top of page
  • kewal sethi

कटनी

कटनी


कटनी - तुम्हीं तो हो प्रदेश की पहचान

तुम्हारी महानता का कौन कर सका बखान

मध्य प्रदेश के मध्य में एक अलबेला नगर

मिलती हैं जहां आ कर दिशाओं से डगर

सभी तरफ होता है यहां से माल रवाना

मिलता न तुम्हें फिर भी पेट भर खाना

सप्लाई करती तुम प्रदेश क्या देश को चूना

फिर भी होता है मुफलिसपन तुम्हारा दूना

दौलत से भरपूर अपने में ही हो मस्तानी

पर हो तुम फिर भी सादगी की दीवानी

अपनी दौलत की शान बखाना नहीं चाहती हो

इस लिये ढंग का कालेज न हस्पताल बनवाती हो

अतिथियों पर भी झूटा रौअब नहीं जताना चाहती हो

इसी लिये अच्छा होटल बनाने से घबराती हो

भारतीय सभ्यता की तुम दृढ़ रखवाली हो

विदेशी ढंग के कल्ब से तुम निराली हो

प्यारा है तुम्हें काम ध्येय आराम नहीं है

सो पार्क से भी तुम्हें कुछ काम नहीं है

चाहती हो कि हो सब को अहसास काम का

इसी लिये तो होटल नहीं कोई यहां काम का

न कोई बाग़ है कि जा कर सुस्ता लीजिये

न पिकनिक की ठौर कि दिल बहला लीजिये

सिनेमाघर वैसे तो यहां पर कहने को चार हैं

न जाने क्यों खटमलों को उन से प्यार है

लगता है कटनी ने सांस्कृतिक बनाये हैं खटमल

रौज़ाना तीन तीन शो देख कर भी जाते नहीं घर

स्तर सब का तुम सच मुच ऊपर उठाना चाहती हो

इस लिये पैसा सिर्फ पैसा कमाना चाहती हो

नेता यहां का समझा जाता वही महान है

जिस पर सरकार का बकाया छूता आसमान है

या फिर जनता को भड़काना जानता है

रात को दिन, दिन को रात बताना जानता है

कारों पर चढ़ कर घूमते हैं नेता महान

कद्र ताकि उन की पहचानें मज़दूरो किसान

तारीफ की जाये जितनी भी कम है

छोड़ रहा हूं तुझ को मुझे यही गम है

उम्मीद है फिर लौट कर आऊं गा मैं

कुछ और भी निखरा हुआ तुझे पाऊं गा मैं

चाहे रहूं कहीं भी मुझ को कटनी याद आये गी

बात होगी शहरों की तो तू सरताज कहलाये गी

(कटनी - जुलाई 1967। ज़ाहिर है कि यह कविता वहां से स्थानान्तर के समय ही लिखी गई थी और उस समय की हालत ब्यान करती है। अब तो कटनी बहुत बदल गई है)

2 views

Recent Posts

See All

आज़ादी की तीसरी जंग (18 अप्रैल 2023) बूढे भारत में फिर से आई नई जवानी थी दूर फिरंगी को करने की सब ने ठानी थी। थे इस आज़ादी की लड़ाई में कई सिपहसलार सब की अपनी फौज थी, और अपनी सरकार अपने अपने इलाके थे, उन

याद भस्मासुर की मित्रवर पर सकट भारी, बना कुछ ऐसा योग जेल जाना पड़े] ऐसा लगाता था उन्हें संयोग कौन सफल राजनेता कब जेलों से डरता हैं हर जेल यात्रा से वह एक सीढ़ी चढ़ता है। लेकिन यह नया फैसला तो है बहुत अजी

लंगड़ का मरना (श्री लाल शुक्ल ने एक उपन्यास लिखा था -राग दरबारी। इस में एक पात्र था लंगड़। एक गरीब किसान जिस ने तहसील कार्यालय में नकल का आवेदन लगाया था। रिश्वत न देने के कारण नकल नहीं मिली, बस पेशियाँ

bottom of page