ज़ोंगयांग। लुन्या में आदर्श समाज के बारे में कन्फूसियस के शिष्यों द्वारा अभिलिखित विचार हैं। मैंसियस की पुस्तक में इन विचारों को आगे बढ़ाया गया है। उन का मत है कि मानव मूलतः अच्छा है तथा सीख सकता है। पर उस का यह मत भी है कि आततायी राजा को पदच्युत किया जा सकता है। शेष दो पुस्तके ंवास्तव में लि जि का ही भाग हैं किन्तु ज़ू षि ने उन्हें अलग पुस्तकों के रूप में प्रस्तुत किया। यह सभी पुस्तकें शुद्ध साहित्यक भाषा में लिखी गई हैं। इन पर कई भाष्य भी लिखे गये हैं।
इन सिद्धाँतों के सीखने के लिये सामुदायिक शालायें स्थापित की गईं जिन में सरल भाषा में इन्हें पढ़ाया गया। किवंग राजवंश के काल में इन्हें नगर में डोंडी पिटवा कर सार्वजनिक रूप से भी प्रचारित किया गया। जापान में कईबरा एकेन ने इस पर वैसी ही पुस्तकें लिखीं।
पवित्र संत
अन्य देशों की तरह चीन में भी पौरणिक पुरुष एवं महिलायें रही हैं। इन में फू षि, शेन नोंग, हवांग दि मुख्य हैं। फू षि ने पशु तथा मछली पकड़ने का तरीका सुझाया। उन्हों ने नूवा के साथ शादी की तथा परिवार का आरम्भ किया। शेन नोंग ने हल तथा कृषि का आविष्कार किया। उन्हों ने औषधि तथा चिकित्सा का भी आरम्भ किया। हवांग दि ने युद्ध कला को प्रचारित किया तथा असभ्य जातियों को हरा कर चीनी राज्य की स्थापना कीं। याओं तथा शुन आदर्श राजा रहे। याओं ने अपने दस पुत्रों की अपेक्षा शुन को पात्र मान कर उसे दत्तकर्शपुत्र बनाया तथा वह आदर्श राजा रहा। शुन ने अपने पुत्रों की अपेक्षा यू को अपना उत्तराधिकारी बनाया और उस ने शिया राजवंश (2205-1766 ईसवी पूर्व) का आरम्भ किया।
यू के बारे मं बताया जाता है कि वह बाढ़ के समय लोगों की सहायता के लिये वहीं रहता था। एक बार वह दस वर्ष तक अपने घर नहीं गया ताकि नागरिकों की भलाई को देखता रहे।
मंत्रियों में कनफूसियस ने ज़ाउ (मृत्यु 1094 ईसवी पूर्व) को आदर्श माना है। वह ज़ाउ राजवंष के राजा वू का सौतेला भाई था पर कभी राज्य की आकांक्षा नहीं की। वू की मृत्यु के पष्चात सात वर्ष तक वह उस के बेटे का संरक्षक रहा।
कनफूसियस को प्रथम बार पूजनीय मानने का आरम्भ हान राजवंश के काल में हुआ। उन के जन्म स्थान क्युफू में मंदिर बनाया गया जो राष्ट्रीय तीर्थस्थान है। बलि चढ़ाने की प्रथा सम्राट गाउडी (206-195 ईसवी पूर्व) ने आरम्भ की। कनफूसियस के मंदिर चीन के हर क्षेत्र में मिल जायेें गे जिन में चीनी कलैण्डर के अनुसार दूसरे और आठवें महीने में स्मरण समारोह होता है। कई में मेन्सियस तथा ज़ू षि की मूर्तियाँ भी हैं। यह उल्लेख्नीय है कि कनफूसियस का कभी देवता नहीं माना गया, वह मानव ही रहे।
हर काल में कुछ पुरुष तथा महिलायें रहीं जो आदर्श थे। उन के बारे में चीन तथा कोरिया में पुस्तकें लिखी गईं। इन में उस महिला का भी वर्णन हैं जिस ने जलते हुये मकान में से सौतन के बच्चों का बचाया और उस के अपने बच्चे नहीं बच पाये। एक लाईज़ी है जो सत्तर वर्ष की आयु में भी बच्चे बने रहे ताकि उस के माता पिता को अपने बुढ़ापे का विचार न आये।
इस नश्वर जगत की भाँति आकाश में भी क्रमानुसार देवता है जिन की पदोन्नति भी हो सकती है यदि वह निष्ठावान रहें। हान काल के एक सैनिक ग्वाण्डी को देवता माना गया तथा उन की समय समय पर पदोन्नति भी राज्य घोषणा से होती रही। अभी उसे कई व्यापारिक गतिविधियों तथा वृतियों का संरक्षक देवता माना जाता है।
नैतिक सिद्धाँत
कनुफूसियस एक सुव्यवस्थित एवं सामंजस्यपूर्ण समाज तथा एक धार्मिक राज्य में विश्वास करते थे। सभी व्यक्तियों को सम्मान दिया जाये किन्तु एक क्रमबद्ध समाज के भीतर जहाँ हर एक अपना कर्तव्य पालन करता है। नैतिकता अपनाने के लिये उचित व्यवहार आवश्यक है। जगत का आधार लि है जो पूजाविधि, शिष्टाचार, सभ्याचार एवं प्रथाबद्ध को प्रभावित करता है। इसी से रैन का उद्भव होता है जो भद्रता, प्रेम, दयालुता, उदारता का द्योतक है। लि तथा रैन शिक्षा तथा व्यवहार दोनों का सामंजस्य करते हैं।
लि तथा रैन के अतिरिक्त दो और सिद्धाँत हैं - शू तथा ज़ांग। शू का अर्थ है - प्रतिदान, एक दूसरे से परस्पर व्यवहार। जांग का अर्थ है - सत्यता। दूसरे अर्थ में दूसरे से वैसा ही बर्ताव करें जैसा कि हम उस से चाहते हैं और ईमानदारी सें। इस सब में उन पाँच सम्बन्धों की बात भी है जिस के बारे में हम पूर्व में कह चुके हैं।
कनफूसियस सिद्धाँत में कर्तव्यपालन का विशेष महत्व है परन्तु यह भी आदेश है कि आततायी को समझाया जा सकता है अथवा उस की सेवा से अपने को अलग किया जा सकता है। युवान वंश के राजपाठ सम्भालने के पश्चात कई मंत्रीगण ने सेवानिवृति ले ली थी।
कनफूसियसवाद ने पूर्व एशिया में सिद्धाँत रूप में कई शताब्दियों तक राजकीय नीति को प्रभावित किया। बीच में पाश्चात्य देशों की आर्थिक प्रगति की चकाचौंध ने इसे प्रभावित किया किन्तु 1915 में च्यांग काई शैक ने इसे अपने संविधान में अपनाया। सिंगापुर में भी इसे शालाओं में शामिल किया गया है।
पवित्र स्थल
कनफूसियसवाद में मंदिर देवताओं के नहीं वरन् महत्वपूर्ण मनुष्यों के नाम पर हैं। इन मंदिरों में मूर्तियाँ नहीं हैं वरनृ इन में पट्टिया रहती हैं जिन पर व्यक्ति का तथा अन्य विद्वानों का नाम लिखा रहता है। घरों में भी पूजा के लिये जो स्थान निश्चित किया जता है, वहाँ पट्टिकाओं पर पूर्वजों के नाम, जन्म व मृत्यु की तिथि तथा पुत्रों की संख्या लिखी रहती है। तीन से पाँच पीढ़ियों के पश्चात उन पट्टिकाओं को पैतृक पूजास्थल पर ले जाया जाता है जहाँ नियमपूर्वक उन की पूजा की जाती है। यह पूजा स्थल विस्तृत परिवार का एक साथ होता है।
कूुूफू - कनुूसियस का जहाँ जन्म हुआ था - में उन की मृत्यु के तुरन्त बाद मंदिर बनाया गया था। उन के जन्म दिन को गुरू दिवस के रूप में मनाया जाता है जो प्रथा अभी भी ताईवान में चल रही है। इस मंदिर में बलि की प्रथा 195 ईसापूर्व में आरम्भ हुई थी।
कनफूसियस के मंदिर उत्तर दक्षिण दिशा में बनाये जाते हैं। वह वर्ग के रूप में हैं तथा आमने सामने की दीवारें सममितीय रहती हैं। इन का उपयोग सार्वजनिक घोषणाओं के लिये भी होता है जैसे कि परीक्षा परिणाम।
कनफूसियस का स्मरण शालाओं तथा अकादमियों में किया जाता है जहाँ वर्ष में दो बार पूजा की जाती है। ऐसा एक विशाल भवन अभी भी कोरिया में सियोंगक्युंकान में स्थित है।
बीजिंग में शाही महल में एक अंग में कनफूसियस का मंदिर है। इस में केवल सम्राट ही पूजा के लिये जा सकते थे। आम जनता को जाने की अनुमति नहीं थी। वर्ष में दो बार इक्वीनाक्स के समय (जब रात दिन बराबर होते हैं) राजा पूजा के लिये इस में जलूस के साथ जाते थे। शरद इक्वीनाक्स के समय लाल रंग के बैल का बलि दी जाती थी। इस में राजा वर्ष का ब्यौरा प्रस्तुत करता था तथा अगले वर्ष के लिये आशीरवाद माँगता था।
अलौकिक जगत की सरंचना लौकिक संरख्ना के समान ही है। इस में पदक्रमानुसार ही देवता रहते हैं। राजा द्वारा इन की अर्चना की जाती है। प्राकृतिक नदियों, पर्वतों, कन्द्राओं का धार्मिक स्वरूप माना जाता है। पाँच पर्वत पवित्र माने गये है जिन में सब से पवित्र ताई पर्वत है। वे प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करते हैं तथा भूमि को उत्पादक बनाये रखते हैं। वसन्त ऋतु में फसल बोने के समय विशेष पूजा की जाती है। नये राजवंश की स्थापना के समय फेंग तथा शान नामक विशेष पूजा भी की जाती है।
कनफूसियसवाद की विशेषता शिक्षा पर ज़ोर देने की है। चूँकि सभी मनुष्य एक ही प्रकृति के आधीन हैं इस कारण सभी को उस के बारे में तथा पाँच सम्बन्धों को जानने का हक है। इस कारण शासकीय तथा अशासकीय दोनों प्रकार के विद्या स्थानों को पवित्र माना जाता है।
पवित्र समय
चीन में पवित्र समय की अवधारणा ताओवाद, बौद्ध विचार तथा कनफूसियसवाद का मिला जुला अवतरण है। जापान में इस में शिण्टो धर्म का भी समावेश हो जाता है। कनफूसियसवाद में मुख्य बात प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाये रखने की हैं तथा वही भावना पवित्र समय में भी रहती है। त्यौहार चन्द्रमा के हिसाब से मनाये जाते हैं। शुक्ल पक्ष को यांग तथा कृष्ण पक्ष को यिन का द्योतक माना जाता हैै। सूर्य वर्ष के साथ मिलान के लिये अधिक मास की कल्पना भी भारत के समान की जाती है। चन्द्र मास का नाम भी प्रकृति के अनुरूप रखा गया है जैसे चैत्र मास को कीटजागरण मास कहा गया है। भादौं को ग्रीष्म की सीमा कहा गया है। कार्तिक को पाला अवतरण मास नाम दिया गया है।
बारह वर्ष का एक चक्र माना गया है। प्रत्येक वर्ष को किसी जानवर का नाम दिया गया है जैसे चूहा वर्ष इत्यादि। बारह वर्ष के चक्र को बड़े 60 वर्ष के चक्र का अंग माना गया है। इन बारह बारह वर्षों के पाँच समूहों को रंग दिया गये है। उदाहरणतया नीलाचूहा से बहृत चक्र का आरम्भ होता है (वर्ष 1984)। वर्ष 2000 स्फैद ड्रैग्न वर्ष था।
सब से महत्वपूर्ण त्यौहार नव वर्ष है जो चैत्र मास की प्रतिपदा को आरम्भ होता है। यह दिन साफ सफाई का है। पूरा परिवार का मिलन इस का केन्द्र बिन्दु है। इस में पूर्वजों को भी उन की पट्टिका के माध्यम से शामिल किया जाता है। एक रिवाज यह है कि द्वार को सील कर दिया जाता है ताकि दुष्ट आत्मायें बाहर रहें। प्रार्थना के पश्चात नव वर्ष के आगमन के महूरत में सील तोड़ी जाती है। दो दिन तक झाड़ू इत्यदि नहीं दिया जाता ताकि भाग्य बाहर न हो जाये।
दो सप्ताह के इस त्यौहार में अंतिम दिन दीपों का त्यौहार होता है। इस दिन रंग बिरंगे दीपों का जलूस होता है तथा नाच गाना होता है। इस के दो सप्ताह बाद किवंगमिंग नाम का त्यौहार है जिस में पकवान बनाये जाते हैं। इस दिन पूर्वजों के मनपसंद व्यंजन बनाये जाते हैं।
दूसरे त्यौहार ‘दौहरा पाँच’, ‘भूखा भूत’ तथा विषुव (इकिवनाक्स जब दिन रत्रि बराबर होते हैं)। ग्रीष्म ऋतु के विषुव में पाँच ज़हरों (कनखजूरे, साँप, बिच्छु, मैंढक तथ छिपकली) से बचाव के लिये दरवाज़े पर जड़ी बूटी टाँगने का रिवाज है। ‘दौहरा पाँच’ के समय ड्रैगन नाव दौड़ का आयोजन होता है। यह दौड़ क्यू युवान मन्त्री की याद में है। वह एक निष्ठावान मन्त्री था किन्तु उसे अकारण ही देश निकाला दे दिया गया। वहाँ उस ने ‘ली साव’ (दुख का सामना) नाम की कविता लिखी। इसी दुख के कारण उस ने मिलवू नदी में छलांग लगा दी। लोगों ने नावों पर उस की रक्षा करने का प्रयास किया किन्तु असफल रहे। इस दिन नदी में चावल भी फैंके जाते हैं ताकि मछलियाँ चावल खायें और क्यू युवान के शरीर को छोड़ दें। आजकल चावल के गगुगुले बनाा कर बाँस के पत्तर में लपेट कर डाले जाते हैं।
‘भूखे भूत’ त्यौहार चंद्रवर्ष के सातवें महीने की पूर्णमाशी को मनाया जाता है। इस दिन पूर्वजों को याद किया जाता है। किंदवती है कि इस दिन नरक के द्वार खोल दिये जाते हैं। मृत आत्मायें विचरने के लिये स्वतन्त्र हैं। जिन आत्माओं ने अपना दण्ड भुगत लिया है, उन्हें वापस नहीं जाना पड़ता। अन्य आत्माओं के कल्याण के लिये प्रार्थना की जाती है। उन्हें खाना दिया जाता है पर यह घर के पिछले द्वार पर किया जाता है। पूर्वजों की आत्माओं के लिये भोजन सामने के द्वार पर दिया जाता है।
चन्द्रवर्ष के आठवें महीने में पूर्णमाशी के दिन फसल पकने का समय होता है तथा त्यौहार में उसी का प्रतिबिम्ब होता हैै। परिवार समेत इस दिन खाना बाहर खाया जाता है जिस में चन्द्रमा के रूप में केक, तरबूज़, नारंगी इत्यादि मुख्य भोज्य पदार्थ होते हैं।
चीनी त्यौहार परिवार केन्द्रित होते हैं। विवाह के समय भी यही भावना रहती है। दुलहन को परिवार के पूर्वजों की जानकारी दी जाती है तथा उस के द्वारा उन की पूजा की जाती है। तभी उसे परिवार में शामिल माना जाता है।
कनफूसियस सम्बन्धी त्यौहार मुख्यतः सम्राट एवं नामित वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा ही मनाया जाता था। विपुव के समय पूर्वजों की विशेष पूजा की जाती थी। अन्य द्वारा इस प्रकार की पूजा विद्रोह मानी जाती थी।
मृत्यु उपरान्त
कनफूसियस का मृत्यु उपरान्त स्थिति से अधिक सम्बन्ध नहीं था। उन का मुख्य लक्ष्य जीवित प्राणी थे जिस में अपने से वरिष्ठ के प्रति आदर भाव रखना था। प्रकारान्त से यह पूर्वजों के प्रति आदर का भी पोशक था। दूसरी विचार धाराओं के चलते कनफूसियसवाद में भी पूर्वजों की पूजा का रिवाज आ गया जिस का वर्णन त्यौहार सम्बन्धी चर्चा में किया गया है। पाँच पीढ़ी तक की पट्टिकायें घर में रखी जाती है तथा उस से पहले की सामूहिक पूजा स्थल में रखी जाती हैं जहाँ पूरे विस्तृत परिवार एक साथ ही पूजा अर्चना करता है।
स्वर्ग तथा नरक के बारे में जो विचार हैं, उन में पृथ्वी सम्बन्धी विचार के समान ही पदक्रम की कल्पना की गई है।
मकान बनाते समय सब से पहले पूर्व की दिशा में पूर्वजों का कमरा बनाया जाता है जहाँ पट्टिकायें रखी जाती है। प्रत्येक प्रातः घर का वरिष्ठतम सदस्य इन को प्रणाम करने जाता है। किसी आपात स्थिति - आग, बाढ़, डाका - में सब से पूर्व पट्टिकाओं की ही रक्षा की जाती है।
यद्यपि आधुनिक काल में इन पूजा विधियों पर विपरीत टिप्पणी की जा रही है परन्तु परम्परा इन केा बनाये रखने की ही है।
समाज तथा धर्म
कनफूसियसवाद का मुख्य बिन्दु परिवाार है। यह पुरुष प्रधान ही है तथा पुत्र को ही परिवार चलाने का माध्यम माना गया है। बेटे का अपने पिता के प्रति व्यवहार पूर्णतः आज्ञापालन का था। पूर्वजों की पूजा के लिये बेटे के माध्यम से ही इसे पूरा किया जा सकता था। स्त्रियों के प्रति बराबरी की भावना नहीं थी। स्त्री को यिन ऊर्जा वाला माना जाता था जिस का लक्षण सहनशीलता तथा पालन पोषण है। इस के विपीत पुरुष यांग ऊर्जा वाले थे और सक्रिय थे। इस कारण स्त्रियों को पुरुष के आधीन माना गया तथा उन की रक्षा का दायित्व बचपन में माता पिता को, वैवाहिक जीवन में पति को तथा विधवा होने पर पृत्रों को दिया गया। स्त्री की निष्ठा भी उसी अनुसार अपेक्षित थी।
राजा ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था। उसे स्वर्गपुत्र की उपाधि भी दी गई थी। जनता से अपेक्षित था कि वे उन्हें अपने पिता मान का उन का आज्ञापालन करें। राजा की सहायता के लिये निष्ठावान मन्त्री रहते थे।
कनफूसियस शिक्षक थे और शिक्षा उन का मूल मन्त्र था। इस कारण ही सभी चीनी शिक्षा को महत्व देते थे चाहे वह किसी भी स्तर के हों। परीक्षा सब के लिये बराबर थी और परिवार का लक्ष्य रहता था कि कम से कम एक बेटा परीक्षा में उत्तीर्ण हो।
बीसवीं शताब्दि में आज्ञा पालन को उस दृष्टि से नहीं देखा जाता तथा आधुनिकता को अब स्थान दिया जा रहा है। साम्यवादी चीन में सक्रिय रूप से इस धारणा को दबाया जाता है। यद्यपि इस दबाव में परिवार के प्रति लगाव कम हुआ है किन्तु उसे समाप्त नहीं किया जा सका है। पुत्र प्राप्ति को अभी भी महत्व दिया जाता है ताकि परिवार चलता रहे।
दक्षिण कोरिया में कनफूसियसवाद अभी भी सक्रिय रूप से विद्यमान है। इस का प्रभाव उद्योग जगत में भी देखा जाता है। इस वाद का प्रचार एवं सुरक्षा कई संगठनों द्वारा की जा रही है। जापान में कनफूसियस का इतना प्रभाव नहीं रहा और शिण्टो धर्म ही प्रभावी रहा किन्तु इस वाद को सम्राट के प्रति वफादारी के लिये इस्तेमाल किया गया। अभी भी शालाओं, औद्योगिक संस्थानों में वरिष्ठ के प्रति आदर भाव को अपनाया जाता है। स्त्रियों के प्रति व्यवहार चीन के समान ही था किन्तु इस का यह अर्थ नहीं कि उन्हें षिक्षा इत्यादि से दूर रखा जाता था बल्कि माना जाता था कि बच्चों को पढ़ाने के लिये उन का भी शिक्षित होेना आवश्यक था।
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