बधाई
- kewal sethi
- Aug 13, 2023
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बधाई
मैं अपने कालेज में बरामदे में खड़ा था। काफी चहल पहल थी। अभी अभी कालेज खुला था और दाखिले की कार्रवाई चल रही थी। नये नये बच्चे आ रहे थे।
एक लड़की पास आ कर बोली - यह कौंसलिंग कहॉं हो रही है।
मैं ने बता दिया कि पहली मंज़िल पर रूम नम्बर 21 में।
फिर थोड़ी मदद करने के लिये बोला - यहौं से दायें जाईये। सीढ़ी हो गी। उस से ऊपर जाईये। फिर बायें तरफ मुड़ का चलिये। बरामदा आने पर बायें मुड़िये। फिर एक और वरामदा आये गा, उस में दायें मुड़िये। तीसरे नम्बर का कमरा कमरा नम्बर 21 है।
यह कौंसलिंंग में होता क्या है - उस ने जानना चाहा।
- कौंसल्रिग में नाम पुकारा जाता है। फिर बात करते हैं और विषय की सूचना दे देते हैं।
- पूछते नहीं कि कौन सा विषय लेना है।
- पूछते क्यों नहीं। पर उस पर ध्यान नहीं देते। शायद सुनते भी नहीं। वैसे आप कौन सा विषय चाहती हैं।
- समाज शास्त्र या फिर राजनीति विज्ञान।
- गुड।
- एक बार फिर से रास्ता बताईये गा। यह दायें बायें का तो याद नहीं रहा।
- चलिये मैं वहॉं तक छोड़ देता हूॅं।
यह कह कर दायें बायें हो कर कमरा नम्बर 21 तक पहॅंचा दिया। जो कर्लक बैठा था, उसे नाम लिखा दिया। फिर बता दिया कि जब नाम पुकारा जाये तो जा कर बात कर लीजिये गा।
इतना कह कर मैं चला आया। लाईब्रेरी से किताब लेनी थी। उस में कुछ समय लगा।
फिर ध्यान आया, देखें क्या हुआ उस लड़की का। गया तो वह अभी बैठी ही थी। शायद नम्बर नहीं आया था। मैं बाहर ही इंतज़ार करने लगा। तभी नाम पुकारा गया - वीरा चौहान और वह उठी।
चनिये इस बहाने नाम तो मालूम हो गया।
बाहर निकली तो मुझे वहॉं पाया। कहने लगी - अरे आप यहीं पर हो।
- नहीं। मैं तो लाईब्रेरी में था। अभी आया सिर्फ यह जानने कि कौन सा विषय मिला।
- समाज शास्त्र ही मिल गया।ं
वह खुश दिखी।
- मेरा विषय भी समाजशास्त्र ही है। मिलते रहें गे।
- आप सीनियर हैं तो कुछ गाईडैंस भी मिलती रहे गी।
- सीनियर तो ठीक है पर मैं बहुत नालायक स्टुडैण्ट हूॅं। गाईडैन्स लें गी तो गड्डे में गिरें गी।
वह खिलखिला कर हंसी। उस की हंसी क्या थी, मत पूछिये। जैसे मोतियों की सरसराहट।
- आप बहुत दिलचस्प इन्सान है।
- इंसान हू, यह तो पता था पर दिलचस्प हूूॅं, यह अभी पता चला। चलिये इस बात पर आप को कैण्टीन में चाय पिलाते हैं।
हम दोनों केण्टीन की ओर चल दिया। कालेज के भवन से थोड़ा हट कर कैण्टीन है।
उधर जा रहे थे तो सामने से राकेश आता दिखाई दिया। बच कर निकलना चाहता था पर उस ने देख लिया। वहीं से पुकार कर बोला - बधाई हो।
अचानक वीरा ठिठक गई। बोली - अरे याद आया। भैया इंतज़ार कर रहे हों गे। उन्हों ने कहा था कि वह लेने आ जायें गे। चाय फिर कभी।
दोनों लौट गये। मैं ने यह ठीक नहीं समझा कि भैया के सामने जाऊॅं। कालेज की तरफ मुड गया।
अभी अन्दर दाखिल ही हुआ था कि राकेश फिर सामने पड़ गया। बोला - क्यों क्या हुआ। चाय नहीं पी।
- यार, तुम्हें बधाई देने की क्या ज़रूरत थी।
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