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kewal sethi

देखा

देखा


दिल्ली देखी, भारत देखा और देखा है ज़माना

चलता रहता है यह संसार चलता रहता है आना जाना

महापुरुषों के निधन पर लोगों को कोटि कोटि नीर बहाते देखा

फिर उन आदर्शों को सामने रख कर उलटे काम करते देखा

सत्ता के पीछे हाथ धो कर पड़े हुए इंसान को देखा

इंसानों के खेल को देख कर हॅंसते हुए भगवान को देखा

हर शख्स को पैसे की खातिर बेचते हुए ईमान है देखा

इस सौदे में होता हुआ एक अजीब अभिमान है देखा

रोती हुई रूहों को कब हॅंसने से है काम रहा

पैसे की झंकार पर दिल बन जाता पाषाण यह देखा

आग लगी थी घर में, देख रहे सब लोग तमाशा

इस समय भी घर मालिक को करते चिन्ता अनुदान की देखा

इस में कितने वोट मिलें गे, इस का मन में धर कर

करते हुये अनुकम्पा राशि का हिसाब सियासतदान को देखा

केजरीवाल के व्यक्तव्य सुने हैं, राज्यपाल के करतब देखे

कब करते हैं काम, मालूम नहीं, बस देते हुए लम्बे ब्यान है देखा

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