top of page
  • kewal sethi

शाम

शाम


इक उदास शाम

मैं तन्हा

न साथी है कोई, न मंजि़ल ही

एक सफर

जो खतम होने का नाम ही नहीं लेता

यह बिखरी हुई यादें

जिन में अब उम्मीद की झलक भी नहीं


यह सूनी राहें

रहगुज़र का इंतज़ार कर सोने की तैयारी में हैं

यह फैलते हुए साये

जाने किस को छूना चाहते हैं

रात के बिखरते हुए गेसू

किस की बलायें लेने को हैं बेताब

कौन जाने किस कल का ख्वाब लिये

गुज़र रही है यह उदास शाम


इक उदास शाम

मैं तन्हा

इतराफ में नशे में झूमता हुआ हजूम

जाम में छलकता हुआ आब ए हयात

अपने में ही समाये हुए यह अशखास

कौन जाने इन्हें किस खुशी की तलाश है


इक उदास शाम

यह कौन है जो प्यार की राह

चला है सजाने इक ताजमहल

वह बरबाद मोहबत की इक यादगार

जिस से जुदाई की बू आती है

फिर हिजर की रात बिताने

जा रहा है कौन आज युमना के किनारे

मेरे लिये शायद यह भी नहीं

बस रह गई है बिखरी सी याद


इक उदास शाम

मैं तन्हा


1 view

Recent Posts

See All

लंगड़ का मरना (श्री लाल शुक्ल ने एक उपन्यास लिखा था -राग दरबारी। इस में एक पात्र था लंगड़। एक गरीब किसान जिस ने तहसील कार्यालय में नकल का आवेदन लगाया था। रिश्वत न देने के कारण नकल नहीं मिली, बस पेशियाँ

अदानी अदानी हिण्डनबर्ग ने अब यह क्या ज़ुल्म ढाया जो था खुला राज़ वह सब को बताया जानते हैं सभी बोगस कमपनियाॅं का खेल नार्म है यह व्यापार का चाहे जहाॅं तू देख टैक्स बचाने के लिये कई देश रहते तैयार देते हर

सफरनामा हर अंचल का अपना अपना तरीका था, अपना अपना रंग माॅंगने की सुविधा हर व्यक्ति को, था नहीं कोई किसी से कम कहें ऐसी ऐसी बात कि वहाॅं सारे सुनने वाले रह जायें दंग पर कभी काम की बात भी कह जायें हल्की

bottom of page