हाय गर्मी
यह सब आरम्भ हुआ लंच समय की बैठक में।
बतियाने का इस से अव्छा मौका और कौन सा हो सकता है।
किस ने शुरू किया पता नही। बात हो रही थी गर्मी की।
—— अभी तो मई का महीना शुरू हुआ है। अभी से यह हाल है। आगे क्या हो गा। एक ने कहा
—- मौसम विभाग का कहना है कि इस बार भयंकर गर्मी पड़े गी। दूसरे ने कहा।
—— केरल में तो स्कूल बन्द कर दिये गये हैं, गर्मी के कारण। तीसरे ने कहा
—— सब अमरीकन और पश्चिम के देशों के कारण है। एक और का मत था।
इसी बीच किसी - पता नहीं कौन - ने कहा - आये गा तो मोदी ही।
चर्चा का रुख ही बदल गया।
गर्मी की बात छोड़ कर चुनाव पर बात आ गई।
सब के अपनी अपनी राय थी और सब ने अपनी अपनी राय से सब को नवाज़ा।
बात घूम फिर कर दिलेरी तक आ गई।
वह आम दिनों के खिलाफ चुप चाप बैठा था।
किसी ने पूछा - दिलेरी, तुम क्या सोचते हो।
दिलेरी बोले - मुझे तो मिक्स वैजीटेबल पसन्द है।
- बात दलों के चुनाव की हो रही है, सब्ज़ियों के चुनाव की नहीं।
- अपनी अपनी पसन्द है। किसी को कोई सब्ज़ी पसन्द आती है, किसी को कोई।
- मुझे तो आलू पनीर की अच्छी लगती हैं - एक ने कहा।
- मुझे आलू गोभी। अच्छी तरह गली हो तो। - दूसरे ने कहा
- सब्ज़ियों में तो आलू पालक का जवाब नहीं है। - तीसरे की राय थी।
दिलेरी बोले - सब सब्ज़ियॉं अच्छी हैं पर इन का असली ज़ायका लेना हो तो इन्हें मिला कर पकाओ तो अलग ही बात बनती है। चाहे जिस का स्वाद ले लो।
- भई, यह बताओं कि चुनाव की चर्चा में सब्ज़ी कहॉं से आ गई।
- नौ दिन से लगातार श्रीमती जी आलू परोस रही हैं। तंग आ गया।
- बाकी सब्ज़ियों के दाम बढ़ गये हैं तो वह क्या करे।
- पर बात चुनाव की है। किसी ने फिर याद कराया।
- बात को मोड़ो मत। मुद्दे पर आओ।
- वही बता रहा हूॅं। दोनों का ता़ल्लुक है। अब देखो, नौ साल से एक मोदी मोदी हो रहा है। बोरियत हो जाती है। अगर दूसरे आ जायें तो एक दिन राहुल की बात हो गी, एक दिन ममता की। तीसरे दिन स्टालिन की, चौथे दिन पवार की।
- ऊद्धव ठाकरे को भूल गये क्या।
- और वह येचुरी भी तो कोने में बैठा है।
- सही बात है। इसी लिये तो कह रहा हूॅं कि मिक्स वैजीटेबल ही स्वाद देती है। बोर नहीं होने देती। हर रोज़ नया चुटकला।
- पर आये गा तो मोदी ही,
फिर वही आवाज़ आई और सभा इस के साथ उस दिन के लिये उठ गई।
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