- kewal sethi
हिस्ट्र्रीशीटर के नाम
हिस्ट्र्रीशीटर के नाम
वस्ल-ए-महबूब हो चुका है इस लिये
तेरे घर का चक्कर लगा लिया करता हूँ
कुछ रस्मे शायरी भी पूरी हो जाती है
कुछ नौकरी भी निभा लिया करता हूँ
लीडर के नाम
वस्ल-ए-महबूब हो चुका है इस लिये
तेरी याद में रातों को जाग लिया करता हूँ
आहें भरने का खैर अब कोई मतलब नहीं
बस दो चार शेर ढाल लिया करता हूँ
(ग्वालियर - 1967 सी एस पी के कहने पर कि नौकरी में कविता कहना मुशिकल है यह समझाने के लिये कि यह इतना मुशिकल भी नहीं है। दोनों को मिलाया जा सकता है। पर उस की टिप्पणी सूखी थी। दो ही सुनने के बाद बोले, बस, दो बार ही वस्ल हुआ।)