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हड़ताल की कहानी

  • kewal sethi
  • Jul 2, 2020
  • 2 min read

हड़ताल की कहानी


was written in 1968 after the employees strike was over.

does it remind you of bapu ki amar kahani sung by mohd. rafi or

of jhansi ki rani by subhadra kumari chauhan

हड़ताल की कहानी

(1968 में शासकीय कर्मचारियों की हड़ताल हुई थी। उस की कहानी।)


ए मध्य प्रदेश वासियो, सुन लो बात हमारी

खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी


सन उन्नीस सौ अड़सठ, माह अगस्त था लासानी

कर्मचारियों ने अपना हक मनवाने की थी ठानी

तरीका कोई नया नहीं था, राह थी बहुत पुरानी

सदियों से मज़दूरों की यही तरकीब जानी पहचानी

चल पड़े थे इस राह पर यह सब कलमधारी

खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी

नोटिस आदि दे कर उन्हों ने शासन को था समझाया

पर उत्तर उधर से कोई संतोषजनक नहीं आया

तब फिर सब ने हड़ताल का हथियार अपनाया

दिनांक सत्रह से करें गे शुरू शासन को बतलाया

घूम गई फिर चारों तरफ नेताओं की सवारी

खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी


कागज़ फाईलें बन्द पड़ी थीं दफतर में सब ओर

निकल पड़े थे आंगन में बाबू अपनी कुर्सी छोड़

शासन ने दी धमकी और खूब मचाया शोर

पर वाह रे बाबू टूटी न तुम्हारी हिम्मत की डोर

अब तो इस पार या उस पार की थी तैयारी

खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी


बात चीत के रास्ते जब बंद हो गये थे सारे

शासन ने तब दमन के नये तरीके संवारे

लिस्टें बनी शासन में कौन कौन पर फंदा डारें

कलैक्टरों एस पी को कोड में संदेश गये सारे

इधर से भी अब पूरे हमले की पूरी तैयारी

खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी


अनिवार्य सेवा आदेश तब किया शासन ने जारी

हड़ताल अवैध करार दी, दे दी थी चोट इक भारी

कुछ तो ससपैंड पड़े कुछ की हुई गिरफतारी

धर पकड़ की खबरें अब तो आ रही थीं सारी

पर हिम्मत देखो बाबू की हड़ताल रही जारी

खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी


पर हाय तभी शासन ने नया पैंतरा डाला

मुख्यमंत्री गये अज्ञातवास में नरोन्हा ने भार संभाला

अनिवार्य सेवा अधिनियम में संशोधन आडिनेंस निकाला

तीन वर्ष तक किया कैद को, जुर्म को कागनाईज़ेबल बना

ज़मानत तक की गुंजाईश नहीं हो ऐसा क्लाज़ डाला

सभी सहम सहम गये जाने आये किस की बारी

पर खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी


पत्नि बोली तब कर्मचारी से अब तुम दफतर जाओ

ऐसा न हो तुम जाओ जेल में हम को छोड़ जाओ

अगर पहुंच गये तुम अंदर तो हम कैसे पेट भरें गे

इस से तो अच्छा है साथ ही आधे पेट जियें मरें गे

घर घर में शोर मचा था छिड़ी थी महाभारत भारी

पर खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी


बाबू आखिर बाबू है कब तक वह जान बचाता

इधर अफसर से उधर बीवी से कब तक टकराता

हिम्मत हो गई पस्त कब तक वह हिम्मत दिखलाता

हद हो गई अठारह दिन बीते कैसे नहीं घबराता

देवास टूटा, मंडला टूटा, इंदौर की थी अब बारी

पर खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी


जाओ बाबू, जाओ बाबू, रहे गी बात तुम्हारी

जब तक मध्य प्रदेश कायम है रहे गी याद तुम्हारी

हार गये तो क्या हुआ, लड़ना ही है चमत्कारी

तेरी इस बड़ी लड़ाई पर जायें गे हम बलिहारी

पर खूब लड़े खूब लड़े वह शासन के कर्मचारी


(दिसम्बर 1968)

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