सुहावना सफर
मुसूरी
ठंडी ठंडी हवायें
लम्बी लम्बी राहें
कुछ क्षणों की बोरियत भाषणों में
प्रश्नों की बौछाड़
कुछ चटपटे
कुछ अटपटे
फिर धन्यवाद, कुछ सधे शब्दों में
दूर
इन से बहुत दूर
लुधियाना की गर्म हवायें याद करती थीं
कुटप्पन के नुतृत्व में
काफिला चला
कुछ मुफत के लंच
कुछ फोकट के खाने
गर्म गर्म धूप में पच्चीस मील चल कर
पच्चीस सैकण्ड तक
रीपर को देखने के लिये
लेकिन भाषण
जन्म जन्म के साथी
फिर भी साथ रहे
लौट आये
उसी खुशी से जिस से चले थे
(मसूरी - जून 1971
लुधियाना के कृषि महाविधालय के अध्ययन दौरे से लौटने के पश्चात)
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