उदासी
रुक कर ठहर कर धीरे धीरे बढ़ता समय आगे को
ज्यों तारों का समूहदल धरा पर देख किसी बादल को
आज बादल का वेग है न शान भरा गुमान भरा
आंखों की भांति ही है आज सूखा उधान धरा का
आंखें भी हैं कुछ सूनी सूनी, ओज नहीं वह तेज नहीं
ज्यों अगिन के हदय में आज आशा का तेल नहीं
आशा भी है ढिलमिल ढिलमिल ज्यों हो थकी थकी सी
ज्यों दीपक की बत्ती हो शाम को ही बुझी बुझी सी
और शाम आज उदास है जैसे कुछ खो गया हो
जैसे इक जीवन साथी रस्ते में ही छोड़ गया हो
रास्ता भी है आज कुछ अकेला सा जैसे मंजि़ल भूल गई हो
जैसे प्रीतम में खोई अभिसारिका आंचल संवारना भूल गई हो
और आंचल भी है कुछ ठहरा हुआ कुछ सहमा हुआ
जैसे इक दीवाना आज अचानक होश में आ गया हो
और होश तो रूप के सामने है घबराया हुआ
जैसे देख ताप जलते हदय का सूरज हो शरमाया हुआ
(होशंगाबाद 1964)
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