बधाई
दिलेरी जब दफतर से लौट रहा था तो उसे याद आया कि चलते समय बीवी ने कहा था कि आते समय अरहर की और मूॅंग की दाल लेता आये। याद आते ही उस की साईकल अपने आप लाला हर दयाल की दुकान की तरफ मुड़ गई। इस इलाके में वही तो था जो बिना चीं चुपड़ किये उधार पर सौदा दे देता था। और फिर उस पर लुत्फ यह कि पहली तारीख को ही तकाज़ा नहीं करता था बल्कि दो एक दिन इंतज़ार कर लेता था।
जैसे ही दिलेरी की साईकल दुकान के सामने रुकी, लाला हर दयाल चिल्लाया - बधाई हो, बघाई।
दिलेरी चक्कर में कि यह बधाई किस बात की है। घर पर तो ऐसी कोई बात बधाई लायक नहीं थी ओर न ही लाला से ऐसा रिश्ता था कि उस के घर में कुछ खुशी हो तो वह उस का बधाई दे। ऐसे मौके पर अधिक जानकारी मॉंगना ही सही तरीका होता है।
- काहे की बधाई, लाला
- अरे, तुम्हें मालूम नहीं है।
- मालूम होता तो तुम से काहे पूछता।
- चार प्रतिशत भत्ता बढ़ गया है और तुम्हें मालूम ही नहीं।
- कब, कैसे
- अभी पॉंच बजे के समाचार में था। सरकार ने चार प्रतिशत भत्ता बढ़ा दिया है।
- चलो, अच्छा हुआ। देर सवेर बढ़ना ही था। महंगाई भी तो बढ़ गई है। अच्छा अब जल्दी से एक किलो अरहर और एक किलो मूॅंग तौल देना।
- अभी लो।
सामान मिला और साथ में बिल भी। बिल देख कर दिलेरी चौंका।
- यह क्या अरहर 160 की लगा दी। भाव तो 140 का था। और मूॅंग में भी बीस रुपये ज़्यादा।
- दिलेरी जी, महंगाई भत्ता बढ़ गया है। तुम्हीं तो कह रहे थे कि महंगाई हो गई है।
- पर अभी तो फैसला हुआ है। आर्डर कहॉं निकला हो गा। उस में वक्त लग सकता है। तुम्हारे भाव कैसे एक दम बढ गये।
- आर्डर जब भी निकले, तब निकले पर बकाया तो जनवरी से ही मिले गा न। अब मैं पिछली तारीख से तो दाम नहीं बढ़ा सकता। सरकार थोड़े ही हूॅं।
- गनीमत है कि तुम सरकार नहीं हो पर सरकार का क्या भरोसा, कब इरादा बदल ले। कुछ इंतज़ार करते। और फिर भत्ता तो चार प्रतिशत ही बढ़ा हो गा, तुम ने बीस रुपये बढ़ दिये। जानते हो कितने प्रसैण्ट हुआ। बारह परसैण्ट से अधिक।
- भई, आप लोग हुश्यार हो, गिनती विनती कर लेते हो। हम ठहरे गंवार, अंदाज़ से ही करते हैं।
- पर तुम्हारा अन्दाज़ तो हमेशा ऊपर की तरफ होता है। कभी कम भी कर लिया करो।
- कम करें गे तो फिर भरपाई कौन करे गा। सही तरफ ही रहना सही होता है।
- पर यह बीस रुपये तो मैं नहीं मानने वाला। आप रखो अपने पास अपनी दाल।
- और रात को पकाओ गे क्या।
- वह देखी जाये गी।
- अच्छा अच्छा, जल्दी क्या है लौटाने की। तुम पुराने ग्राहक हो, दस रुपये कम कर देता हूॅं।
- दस से काम नही चले गा। अगले महीने चाहे जो दाम लगाओ पर इस बार तो?
- तुम भी क्या याद रखो गे, किसी दिल वाले से पाला पड़े गा। अच्छा बारह रुपये। और बस अब कुछ मत बोलना।
- बोलना क्या है। कभी बोलने का मौका देते हो। हर बात सरकार पर टाल कर अलग हो जाते हो।
- सरकार तो आप की ही है। आप लोग ही तो सब फैसले करते हो।
- वह तो है।
और सौदा हो गया।
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