सौदा
उस रोज़ एक सज्जन हमें मिले
देखा हाथ में पोर्टफोलियो था
पूछने लगे
क्यों मित्र, क्या बेचते हो
मैं कुछ बोल नहीं पाया
सोचने लगा मैं क्या बेचता हूॅं
क्या बेचने के लिये मेरे पास कुछ है।
लिपिक था जब मैं
अपना समय बेचा करता था
अफसर की आंख बचा कर
(जैसे दुकानदार ग्राहक को कम सौदा देता है)
मैं भी बचा लेता था कुछ क्षण
गप लगाने को
सिगरेट सुलगाने को
या निठल्ले ही बैठे रहने को
और
जैसे दुकानदार होशियारी दिखलाता है
मैं भी स्वयं को समझने लगा होशियार।
लेकिन
फिर मैं अध्यापक बन गया
ज्ञान बेचने लगा
पैसे के मुताबिक ज्ञान
सौ में जी आई आर एल गिरल
डेढ़ सौ में गिर्ल
इस से ज़्यादा पगार मिली नहीं
और अंग्रेज़ी आगे बढ़ी नहीं।
यह सब मैं ने बेचा
अलग अलग जगह
अलग अलग ग्राहक को
लेकिन मेरा पेट भरा नहीं
दो जून खाने को मिला नहीं
इस लिये एक दिन मैं ने ईमान बेच दिया।
मज़े में हूॅं तब से मैं
हाथ में पोर्टफोलियो भी है
पोर्टफालियो में पर्स भी
पर्स में पैसे भी
एक चीज़ बेच कर मैं ने सब कुछ पा लिया
अब बेचने को बचा क्या है
शायद इसी लिये
मैं उन सज्जन को बता नहीं पाया
आजकल क्या बेचता हूॅं मैं
(भिलाई - 12.1.1970)
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