top of page

मसूरी

  • kewal sethi
  • Jul 24, 2020
  • 1 min read

मसूरी


यूं ही बैठे बेठे कूछ गुनगुना रहा था मैं

शायद कोई भूला नगमा दौहरा रहा था मैं

कहा इक दोस्त ने कि मंसूरी शहर अच्छा है

इस पर भी कहें कुछ तो जचता है

मैं ने भी सोचा

सही हो गा मसूरी पर कविता लिखना

कलम हाथ में ली

मन घूमने लगा मंसूरी के चारों तरफ

कुलड़ी में रंगबिरंगे चहचहाते फूल

लिखने के लिये मौजूं मज़मून थे

ऊपर आसमान में नीचे देहरादून में चमकते सितारे

कल्पना को उड़ान को देते सकून थे

तभी नज़र रिक्शा खींचते हुए

दो पैर के जानवरों पर दौड़ गई

सामान पीठ पर लादे जाते हुए कुली

नज़रों के आगे घूमने लगे

जो खूबसूरती देखी थी पहली बार

वह अब नज़र नहीं आती

तब हर शाम पुरबहार थी

हर सुबह इक नई दास्तान सुनाती थी

मंसूरी का हर पत्थर लिये एक अफसाना था

हर दिन प्यारा था

हर रात निराली थी

काम्पटी से पानी नहीं अमृत बहता था

बरफ से ढके पहाड़ ---

लेकिन आज

इस बार

यह सब अजनबी से लगते हैं

नीचे देहरादून देखता हूं तो

सितारे दिखाई नहीं देते

केवल कुछ रेंगते हुए इनसान

पेट की खातिर

इधर से उधर

उधर से इधर

जाते दिखाई देते हैं

रोपवे भी मन को बहला नहीं सका

इस में भी रुंधे गलों की आवाज़ सुनाई देती है

सब कुछ बदला बदला सा है

या शायद

मैं बदल गया हूं

(मसूरी 27.4.1971)

Recent Posts

See All
बताईये

बताईये एक बात मुझे आप को है आज बतानी मेरे लिये अहम है आप के लिये बेमानी कालेज में एक लड़की, भला सा है नाम देखती रहती हे मेरी तरफ बिना...

 
 
 
व्यापम की बात

व्यापम की बात - मुकाबला व्यापम में एम बी ए के लिये इण्टरव्यू थी और साथ में उस के थी ग्रुप डिस्कशन भी सभी तरह के एक्सपर्ट इस लिये थे...

 
 
 
दिल्ली की दलदल

दिल्ली की दलदल बहुत दिन से बेकरारी थी कब हो गे चुनाव दिल्ली में इंतज़ार लगाये बैठे थे सब दलों के नेता दिल्ली में कुछ दल इतने उतवाले थे चुन...

 
 
 

Comments


bottom of page