शाम
इक उदास शाम
मैं तन्हा
न साथी है कोई, न मंजि़ल ही
एक सफर
जो खतम होने का नाम ही नहीं लेता
यह बिखरी हुई यादें
जिन में अब उम्मीद की झलक भी नहीं
यह सूनी राहें
रहगुज़र का इंतज़ार कर सोने की तैयारी में हैं
यह फैलते हुए साये
जाने किस को छूना चाहते हैं
रात के बिखरते हुए गेसू
किस की बलायें लेने को हैं बेताब
कौन जाने किस कल का ख्वाब लिये
गुज़र रही है यह उदास शाम
इक उदास शाम
मैं तन्हा
इतराफ में नशे में झूमता हुआ हजूम
जाम में छलकता हुआ आब ए हयात
अपने में ही समाये हुए यह अशखास
कौन जाने इन्हें किस खुशी की तलाश है
इक उदास शाम
यह कौन है जो प्यार की राह
चला है सजाने इक ताजमहल
वह बरबाद मोहबत की इक यादगार
जिस से जुदाई की बू आती है
फिर हिजर की रात बिताने
जा रहा है कौन आज युमना के किनारे
मेरे लिये शायद यह भी नहीं
बस रह गई है बिखरी सी याद
इक उदास शाम
मैं तन्हा
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