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धोका

kewal sethi

धोका


- हैलो सुनीता, कैसी हो। लाल पीली क्यों दिख रही हो।

- वह बेईमान है, धोके बाज़ है। चालबाज़ है।

- कौन?

- वही सलिल, नालायक, बहुत बनता था, बहुत वायदे किये उस ने।

- पर सलिल को तो तुम काफी समय से जानती हो। अब क्या हुआ?

- होना क्या थाा, उस की असलियत पता वल गई।

- असलियत पता चल गई? क्या कर डाला उस ने?

- मत पूछो, इतने दिन तक धोके में थी।

- देर आये दुरुस्त आये। सब ठीक हो गा।

- क्या खाक ठीक हो गा। मुझे तो उलझन में डाल दिया है न उस ने।

तभी एक और सहेली का पदार्पन हुआ।

- हैलो ऋचा

- हैलो कामिनी

- हैलो सुनीता। कैसी हो? सलिल कैसा है?

- नाम मत लो उस कमीने का मेरे सामने।

- कमीना? अरे, वह तो तुम्हारा पक्का दोस्त है। भला लड़़का है।

- भला, माई फुट। उस जैसा दगाबाज़ कोई हो गा नहीं।

- अरे, यह अचानक क्या हो गया।

- वायदा करता रहा पर जब मौका पड़ा तो साफ मुकुर गया।

- तबियत तो ठीक है न। कहीं कुछ ऐसा वेसा तो ....

- मतलब?

- कुछ नहीं। कुछ नहीं। मैं ने तो वैसे ही पूछ लिया था। गुस्से में हो न इस लिये।

- तुम सब को तो खुशी ही हो गी न मेरे इस हाल पर

- खुशी? ऋचा, मेरे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। हुआ क्या?

- अरे कुछ नहीं कामिनी। सुनीता ने उस से फोरसाईथ की डिफरैंशल कैल्कूलस मॉंगी थी चार रोज़ के लिये। उस ने मना कर दिया।

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